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    Joshimath सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण, यहीं से होकर जाता है फूलों की घाटी और औली का रास्ता, 10 खास बातें

    By Jagran NewsEdited By: Nirmala Bohra
    Updated: Fri, 06 Jan 2023 08:24 AM (IST)

    Joshimath Sinking माना जाता है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य के बदरिकाश्रम आगमन से पूर्व भी जोशीमठ का अस्तित्व था। विश्व धरोहर फूलों की घाटी और विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली का रास्ता से भी यहीं से होकर जाता है।

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    Joshimath Sinking: फूलों की घाटी और औली का रास्ता से भी यहीं से होकर जाता है।

    संवाद सहयोगी, गोपेश्वर(चमोली): Joshimath Sinking: धार्मिक एवं पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चमोली जिले का जोशीमठ नगर सामरिक दृष्टि से भी विशेष अहमियत रखता है।

    माना जाता है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य के बदरिकाश्रम आगमन से पूर्व भी जोशीमठ का अस्तित्व था।शंकरचार्य 11 वर्ष की उम्र में जोशीमठ आए थे।

    बदरीनाथ धाम व हेमकुंड साहिब यात्रा का मुख्य पड़ाव

    • 49.75 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तारित 30 हजार से अधिक की आबादी वाला यह नगर चमोली जिले का अंतिम तहसील एवं ब्लाक मुख्यालय होने के साथ ही बदरीनाथ धाम व हेमकुंड साहिब यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है।
    • विश्व धरोहर फूलों की घाटी और विश्व प्रसिद्ध स्कीइंग स्थल औली का रास्ता से भी यहीं से होकर जाता है।
    • चीन सीमा से लगी नीती व माणा घाटी के लिए सेना व आइटीबीपी की समस्त गतिविधियों का संचालन भी यहीं से होता है।
    • समुद्रतल से 2500 मीटर से लेकर 3050 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ नगर का पुराना नाम ज्योतिर्मठ है। इसे बदरिकाश्रम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है।
    • आदि शंकराचार्य ने किशोरावस्था में यहीं कल्पवृक्ष के नीचे घोर तप कर ज्ञान प्राप्त किया था। यहीं से उन्होंने देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। तभी से इसे ज्योतिर्मठ कहा जाने लगा।
    • कालांतर में ज्योतिर्मठ का अपभ्रंश होकर इसका जोशीमठ नाम प्रचलित हो गया। आदि शंकराचार्य ने ही बदरीनाथ धाम में भगवान नारायण की मूर्ति स्थापित करने के बाद इस स्थान को भगवान बदरी नारायण के शीतकालीन गद्दीस्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया।

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    • तब से धाम के कपाट बंद होने के बाद शीतकाल में शंकराचार्य की गद्दी और भगवान नारायण के वाहन गरुड़जी की पूजा यहीं नृसिंह बदरी मंदिर में होती है। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य की गद्दी भी यहीं प्रतिष्ठित है।
    • जोशीमठ का उल्लेख ‘स्कंद पुराण’ के केदारखंड समेत ‘विष्णु पुराण’, ‘शिव पुराण’ आदि ग्रंथों में भी हुआ है। कहते हैं कि नृसिंह बदरी मंदिर यहां आदि शंकराचार्य के आगमन से पूर्व से ही अस्तित्व में था।
    • बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी पंडित भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि उस दौर में बदरीनाथ धाम की यात्रा पर आने वाले लोग यहां नृसिंह बदरी मंदिर में दर्शनों के बाद ही अपनी आगे की यात्रा शुरू करते थे। तब यहां नृसिंह बदरी मंदिर के आसपास ही सीमित संख्या में लोग रहते थे। लेकिन, देश की आजादी के बाद यह शहर सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो गया।
    • चीन सीमा पर स्थित नीती घाटी के अंतिम गांव नीती की दूरी यहां से 76 किमी है, जबकि नीती से नीती पास लगभग 45 किमी दूर है। इसी तरह माणा घाटी का अंतिम गांव माणा जोशीमठ से 47 किमी की दूरी पर है, जबकि माणा से माणा पास की दूरी लगभग 52 किमी है।

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    यहां लगा रहता है देश-विदेश के पर्यटकों का जमघट

    वर्ष 1960 के दशक में जोशीमठ सेना के बैस कैंप के रूप में तेजी से विकसित हुआ। इसके बाद यहां पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की भी गतिविधियां भी तेजी से बढ़ीं। वर्तमान में सीमा क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जोशीमठ बैस कैंप का काम करता है।

    यहीं से होकर विश्व प्रसिद्ध लार्ड कर्जन ट्रैक, नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क, चेनाप घाटी, भविष्य बदरी धाम का रास्ता भी जाता है। पर्यटन गतिविधियों का प्रमुख केंद्र होने के कारण वर्षभर यहां देश-विदेश के पर्यटकों का जमघट लगा रहता है।