शीतकाल के दौरान बदरीनाथ में इस मान्यता के चलते तप करेंगे 16 साधु
परंपरा के अनुसार बदरीनाथ धाम में छह माह मानव और छह माह देव पूजा होती है। शीतकाल के दौरान देवर्षि नारद यहां भगवान नारायण की पूजा करते हैं।
देवेंद्र रावत,गोपेश्वर। शीतकाल के दौरान बदरीनाथ में चारों तरफ बर्फ ही बर्फ नजर आती है और शीत के प्रकोप से बचने को पंछी भी पलायन कर जाते हैं। ऐसे विपरीत हालात में भी यहां साधु-संत निरंतर तपस्या में लीन रहते हैं। इस बार भी 45 साधुओं ने शीतकाल के दौरान बदरीनाथ में रहने की अनुमति मांगी थी। इनमें से 16 को तप करने की अनुमति मिल चुकी है।
परंपरा के अनुसार बदरीनाथ धाम में छह माह मानव और छह माह देव पूजा होती है। शीतकाल के दौरान देवर्षि नारद यहां भगवान नारायण की पूजा करते हैं। इस दौरान भगवान बदरी विशाल के मंदिर में सुरक्षा कर्मियों के सिवा और कोई भी नहीं रहता। इसी अवधि में यहां साधु-संत खुले आसमान के नीचे तप करते हैं। इस बार 45 साधुओं ने चमोली जिला प्रशासन से धाम में तप करने की अनुमति मांगी है। इनमें से 16 को अनुमति प्रदान कर दी गई है।
विदित हो कि बदरीनाथ में तप करने वाले साधु छह माह के लिए अपने डेरे पर खाने का सामान जमा रखते हैं। क्योंकि,शीतकाल के दौरान हनुमानचट्टी तक सड़क और पैदल मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। ऐसे में वहां खाद्य सामाग्री पहुंचना संभव नहीं हो पाता।
तप के पीछे शास्त्रीय मान्यता
स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि भगवान नारायण ने भी नर और नारायण रूप में बदरीनाथ धाम में तपस्या की थी और वे आज भी वहां तपस्यारत हैं। बदरीनाथ धाम को इसीलिए भू-वैकुंठ कहा गया है। मान्यता है कि यहां एक दिन तपस्या का फल एक हजार दिन की तपस्या के समान है।
शरीर को कष्ट देकर नारायण का जप करना ही तप
शीतकाल में बदरीनाथ में तप करने वाले साधु अमृतानंद का कहना है कि बदरीनाथ विश्व में तप करने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है। यहां स्वयं नारायण ने तप किया है। यहां पर नर और नारायण ने भी तप किया था। उन्होंने कहा कि शीतकाल में तप करने पर कष्ट जरूर होता है। शरीर को कष्ट देकर ही नारायण का जप करना ही तप है। शीतकाल में तप करने का आनंद ही कुछ ओर होता है।
इस बार बदरीनाथ में पांच हजार से ज्यादा यात्रियों ने किए दर्शन
भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम के कपाट 20 नंवबर को शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस साल बदरीनाथ धाम में रिकॉर्ड दस लाख 58 हजार 490 श्रद्धालुओं ने भगवान नारायण के दर्शन किए। बीते वर्ष की अपेक्षा यह संख्या एक लाख से भी अधिक है।
श्री बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल में तर्पण करने से मिलता है आठ गुना फल
मान्यता है कि बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाल तीर्थ में पिंडदान तर्पण के बाद पितृ मोक्ष के भागी होते हैं। यहां के बाद अन्य कहीं भी तर्पण की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हर वर्ष श्रद्ध पक्ष में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन अमावस्या तक लाखों हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की पितृ योनि में भटकती हुई आत्मा की मुक्ति, मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण के लिए ब्रह्मकपाल आते हैं। पिंडदान के लिए पुष्कर, हरिद्वार, प्रयाग, काशी, गया प्रसिद्ध हैं, लेकिन ब्रह्मकपाल में किया गया पिंडदान आठ गुना फलदायी माना गया है। माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण करने से वंश वृद्धि होती है।
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