Pindar Ghati: प्रकृति की गोद में साहसिक पर्यटन का लुत्फ, 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिंडर घाटी का सौंदर्य मोह लेगा आपका मन
Pindar Ghati अगर आप प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों का दीदार करने के साथ साहसिक पर्यटन का भी लुत्फ उठाना चाहते हैं तो उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले की पिंडर घाटी चले आइये। पिंडर घाटी में इन दिनों यहां पर्यटकों की खूब चहल-पहल है। वैसे तो यहां वर्षभर आया जा सकता है लेकिन अगर बर्फबारी का भी आनंद लेना हो तो दिसंबर से मार्च के बीच का समय सबसे उपयुक्त है।

देवेंद्र रावत, गोपेश्वर। अगर आप प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों का दीदार करने के साथ साहसिक पर्यटन का भी लुत्फ उठाना चाहते हैं तो उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले की पिंडर घाटी चले आइये। समुद्रतल से करीब 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस घाटी में तमाम ऐसे पर्यटक स्थल हैं, जिनका सौंदर्य आपका मन मोह लेगा।
यहां आप हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को करीब से निहार सकते हैं। बर्फ की सफेद चादर के साथ ही मखमली बुग्यालों (घास के मैदान) पर अठखेलियां कर सकते हैं। कदम-कदम पर बिखरी हरियाली के बीच नौ किमी लंबा एक ट्रेक भी है, जो आपकी यात्रा में रोमांच भर देगा। रास्ते में घने जंगल व कुलांचे भरते हिरण, भालू, लोमड़ी आदि वन्यजीवों की दस्तक इस रोमांच को और बढ़ा देती है।
प्रकृति के सौंदर्य का अद्भुत उदाहरण
पिंडर घाटी में इन दिनों यहां पर्यटकों की खूब चहल-पहल है। वैसे तो यहां वर्षभर आया जा सकता है, लेकिन अगर प्रकृति के सौंदर्य के साथ बर्फबारी का भी आनंद लेना हो तो दिसंबर से मार्च के बीच का समय सबसे उपयुक्त है। ...तो इंतजार किस बात का है, बैग उठाइए और चले आइए। हां, आने से पहले यह जान लीजिए कि इन दिनों इस क्षेत्र का तापमान माइनस पांच डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। इसलिए गर्म कपड़ों की पर्याप्त व्यवस्था करके आइए।
पहला पड़ाव भेकलताल
देवाल ब्लाक का सुदूरवर्ती क्षेत्र लोहाजंग इस यात्रा का बेस कैंप है। यहां तक पहुंचने के लिए चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से 140 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। लोहाजंग से छह किमी आगे है भेकलताल, जोकि इस यात्रा का पहला पड़ाव भी है। यहां मखमली बुग्याल के बीच बड़ी-सी झील है। इस झील के किनारे पर्यटक टेंट लगाकर रहते हैं। इसके बाद ब्रह्मताल, मोनाल टॉप और आजम टॉप आते हैं।
ब्रह्मताल से देखिए विंटर लाइन
भेकलताल से छह किमी दूर है ब्रह्मताल। जहां 300 मीटर व्यास का गोलाकार तालाब है। इसमें हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं का प्रतिबिंब देखना रोमांचित करता है। समुद्रतल से 12,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस ट्रेक के शीर्ष से सूर्यास्त का नजारा अद्भुत अनुभूति कराता है। इस दौरान यहां विंटर लाइन भी बनती है। इस ट्रेक पर हिरण, भालू, जंगली लोमड़ी जैसे वन्यजीवों के साथ ही विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का भी दीदार होता है। यहां ठहरने के लिए टेंट और भोजन लोहाजंग से खुद ही ले जाना पड़ता है। इसके लिए पोर्टर मिल जाते हैं।
आजम टॉप में गढ़वाल से कुमाऊं तक फैले हिमालय का दीदार
