71 के युद्ध में पहाड़ के सैनिकों ने दिया था अदम्य साहस का परिचय
1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे हुए अपनी वीरता का परिचय देकर जिले के 12 जवानों ने शहादत दी।
चंपावत, [जेएनएन]: पहाड़ के लोगों का शहादत का अपना इतिहास रहा है। आजादी के आंदोलन के साथ ही भारत-चीन युद्ध हो या भारत-पाकिस्तान या फिर कारगिल वार। इन युद्धों में पहाड़ के सैनिकों ने अपने अदम्य साहस का अद्भुत परिचय दिया है।
वर्ष-1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे हुए अपनी वीरता का परिचय देकर जिले के 12 जवानों ने शहादत दी। जो युद्ध महज 13 दिन चला। इस युद्ध में जिले के सैनिकों ने अपनी वीरता का परिचय देकर देश को युद्ध में जीत दिलाई। आज भी पहाड़ के युवाओं में सैन्य क्षेत्र की चाह सबसे पहले है। वह दिन-रात मेहनत कर पसीना बहाकर सेना में भर्ती होने की तैयारी करते हैं। उनमें देश रक्षा का जज्बा और सीमा पर दुश्मनों से लोहा लेने का जज्बा भरपूर है।
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प्रेम राम हैं 71 की लड़ाई के गवाह
बनलेख के धूरा में रहने वाले 70 वर्षीय बुजुर्ग प्रेम राम वर्ष-1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के गवाह हैं। वह कुमाऊं 12 रेजीमेंट के सैनिक थे और उन्होंने वह लड़ाई लड़ी है। वह बताते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में ढाका) में पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध हुआ था। भारत की सेना जनरल अरोड़ा की अगुआई में युद्ध के मैदान में थी और पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाया।
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जनरल नियां जी की अगुवाई में पाकिस्तानी सैनिक युद्ध लड़ रहे थे, लेकिन पाकिस्तान के पास हथियार खत्म होने और उनकी पाकिस्तान से लिंक भंग होने से वहां की सेना के 90 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष सरेंडर किया। जिन्हें मेरठ, बरेली और आगरा जेल लाया गया। बरेली जेल से फरार होने की कोशिश करने वाले चार कैदी ढेर कर दिए गए। प्रेम राम ने पाकिस्तान के साथ वर्ष-1965 में हुआ युद्ध भी लड़ा है।
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आज की फौज व तब की फौज में आया अंतर
मुड़ियानी निवासी पूर्व सैनिक चंदन सिंह महर का कहना है कि आज की फौज व तब की फौज में काफी अंतर है। पहले हेड क्वार्टर, बैरिकों के भीतर गोलीकांड नहीं होते थे, लेकिन अब बेस, लाइन बेरिक में हमले हो रहे हैं, जो देश के लिए शर्मनाक हैं। मुख्यालयों की सुरक्षा को लेकर सेना को गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।
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खच्चर, घोड़ों से ले जाते थे सामान
कारगिल योद्धा नायक दान सिंह मेहता बताते हैं कि उस दौर में आज की अपेक्षा आतंकवाद कम था। तब आज की तरह रोड़ों का जाल नहीं बिछा था। खच्चरों, घोड़ों से सामान ले जाते थे। आज तो भारतीय सेना तकनीकि से लाभांवित है और एक से बढ़कर एक हथियार सेना के पास हैं। बंदूकें, मिसाइल, प्रक्षेपात्रों की भरमार है। उस दौर में एके-47 सीमित मात्रा में ही होती थी। वह भी बड़ी कमांडो कंपनी के पास। बंदूकें हथियार काफी भारी होते थे। तकरीबन 40-50 किलो के। अब भारत हथियारों से संपन्न और किसी भी पल में दुश्मनों से लोहा लेने को तैयार है।
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जिले के यह योद्धा हुए थे शहीद
- जोत सिंह - चामी, एबट माउंट लोहाघाट
- प्रताप सिंह - कलीगांव, लोहाघाट
- शिवराज सिंह - तल्ली थंडा, एबट माउंट लोहाघाट
- केशव दत्त - कमैला, चम्पावत
- नायक मान सिंह - मल्लाकोट, कानाकोट, लोहाघाट
- ज्ञान सिंह - मल्लाढेक, लोहाघाट
- हरि चंद्र - बुगली, पुलहिंडोला, लोहाघाट
- ज्वाला दत्त - ग्राम कुनेड़ा, धौन, चम्पावत
- प्रहलाद सिंह - मुड़ियानी, चम्पावत
- रेवाधर - भाटी गांव, खेतीखान, लोहाघाट
- कै. उमेद सिंह - जनकांडे, खेतीखान, लोहाघाट
- हवलदार केदार दत्त - ग्राम सौंज, चम्पावत