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    परिश्रम के ताप में तपकर हासिल किया मुकाम

    By Edited By: Updated: Fri, 06 Dec 2013 08:10 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, देहरादून: न लगन छोड़ी और न कभी विश्वास डिगा। वक्त अनुकूल नहीं था और घर का भार कंधों पर। जिम्मेदारी का अहसास किया और एक जवान के तौर पर फौज ज्वाइन की, लेकिन ख्वाहिश कुछ बड़ा करने की थी। सपनों को उड़ान भरने में वक्त लगा, पर परिश्रम के ताप में तपकर अपना मुकाम बना ही लिया।

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    स्वर्ण पदक विजेता आदित्य सिंह गाजीपुर (यूपी) के एक सामान्य किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पिता बालेश्वर सिंह ने खेती-बाड़ी कर बच्चों की परवरिश की। उन्हें अच्छी शिक्षा दी। सात सात पहले आदित्य ने नेवी ज्वाइन की, लेकिन पिता का सपना था कि वह अफसर बने। क्योंकि पिता ने सदैव गुरु बनकर मार्गदर्शन किया। आदित्य ने पिता का सपना साकार कर उन्हें गुरु दक्षिणा दी है। ऐसी ही कहानी सिल्वर मेडल विजेता मुंबई के वी कुमार राठौर की है। पिता सेवानिवृत्त फौजी हैं। जो बेटे को अफसर की वर्दी में देखने की ख्वाहिशमंद थे। वक्त तब अनुकूल नहीं था, पर वी कुमार ने अपनी मेहनत से इसे अनुकूल बना लिया। साढ़े तीन साल जवान के तौर पर नौकरी की और अब अफसर बनने की राह पर हैं। कमान्डेंट सिल्वर मेडल रोहतक निवासी रविंद्र कुमार पिता प्रेम सिंह के नक्शे कदम पर चल निकले हैं। पिता फौज में सिपाही थे। इच्छा बेटे को अफसर देखने की। रविंद्र ने सात वर्ष के परिश्रम के बाद अपनी राह प्रशस्त की। झज्जर निवासी पी कुमार सांगवान की कहानी भी भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणादायी हो सकती है। पिता डॉक्टर हैं, एक भाई पुलिस में तो दूसरा बड़ी कंपनी में मैनेजर। एनडीए, सीडीएस में बात नहीं बनी, पर हार नहीं मानी। जवान के तौर पर फौज ज्वाइन कर ली। जो तब न कर पाए वह अब कर दिखाया है।

    परंपरा के पथ पर रखे पग

    जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड के उत्साही नौजवानों के लिए फौज महज नौकरी नहीं, बल्कि परंपरा रही है। पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। एसीसी के 64 कैडेट्स में भी छह उत्तराखंड से हैं।

    चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कांस्य पदक हासिल करने वाले खटीमा निवासी विक्रम बोहरा के पिता उम्मेद सिंह फौज से नायब सूबेदार रिटायर हुए। चाहते थे कि बेटा अफसर बने, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों के कारण 2003 में बेटा जवान भर्ती हुआ। मगर, विक्रम ने न पिता के सपने को मरने दिया और न अपनी ख्वाहिश को। मेहनत के बूते मुकाम पा लिया। रांझावाला निवासी संजय थापा बताते हैं कि उनकी तीसरी पीढ़ी फौज में है। पिता विजय सिंह थापा हवलदार और दादा बम बहादुर थापा ऑनरेरी कैप्टन रिटायर हुए। उन्होंने 2002 में फौज ज्वाइन की। आठ साल बाद अब सपने की तरफ कदम बढ़े हैं। पिथौरागढ़ के प्रकाश भंट्ट वर्ष 2005 से सेना में हैं। परिवार बड़ा था और आर्थिक स्थिति अनुकूल नहीं थी। पिता सूबेदार मेजर (सेनि) त्रिलोक चंद्र पल-पल प्रेरणा देते रहे। बेटा अब अफसर बनने की राह पर है।

    उत्तराखंड के कैडेट

    संजय थापा व गगनदीप जोशी देहरादून, प्रकाश भंट्ट व विक्रम बोहरा पिथौरागढ़, दीपक पांडे हल्द्वानी और गोविंद सिंह रामनगर।

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