एक फूल ही निगल रहा है विश्व धरोहर फूलों की घाटी को
विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त फूलों की घाटी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा घाटी के ही एक फूल ने पैदा किया है। अब यह करीब दो किलोमीटर के दायरे में फैल गया है।
गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त फूलों की घाटी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह खतरा घाटी के ही एक फूल ने पैदा किया है। एक दशक पहले जिस पॉलीगोनम नामक झाड़ीनुमा फूल ने यहां डेरा डाला उसका विस्तार थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह करीब दो किलोमीटर के दायरे में फैल गया है।
अपने आसपास की वनस्पतियों को खत्म कर देने की इसकी प्रवृत्ति इस राष्ट्रीय उद्यान के लिए खतरे का सबब बन सकती है। पिछले आठ साल से वन विभाग इससे पार पाने की कोशिशों में जुटा है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है।
चमोली जिले में सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल हेमकुंड साहिब मार्ग पर घांघरिया से पांच किमी के फासले पर 87.50 वर्ग किमी में फैली है फूलों की घाटी। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस घाटी में फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मिलती हैं।
वर्तमान में भी यह फूलों से लकदक है और इसका आकर्षण सैलानियों को अपनी ओर खींच रहा है। इस साल एक जून को घाटी के दरवाजे खुलने के बाद से यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना जारी है।
रंग-बिरंगे फूलों की बिखरी छटा के बीच घाटी में खिले पॉलीगोनम ने चिंता बढ़ा दी है। पॉलीगोनम को अमेला अथवा नटग्रास भी कहते हैं। घाटी से लौटे पर्यटक बताते हैं कि वर्तमान में पुष्पगंगा से आगे प्रियदर्शनी तोक तक करीब दो किलोमीटर के दायरे में पॉलीगोनम पसरा हुआ है।
10 साल पहले नजर आया
फूलों की घाटी में पॉलीगोनम का खतरा एक दशक पहले तब मंडराया, जब घाटी से लौटे सैलानियों ने इस नए फूल का जिक्र किया। पड़ताल हुई तो यह पॉलीगोनम निकला। नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी बताते हैं कि भले ही पॉलीगोनम झाड़ीनुमा फूल प्रजाति है, लेकिन इसका विस्तार तेजी से होता है।
दो मीटर तक की लंबाई वाला इसका झाड़ दूसरे पौधों को पनपने नहीं देता। वह कहते हैं कि इसका फैलाव रोकने के लिए कार्ययोजना बनाकर वर्ष 2008 से इसे उखाड़ने का काम चल रहा है। हर साल 40-50 हेक्टेयर क्षेत्र में पॉलीगोनम को नष्ट किया जाता है, लेकिन यह कहीं न कहीं रह जाता है। इस बार भी हम कोशिश करेंगे।
यह भी है फैलाव का कारण
असल में एक दौर में फूलों की घाटी में जानवरों को चराया भी जाता था। भेड़ पालकों की भेड़-बकरियां पॉलीगोनम को खा लेती थीं और इनके खुरों से यह नष्ट भी हो जाता था। 1982 में फूलों की घाटी को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिलने के बाद यहां पशुओं को चराने पर रोक लगा दी गई। जानकारों के मुताबिक पॉलीगोनम के फैलाव की एक बड़ी वजह यह रोक भी है।
दर्शनीय घाटी
-1931 में ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस. स्मिथ और उनके साथी आरएल होल्डसवर्थ ने फूलों की घाटी की खोज तब की जब वे कामेट पर्वत से लौट रहे थे।
-1938 में दोनों ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने वैली ऑफ फ्लावर्स नामक पुस्तक प्रकाशित की।
-छह नवंबर 1982 को घाटी को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
-फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां तो आकर्षण का केंद्र हैं ही, भोजपत्र, पुष्पावती गंगा, रथवन गौरी, नीलगिरि पर्वत की छटा भी लोगों को खींचती है।
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