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    Champawat: 750 साल पुराने बालेश्वर मंदिर को सहेजने की कोशिश, इस खास तकनीक का हो रहा इस्तेमाल

    By Jagran NewsEdited By: Swati Singh
    Updated: Thu, 12 Oct 2023 02:18 PM (IST)

    Baleshwar Temple स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर को अब सहेजने का प्रयास किया जा रहा है। मंदिर के बाहरी व भीतरी हिस्से में शिलाओं का रासायनिक उपचार कर उन्हें सहेजने का काम किया जा रहा है। यहां मौजूद शिलालेख के अनुसार 1272 ईसवीं में मंदिर की स्थापना हुई थी। मंदिर समूह को एक के ऊपर एक रखने में बेहतरीन इंजीनियरिंग की मिसाल कायम की गई है।

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    750 साल पुराना है बालेश्वर मंदिर

    जागरण संवाददाता, चंपावत। स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना प्रसिद्ध बालेश्वर मंदिर को रासायनिक उपचार दिया जा रहा है। 13वीं शताब्दी में स्थापित बालेश्वर मंदिर खजुराहो शैली को भी खुद में समेटे हुए है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का बालेश्वर मंदिर समूह पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।

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    विभाग की देखरेख में मंदिर का रासायनिक उपचार (केमिकल ट्रीटमेंट) शुरू हो गया है। इससे प्राचीन धरोहर के वास्तविक स्वरूप को बनाए रखने में मदद मिलेगी। चंद शासकों की ओर से स्थापित बालेश्वर मंदिर का अस्तित्व रासायनिक उपचार पर टिका हुआ है। पुरातात्विक महत्व वाले सदियों पुराने मंदिर को संरक्षित करने के लिए समय-समय पर परीक्षण व जीर्णोद्धार का कार्य किया जाता है।

    रासायनिक उपचार के जरिए सहेजने की कोशिश

    मंदिर के बाहरी व भीतरी हिस्से में शिलाओं का रासायनिक उपचार कर उन्हें सहेजने का काम किया जा रहा है। यहां मौजूद शिलालेख के अनुसार 1272 ईसवीं में मंदिर की स्थापना हुई थी। मंदिर समूह को एक के ऊपर एक रखने में बेहतरीन इंजीनियरिंग की मिसाल कायम की गई है। विशालकाय शिलाओं को आपस में ऐसे जोड़ा गया है कि 750 वर्ष बाद भी मंदिर स्थिर है।

    इस मंदिर ने झेला है रुहेलो का आक्रमण

    बालेश्वर मंदिर ने 1742 में रुहेलो का आक्रमण भी झेला है। तब की खंडित हुई मूर्तियों को मंदिर परिसर में सहेजा गया है। शिल्प कला की दृष्टि से मंदिर बहुत महत्वपूर्ण है। हर मूर्ति भव्य व कलात्मक है। भगवान शिव के अलावा यहां मां भगवती, चंपा देवी, भैरव, गणेश, मां काली की मूर्तियां हैं।

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    उम्र पर असर

    पुरातात्विक महत्व के भवन या मंदिरों की शिलाएं उम्र के साथ कमजोर होती जाती हैं। खासकर मौसम का असर, हवाओं की गति व उसमें मिले गैसीय रसायन भी धीरे-धीरे शिलाओं का क्षरण करते हैं। इन्हें रासायनिक उपचार के जरिए ही सहेजना संभव है। यह इसलिए जरूरी है, ताकि उम्र के साथ कम हो रहे मंदिर के सौंदर्य को कायम रखा जा सके। इसी वजह से पांच-सात वर्ष के अंतराल में पुरातात्विक धरोहरों का रासायनिक उपचार किया जाता है।

    पुरातत्वविद् ने कही ये बात

    बालेश्वर मंदिर ऐतिहासिक धरोहर है। उसका स्वरूप बना रहे, इसके लिए केमिकल ट्रीटमेंट का काम किया जा रहा है। मंदिर के बाहरी व भीतरी हिस्से का ट्रीटमेंट किया जाएगा। -मनोज कुमार सक्सेना, अधीक्षण पुरातत्वविद्, पुरातात्विक सर्वेक्षण देहरादून