बदरीनाथ धाम में पहली बार आरएसएस का पथ संचलन, 300 से अधिक स्वयंसेवकों ने लिया भाग
बदरीनाथ धाम में पहली बार आरएसएस का पथ संचलन हुआ जिसमें 300 से अधिक स्वयंसेवकों ने भाग लिया। स्वामीनारायण मंदिर से शुरू होकर यह संचलन सिंह द्वार पर समाप्त हुआ। स्वयंसेवकों ने नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे प्रार्थना और भारत माता के जयकारों के साथ भाग लिया। डॉ. शैलेन्द्र ने हिंदू एकता के लिए अस्पृश्यता को मिटाने पर जोर दिया और सनातन संस्कृति को बचाने का आह्वान किया।

जागरण संवाददाता, गोपेश्वर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर चल रहे कार्यक्रमों के बीच बदरीनाथ धाम में पहली बार पथ संचलन हुआ। शरद पूर्णिमा पर सोमवार को स्वामीनारायण मंदिर से शुरू हुआ पथ संचलन बदरीनाथ धाम के सिंह द्वार पर संपन्न हुआ। इसके बाद सभी स्वयंसेवकों ने बदरीनाथ धाम में दर्शन भी किए। पथ संचलन में 300 से अधिक स्वयंसेवकों ने गणवेश के साथ भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ स्वामीनारायण मंदिर में दीप प्रज्ज्वलन, ध्वजारोहण और नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे प्रार्थना के साथ हुआ। इसके बाद स्वयंसेवक बैंड की धुनों, वंदेमातरम और भारत माता की जय के उदघोष के साथ बदरीनाथ धाम के माणा रोड, बस टर्मिनल मार्ग, मंदिर मार्ग होते हुए साकेत तिराहे से बदरीनाथ मंदिर की ओर आगे बढ़े।
इस मौके पर प्रांत प्रचारक डा. शैलेन्द्र ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति और संस्कारों का यह प्रभाव है कि आज विश्व के 60 देशों में संघ की शाखाएं हैं। संघ व्यक्ति केंद्रित नहीं बल्कि सर्वसमावेशी और सह अस्तित्व की भावना में विश्वास रखता है। संघ के कार्यकर्ता का जीवन मातृभूमि के लिए न्यौछावर है। ऋषि मुनियों की विरासत सनातन संस्कृति को बचाने का काम संघ का है।
उन्होंने कहा कि हिंदू संगठित नहीं रहा इसलिए देश को सैकड़ों वर्ष गुलाम रहना पड़ा। हिंदू समाज की एकता के लिए अस्पृश्यता को जड़ से मिटाना होगा। कार्यक्रम में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी, महात्मा अमित दास महाराज, जिला प्रचारक मिथिलेश, अतुल शाह मौजूद रहे।
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