लोहाजंग से तीन किमी दूर है आजम टाप। समुद्र तल से 8,200 फीट की ऊंचाई पर यह ट्रेक उन पर्यटकों के लिए बेहतर माना जाता है, जो शौकिया ट्रेकिंग करते हैं या फिर ज्यादा पैदल चलने में असमर्थ हैं। तीन किमी के इस ट्रेक पर पर्यटक 360 डिग्री में गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक फैले हिमालय की चोटियों का दीदार कर सकते हैं।
मोनाल टॉप में स्वागत करते हैं राज्य पक्षी मोनाल
लोहाजंग से 10 किमी आगे है वाण और यहीं से शुरू होती है मोनाल टॉप की ट्रेकिंग। वाण तक सड़क मार्ग है। समुद्र तल से 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित मोनाल टॉप तक कैल और भोजपत्र के जंगलों के बीच से होकर पहुंचा जाता है।
ट्रेक करके देखें खूबसूरती
पांच किमी लंबा यह ट्रेक उत्तराखंड के राज्य पाक्षी मोनाल का प्राकृतिक आवास है। यहां पग-पग पर मोनाल देखने को मिलते हैं, मानो पर्यटकों का स्वागत कर रहे हों। राज्य वृक्ष बुरांश के लाल, सफेद और गुलाबी प्रजाति के फूल इस ट्रेक को चार चांद लगाते हैं। ये फूल मार्च से जून तक खिले रहते हैं। रास्ते में वन्यजीवों का दीदार भी होता रहता है। यहां से आली बुग्याल, वेदनी बुग्याल और रूपकुंड आसानी से नजर आते हैं।
लाटू देवता का मंदिर
वाण में मां नंदा देवी के भाई लाटू देवता का मंदिर भी है। देवदार के पेड़ के नीचे बने इस मंदिर की खास बात यह है कि इसके गर्भगृह के कपाट वर्ष में एक ही दिन बैशाख की पूर्णिमा को खुलते हैं। मान्यता है कि गर्भगृह में मणिधारी नाग विराजमान है, जिसकी मणि के प्रकाश से नेत्रों की रोशनी चली जाती है। इसलिए मंदिर के पुजारी भी आंख पर पट्टी बांधकर लाटू देवता की पूजा करते हैं। मां नंदा को कैलाश विदा करने के लिए यहां से लाटू देवता ने अगवानी की थी।
कस्तूरा मृग का है प्राकृतिक आवास
मोनाल टॉप और भेकलताल ट्रेक कस्तूरी मृग के प्राकृतिक आवास हैं। इन ट्रेकों पर पर्यटकों को वन विभाग के नियमों का सख्ती के साथ पालन करना पड़ता है। पर्यटकों को हिदायत दी जाती है कि कोई भी वन्यजीव दिखने पर शोर न मचाएं। अपना कचरा वापस लाना भी पर्यटकों की जिम्मेदारी है।
ठहरने-खाने की पर्याप्त व्यवस्था
यहां पर्यटकों के ठहरने-खाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है। लोहाजंग और वाण सहित आसपास के गांवों में 500 से 1000 रुपये के बीच कमरा मिल जाता है। यहां स्थानीय व्यंजन आलू की थिचौड़ी, गहत का साग, ओगल व फाफर की रोटी का आनंद भी लिया जा सकता है।
आवागमन के लिए रेल और हवाई सेवा
इस पर्यटन स्थल तक पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से बदरीनाथ हाईवे पर 170 किमी का सफर तय करने के बाद लोहाजंग पहुंचने के लिए कर्णप्रयाग से थराली-देवाल मोटर मार्ग पर 80 किमी चलना पड़ता है। इस मार्ग पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध है। हवाई सेवा देहरादून एयरपोर्ट तक है। यहां से गौचर (चमोली) तक हेली सेवा है, जिसके बाद 47 किमी सड़क मार्ग पर चलने के बाद गोपेश्वर पहुंचा जाता है। यहां से लोहाजंग 140 किमी है। कुमाऊं के रामनगर और हल्द्वानी से गैरसैंण या फिर कौसानी ग्वालदम होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। ट्रेकिंग के लिए घोड़ा-खच्चर के साथ गाइड और टूर ऑपरेटर भी उपलब्ध हैं।
ट्रेकिंग गाइड ने कही ये बात
विंटर डेस्टिनेशन के रूप में पिंडर घाटी पर्यटकों की पहली पसंद बन रही है। पर्यटकों की आमद बढ़ने से स्थानीय युवाओं को होम-स्टे, होटल, रेस्टोरेंट व घोड़ा-खच्चर संचालन और गाइड व पोर्टर के रूप में रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं। -हीरा सिंह गढ़वाली, ट्रेकिंग गाइड

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