जौनसार में पौराणिक परंपराएं आज भी कायम
संवाद सूत्र, साहिया: अनूठी लोक संस्कृति के लिए देश-दुनिया में विख्यात जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में
संवाद सूत्र, साहिया: अनूठी लोक संस्कृति के लिए देश-दुनिया में विख्यात जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में पौराणिक परंपराएं आज भी कायम हैं। यहां का पहनावा, लोक गीत, नृत्य जब पंचायती आंगन में धूम मचाते हैं तो हर कोई यहां की अनूठी व पौराणिक परंपराओं का कायल हो जाता है। पूरे देश में जहां शादी समारोह में डीजे की धुन पर लोग विभिन्न परिधानों में झूमते हैं। वहीं जौनसार-बावर में शादी के दौरान परंपराओं का पूरा ख्याल रखा जाता है। सांस्कृतिक आयोजन घर के बजाय सामूहिक रूप से गांव के पंचायती आंगन में होता है।
वैसे बदलते समय के साथ लोगों पर पाश्चात्य संस्कृति की छाया पड़ी है। लेकिन, कुछ लोग अभी भी संस्कृति को संजोने का काम कर रहे हैं। जौनसार-बावर में पौराणिक परंपराएं आज भी कायम हैं। अठगांव खत के मलऊ गांव में चाचा-भतीजे की एक ही दिन शादी हुई तो लोक संस्कृति की धूम पंचायती आंगन में दिखाई दी। सभी महिलाओं ने पौराणिक पहनावे को तरजीह दी। जिसमें युवतियां भी शामिल रहीं, दुल्हन भी पौराणिक वेश में नजर आई। अठगांव खत के मलऊ निवासी सविता, अमिता, बोटो देवी, दर्शनी देवी, सुंदला देवी, ममता, सुनीता देवी, विनीता देवी, प्रियंका तोमर, कृष्णा तोमर, जगत ¨सह, महेंद्र ¨सह आदि बताते हैं जौनसार की परंपराएं वर्षों से कायम हैं और आगे भी कायम रहेंगी। यहां पंचायती आंगनों में हारुल, झेंता, रासो आदि की प्रस्तुति खुद ही विकसित लोक संस्कृति की झलक पेश कर देती है।
पुरुषों का पहनावा
=ऊन की जंगैल (पायजामा), झगा(कुर्ता), डिगुवा, टोपी, ऊन का चौड़ा।
महिलाओं का पहनावा व आभूषण
=घाघरा, कुर्ती, मेकड़ी, गले में कोंठी, चांदी का शूच, चांदी के सिक्के की कांठी, कानों में सोने के तुंगल, नाक में बुलाक व नथ, सिर पर मांग टिक्का, उतरायी, सोने की चुड़ियां।
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