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    नीति-माणा घाटी से कैलास मानसरोवर यात्रा होगी सुगम

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 05 Jul 2018 09:38 PM (IST)

    संवाद सहयोगी, गोपेश्वर : नीति-माणा घाटी से कैलाश मानसरोवर यात्रा शुरू करने की मांग फिर

    नीति-माणा घाटी से कैलास मानसरोवर यात्रा होगी सुगम

    संवाद सहयोगी, गोपेश्वर : नीति-माणा घाटी से कैलास मानसरोवर यात्रा शुरू करने की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है। 1962 से पूर्व इसी घाटी से कैलास मानसरोवर यात्रा होती थी। इसके अलावा भारत-तिब्बत व्यापार का भी यही एकमात्र मार्ग था। ग्रामीणों ने इस संबंध में एसडीएम के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजकर इस रूट से यात्रा शुरू करने की मांग की है।

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    ग्रामीणों ने पीएम को भेजे ज्ञापन में बताया कि चमोली जिले की नीति-माणा घाटी से कैलास मानसरोवर की यात्रा सुगम मानी जाती है। 1962 में भारत चीन युद्ध से पहले इसी घाटी से कैलास मानसरोवर की यात्रा होती थी। इतना ही नहीं 1962 के भारत चीन युद्ध से पहले भारत तिब्बत व्यापार भी इसी मार्ग से होता था। भारत के लोग नीती घाटी से बाड़ाहोती, दापा मंडी तिब्बत दम चो जिला सहित सिवचिलिन और घड़ टोक नामक स्थानों में व्यापार करते थे। जबकि माणा घाटी से चपरांग और थो¨लग मठ में व्यापार होता था। इतिहास भी इस बात का गवाह है कि 22 जून 1948 में को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित करने के लिए इसी मार्ग से कैलास मानसरोवर ले जाया गया था। यह इसलिए कि कैलास मानसरोवर के लिए यह मार्ग सुगम था। पुस्तक हिमालयन गजेटियर में लिखा गया है कि 22 जून 1948 को दिल्ली के व्यवसायी रूप बसंत सहित तीन लोग नीती घाटी पहुंचे थे। 24 जून को उन्होंने कैलास मानसरोवर में महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित की थी। सुगम है नीति-माणा कैलास मान सरोवर मार्ग

    नीती माणा घाटी से कैलास मानसरोवर यात्रा अति सुगम है। यात्रा के लिए दिल्ली से 231 किमी दूर ऋषिकेश है। यहां से 254 किमी जोशीमठ से 103 किमी दूर होती पास पहुंचा जा सकता है। होतीपास से कैलास मानसरोवर की यात्रा मात्र 60 किमी है। सीमांत गांवों से हो रहा पलायन

    पहले जब नीति-माणा घाटी से कैलास मानसरोवर की यात्रा होती थी। उस दौरान सीमांत गांवों के सैकड़ों लोगों को इस यात्रा से रोजगार भी मिलता था। मगर यात्रा बंद होने के बाद इन लोगों का रोजगार छिन गया है। रोजगार के अभाव में ग्रामीण सीमांत गांवों से पलायन कर रहे हैं। सीमांत गांवों के लोग द्वितीय रक्षा पंक्ति का काम करते हैं। लोगों के पलायन से द्वितीय रक्षा पंक्ति भी खतरे में नजर आ रही है।

    ज्ञापन भेजने वालों में रमेश सती, सुखदेव ¨सह बिष्ट, बलवीर रावत मनमोहन ¨सह, पुष्कर ¨सह आदि शामिल हैं।