Uttarakhand Budget session 2020: सदन में विकास प्राधिकरणों की जटिलता पर विपक्ष का हंगामा
जिला विकास प्राधिकरणों की जटिलतत के मसले पर बजट सत्र के तीसरे दिन सदन गर्माया रहा। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों के मध्य तीखी नोकझोंक हुई।
गैरसैंण, राज्य ब्यूरो। जिला विकास प्राधिकरणों की जटिलतत के मसले पर बजट सत्र के तीसरे दिन सदन गर्माया रहा। इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायकों के मध्य तीखी नोकझोंक हुई। हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही दो बार स्थगित करनी पड़ी।
गुरुवार सुबह 11 बजे प्रश्नकाल शुरु होते ही कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने जिला विकास प्राधिकरणों का मसला उठाया और कहा कि जिस तरह से प्राधिकरण थोपे गए हैं, उससे जनता को तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। नेता प्रतिपक्ष डॉ.इंदिरा हृदयेश ने कहा कि विकास प्राधिकरण लूट का अड्डा बन गए हैं। इसी बीच कांग्रेस के विधायक वेल में आकर नारेबाजी करने लगे। पीठ की ओर से इस सूचना को कार्य स्थगन के तहत सुनने की व्यवस्था दी गई।
सत्ता पक्ष के विधायकों ने विपक्ष की मांग पर एतराज जताया। भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना, दिलीप रावत आदि ने कहा कि इस विषय पर पूर्व में विधानसभा की समिति अपनी रिपोर्ट बीते रोज सदन में पेश कर चुकी है। ऐसे में इस मसले पर कार्यस्थगन नहीं आ सकता।
संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक ने नियमावली और परंपराओं का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व में नियम-58 में हुई चर्चा के बाद विधानसभा की ओर से समिति गठित की गई थी, जिसमें सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों के ही सदस्य थे। समिति अपनी रिपोर्ट रख चुकी है। समिति की रिपोर्ट खारिज की जाए और फिर चर्चा कराई जाए अथवा समिति की रिपोर्ट पर चर्चा कराई जाए। इसके बाद विपक्ष और सत्ता पक्ष के विधायकों के मध्य तीखी नोकझोंक हुई। इस पर पीठ ने 11.42 बजे सदन की कार्यवाही 12 बजे तक स्थगित कर दी। फिर 12 बजे पांच मिनट के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी गई।
बाद में शून्यकाल के दौरान इस मसले पर पीठ ने व्यवस्था दी कि समिति का प्रत्यावेदन आ चुका है, लिहाजा विषय के औचित्य की ग्राह्यता पर विपक्ष से दो सदस्य विचार रख सकते हैं। इसके बाद नेता प्रतिपक्ष डॉ.इंदिरा हृदयेश ने आंकड़े रखते हुए कहा कि प्राधिकरणों में वर्ष 2018-19 में नक्शा पास कराने को 7728 आवेदन आए थे, जिनमें से 3822 ही पास हुए। इसी तरह 2019-20 में 690 में से 155 ही पास हुए। उपनेता प्रतिपक्ष करन माहरा ने समिति में वह भी सदस्य थे, लेकिन समिति केवल हरिद्वार जिले में ही लोगों से बात कर पाई। उन्होंने मांग की कि मामले में निर्णय होने तक प्राधिकरणों में होने वाली कार्रवाई पर रोक लगाई जाए।
संसदीय कार्यमंत्री ने कहा कि 2016 में तत्कालीन सरकार ने 22 प्राधिकरण गठित किए थे, जिनकी संख्या मौजूदा सरकार ने 13 की है। जिला विकास प्राधिकरणों में सरकार ने कई छूट भी लोगों को दी हैं। प्राधिकरणों की जटिलताओं पर विस की समिति की रिपोर्ट सदन के पटल पर आ चुकी है। लिहाजा, ऐसे मानदंड अपनाए जाने चाहिए कि नियमावली व परंपराओं का पालन हो। उन्होंने कहा समिति की रिपोर्ट सरकार के पास आएगी तो उस पर विचार कर निर्णय लिया जाएगा। सरकार इस मामले में पूरी तरह गंभीर है। सरकार के पक्ष से विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और उसने बहिर्गमन कर दिया।
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