1985 से रहने वालों को जाति प्रमाणपत्र
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जागरण ब्यूरो, देहरादून
नगर निकाय चुनाव से ऐन पहले सरकार ने वर्षो से लंबित जाति प्रमाणपत्र के मामले में मंगलवार को आनन-फानन फैसला ले लिया। अब राज्य गठन की तिथि नौ नवंबर, 2000 को उत्तराखंड में स्थायी रूप से निवास करने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को जाति प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे। नई व्यवस्था के मुताबिक अब 1950 नहीं, बल्कि वर्ष 1985 से राज्य में रहने वाले व्यक्ति जाति प्रमाणपत्र हासिल करने के पात्र होंगे।
हाईकोर्ट के 17 अगस्त, 2012 को पारित आदेशों पर लंबे समय तक अमल नहीं होने और अदालत की अवमानना की तलवार लटकने पर सरकार ने तुरत-फुरत जाति प्रमाणपत्र को लेकर शासनादेश जारी कर दिया। मुख्य सचिव आलोक कुमार जैन ने मंगलवार को सचिवालय में पत्रकारों को उक्त शासनादेश की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य गठन की तिथि से तकरीबन 15 वर्ष पहले से उत्तराखंड में रहने वाले जाति प्रमाणपत्र की पात्रता के दायरे में होंगे। यानी करीब 27 वर्षो से अधिक समय से रहने वालों को जाति प्रमाण पत्र मिल सकेंगे। हाईकोर्ट ने नौ नवंबर, 2000 को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जाति प्रमाणपत्र जारी करने की कट आफ डेट माना है। उक्त तिथि को राज्य के स्थायी निवासी जाति प्रमाणपत्र के हकदार होंगे। स्थायी निवासी के संबंध में पहले से यह व्यवस्था है कि उत्तराखंड में 15 वर्षो से निवास करने वाले स्थायी निवासी की पात्रता पूरी करते हैं।
तत्काल प्रभाव से लागू किए गए शासनादेश में यह भी कहा गया है कि जाति प्रमाणपत्र मामले में आदेश के सभी प्रावधान हाईकोर्ट में त्रिवेंद्र सिंह पंवार और रविंद्र जुगरान की ओर से दायर याचिकाओं में होने वाले अंतिम फैसले के अधीन रहेंगे।
जाति प्रमाणपत्र की नई व्यवस्था के प्रमुख बिंदु:
1-एससी और एसटी के लिए उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की अनुसूची-पांच और अनुसूची-छह में वर्णित जातियां प्रमाणपत्र की पात्र होंगी
2-अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए उत्तरप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों व अन्य पिछड़ा वर्गो के लिए आरक्षण) अधिनियम 1994 के अंतर्गत 23 मार्च, 1994 और उसके बाद निर्गत अधिसूचनाओं में शामिल पिछड़ी जातियों के व्यक्तियों को ही अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाणपत्र जारी होगा।
3-अविभाजित उप्र के एससी, एसटी व ओबीसी को जाति प्रमाणपत्र तब ही निर्गत होगा, जब वे नौ नवंबर, 2000 या उससे पहले उत्तराखंड राज्य के किसी भाग के स्थायी निवासी हों।
4-जाति प्रमाणपत्र निर्गत करने से पहले स्थायी निवास प्रमाणपत्र या अन्य कोई प्रमाणपत्र प्राप्त करना आवश्यक नहीं
5-जाति प्रमाणपत्र के लिए आवेदक को यह शपथ पत्र देना होगा कि उसके या परिवार के किसी अन्य सदस्य द्वारा अन्य राज्य से जाति प्रमाणपत्र न लिया गया हो
6-अविभाजित उप्र से वर्तमान में उत्तराखंड में बस गए व्यक्तियों पर ही यह लागू होगा
7-किसी व्यक्ति को उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड के लिए काडर आवंटित होने पर जाति प्रमाणपत्र तब ही मिलेगा, जब उक्त जाति उत्तराखंड में अधिसूचित हो और संबंधित व्यक्ति उक्त जाति का लाभ उत्तरप्रदेश में पहले से प्राप्त कर रहा हो
8-जाति प्रमाणपत्र के लिए स्थायी निवास ही प्रासंगिक, मूल निवासी व अन्य शब्दों को उपयोग में नहीं लिया जाएगा।
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