113 साल पुरानी ग्लोगी जल-विद्युत परियोजना से आज भी पैदा होती बिजली, जानिए कुछ अन्य रोचक तथ्य
उत्तराखंड के क्यारकुली व भट्टा गांव के बीच स्थित ग्लोगी जल विद्युत परियोजना को 113 साल पूरे हो चुके है। लेकिन इसके ऊर्जा उत्पादन की क्षमता में कोई कमी नहीं आई है।
देहरादून, संतोष तिवारी। उत्तराखंड के क्यारकुली व भट्टा गांव के बीच स्थित ग्लोगी जल विद्युत परियोजना को 113 साल पूरे हो चुके है। लेकिन आश्चर्य की बात यह कि यहां की मशीनें बूढ़ी तो हो गईं, लेकिन उनके ऊर्जा उत्पादन की क्षमता में कोई कमी नहीं आई है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड अब इस परियोजना की देखभाल किसी धरोहर की तरह करता है। क्योंकि, आने वाले वर्षों में इसे संरक्षित कर पर्यटकों के लिए भी खोला जा सकता है।
ब्रिटिश सेना के अधिकारी कैप्टन यंग 1825 में मसूरी पहुंचने वाले पहले गैर भारतीय बताए जाते हैं। यहां की खूबसूरती और प्राकृतिक नजारों की वजह जल्द ही यह क्षेत्र अंग्रेजों की पसंदीदा जगह बन गई। 1901 तक यहां की जनसंख्या 6,461 थी, जो गरमी के मौसम में 15,000 तक पहुंच जाती थी। इस दौरान यहां पीने के पानी की समस्या होने लगी तो अंग्रेजों ने वर्ष 1890 में यह जल विद्युत परियोजना के निर्माण का खाका तैयार किया। इसके बाद मसूरी-देहरादून मार्ग पर भट्टा गांव से करीब तीन किमी दूर ग्लोगी में जल-विद्युत परियोजना के लिए जमीन तलाशी गई। यह जगह इसलिए चुनी गई कि एक तो यह मसूरी से करीब था, जिसे पीने के पानी से लेकर बिजली की सप्लाई आसानी से हो सकती थी।
सवा सात लाख रुपये आई थी लागत
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के जनसंपर्क अधिकारी विमल डबराल बताते हैं कि पुराने अभिलेखों के अनुसार इस जल विद्युत योजना को अंग्रेजी सरकार के समक्ष स्वीकृति के लिए 1904 में प्रस्तुत की गई। तब इसकी लागत 7 लाख 29 हजार 560 रुपये आंकी गई थी। मई 1909 में ग्लोगी पावर हाउस ने अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करना शुरू कर दिया था। 24 मई 1909 एम्पायर डे के अवसर पर ग्लोगी पावर हाउस से पैदा हुई बिजली से पहली बार मसूरी में बिजली के बल्ब रोशन हुए। इस परियोजना के रखरखाव की जिम्मेदारी तब मसूरी नगर पालिका को दी गई थी। जो तब चार आना प्रति बीटीयू के हिसाब से नागरिकों को बिजली देती थी।
कुछ अन्य रोचक तथ्य
- ग्लोगी परियोजना पहले कैम्पटी फॉल के पास बनना प्रस्तावित थी, लेकिन तब यह क्षेत्र टिहरी रियासत के अधीन थी। राजा ने जमीन देने से मना कर दिया था।
- अक्टूबर 1902 में तत्कालीन सैनेटरी इंजिनियर मिस्टर ऐकमेन ने कैम्पटी फॉल से बिजली उत्पादन और पावर पंप द्वारा लंढौर तक पानी सप्लाई की दोहरी योजना बनाई थी। उस समय परियोजना की अनुमानित लागत छह लाख 50 हजार रुपये आंकी गई थी।
- ग्लोगी जल विद्युत परियोजना के स्थापना के साल में अंग्रेजों ने दार्जिलिंग और शिमला में भी जल विद्युत उत्पादन की इकाई स्थापित की थी।
- ग्लोगी जल विद्युत परियोजना की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता साढ़े तीन मेगावॉट है। एक-एक मेगावॉट की तीन और आधे मेगावाट की एक समेत कुल चार टरबाइन है। जो हर समय पहाड़ों से आने वाले जल प्रवाह से चल कर बिजली पैदा करती हैं।
- जिस समय मसूरी में बिजली के बल्ब जलने शुरू हो गए थे, उस समय देश की राजधानी दिल्ली में भी बिजली नहीं थी।
- ग्लोगी पावर हाउस के निर्माण में 600 से ज्यादा मजदूरों ने काम किया था। लंदन से पानी के जहाजों से मशीने भारत लाई गई थीं।
- बंदरगाहों से मशीनें रेल मार्ग से देहरादून, फिर यहां से बैलगाड़ियों व खच्चरों से ग्लोगी निर्माण स्थल तक पहुंचाई गई थीं।
- कैंट क्षेत्र से गुजरी बीजापुर नहर इसी ग्लोगी परियोजना से ही निकली है।
इस धरोहर को हम पूरी देखरेख से कर रहे संचालित
संदीप सिंघल (प्रबंध निदेशक, यूजेवीएनएल) का कहना है कि एक सौ दस साल से भी पुरानी इस धरोहर को हम पूरी देखरेख से संचालित कर रहे हैं। जिस समय दिल्ली कलकत्ता जैसे शहरों में बिजली नहीं होती थी तब मसूरी में बिजली के बल्ब जगमगाते थे। गलोगी विद्युतगृह के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए अधिशासी अभियंता स्तर पर अलग से एक ईकाई को इस परियोजना की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
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