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    देहरादून में प्रधानों ने पास किए नक्शे, लोग काट रहे एमडीडीए के चक्कर

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Thu, 16 Dec 2021 11:40 AM (IST)

    एमडीडीए की अवैध निर्माण के प्रति दशकों से चली आ रही हीलाहवाली के अब गंभीर परिणाम सामने आते दिख रहे हैं। वर्ष 1982-83 में अस्तित्व में आए एमडीडीए के पास राज्य गठन के समय से ही शहरी क्षेत्र के अलावा 150 से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों का दायित्व रहा है।

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    एमडीडीए की अवैध निर्माण के प्रति दशकों से चली आ रही हीलाहवाली के अब गंभीर परिणाम सामने दिख रहे हैं।

    सुमन सेमवाल, देहरादून। मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) की अवैध निर्माण के प्रति दशकों से चली आ रही हीलाहवाली के अब गंभीर परिणाम सामने आते दिख रहे हैं। वर्ष 1982-83 में अस्तित्व में आए एमडीडीए के पास राज्य गठन के समय से ही शहरी क्षेत्र के अलावा 150 से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों का दायित्व रहा है। इसके बाद भी एमडीडीए अभियंताओं का ध्यान सिर्फ शहरी क्षेत्रों में रहा और गांवों में नक्शा पास करने का जिम्मा संबंधित ग्राम प्रधान अवैध रूप से करते रहे। पिछले दो-तीन साल से अवैध निर्माण के प्रति बरती जा रही सख्ती के बाद अब इसके परिणाम सामने आने लगे हैं। डांडा लखौंड गांव समिति की ओर से मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में कहा गया है कि क्षेत्र के तमाम भवनों के नक्शे प्रधानों ने पास किए हैं और अब एमडीडीए उनके चालान काटकर सीलिंग की तैयारी कर रहा है।

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    यह पीड़ा सिर्फ डांडा लखौंड क्षेत्र के निवासियों की नहीं है, बल्कि तमाम ग्रामीण क्षेत्रों के व्यक्तियों में एमडीडीए की कार्रवाई से खलबली की स्थिति है। डांडा लखौंड गांव समिति के पत्र में कहा गया है कि उन्होंने कृषि भूमि पर भवन खड़े किए हैं और एमडीडीए के बिल्डिंग बायलाज के मुताबिक 75 वर्गमीटर तक कृषि भूमि पर आवासीय भवन व दुकान बनाई जा सकती है। तमाम भवन 50 वर्गमीटर भूमि पर भी बने हैं और एमडीडीए ने इनके भी चालान किए हैं। एमडीडीए अधिकारी भी सुनने को तैयार नहीं हैं, जबकि उनके नक्शे प्रधानों ने पास किए हैं। ज्ञापन भेजने वालों में मनोज कठैत, संहिता चौहान, मनोज रांगड़, अंकित राजपूत, मुकुल मनोहर, पल्लवी सिंह चौहान, राहुल चौहान, मीनाक्षी अरोड़ा आदि शामिल हैं।

    प्रापर्टी डीलरों को मिली शह, प्रधानों ने उठाया लाभ

    इसमें कोई शक नहीं कि ग्राम प्रधानों व ग्राम सभा को नक्शे पास करने का अधिकार नहीं है। फिर भी तमाम क्षेत्रों में प्रधानों की ओर से नक्शे पास करने की बातें सामने आती रहती हैं। इसकी वजह यह है कि एमडीडीए अधिकारियों की शह पर प्रापर्टी डीलर कृषि भूमि पर प्लाटिंग करते रहे और प्रधान ऐसे प्लाट पर भवन निर्माण के लिए अवैध रूप से नक्शे पास करते रहे।

    75 वर्गमीटर कृषि भूमि पर आवासीय निर्माण संभव, नक्शा पास कराना जरूरी

    उत्तराखंड इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष डीएस राणा के मुताबिक, एमडीडीए के बिल्डिंग बायलाज ग्रामीण क्षेत्रों में 75 वर्गमीटर तक की कृषि भूमि पर आवासीय निर्माण व 50 वर्गमीटर तक के भाग पर दुकानों का निर्माण कराया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए एमडीडीए से विधिवत नक्शा पास कराना जरूरी है। नक्शा भी तभी पास होगा, जब संबंधित भूमि राजस्व अभिलेखों में ग्रामीण आबादी के रूप में दर्ज होगी।

    सुनियोजित विकास में उपेक्षित रहा साडा क्षेत्र भी अब एमडीडीए के जिम्मे

    वर्ष 1987 में अस्तित्व में आए दून घाटी विशेष क्षेत्र प्राधिकरण (साडा) का जुलाई-अगस्त 2019 में एमडीडीए में विलय हो गया था। बताया जाता है कि लंबी अवधि के बाद भी साडा सिर्फ तीन से चार हजार हजार भवनों के नक्शे पास कर पाया। अवैध निर्माण पर कार्रवाई की बात करें तो विलय के समय महज छह हजार 994 निर्माण पर कार्रवाई गतिमान थी। साडा के 90 फीसद से अधिक क्षेत्रफल ग्रामीण ही रहा है। जाहिर है यहां कृषि भूमि पर किस कदर निर्माण किए गए हैं। साडा में विलय के बाद एमडीडीए का क्षेत्रफल करीब 55 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 2.17 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गया है। इतने बड़े भूभाग पर प्रापर्टी डीलर कितनी कृषि भूमि पर प्लाटिंग कर चुके हैं, इसकी पड़ताल में ही एमडीडीए को सालों लग जाएंगे। हालांकि, जिस तरह से एमडीडीए में कृषि से आवासीय व कमर्शियल में भू-उपयोग परिवर्तन के आवेदन आने लगे हैं, उसे देखते हुए निकट भविष्य में चुनौती बढ़ती दिख रही है।

    बीके संत (उपाध्यक्ष, एमडीडीडीए) का कहना कि डांडा लखौंड का प्रकरण अभी उनके संज्ञान में नहीं आया है। जहां तक कृषि भूमि पर आवासीय निर्माण की बात है तो उसके लिए बायलाज में प्रविधान किए गए हैं। प्रधानों की तरफ से पास किए गए नक्शे मान्य नहीं हैं और यह गैरकानूनी भी है। कृषि भूमि में निर्माण के जिन मामलों में चालानी कार्रवाई की गई है, उनकी नियमानुसार कंपाउंडिंग कराई जा सकती है।