आपदा के कारण गोपेश्वर शिफ्ट हुआ था मुख्यालय
भारत-तिब्बत-चीन सीमा से लगे सीमांत जिले चमोली को अपनी स्थापना के दस साल में ही आपदा का दंश झेलना पड़ा था। अलकनंदा की बाढ़ के कारण चमोली जिले के सरकारी कार्यालय बह गए थे जिसके कारण चमोली से दस किलोमीटर गोपेश्वर में जिला मुख्यालय की स्थापना की गई।

संवाद सहयोगी, गोपेश्वर: भारत-तिब्बत-चीन सीमा से लगे सीमांत जिले चमोली को अपनी स्थापना के दस साल में ही आपदा का दंश झेलना पड़ा था। अलकनंदा की बाढ़ के कारण चमोली जिले के सरकारी कार्यालय बह गए थे, जिसके कारण चमोली से दस किलोमीटर गोपेश्वर में जिला मुख्यालय की स्थापना की गई। चमोली जिले के सृजन के 62 वें स्थापना दिवस पर समाज के प्रबुद्ध वर्ग, चितकों, बुद्धिजीवियों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां की विकास यात्रा पर मंथन किया।
जनपद के स्थापना दिवस पर गुरुवार को प्रेस क्लब गोपेश्वर के भवन में आयोजित चितन बैठक वरिष्ठ पत्रकार रजपाल बिष्ट की अध्यक्षता में हुई। बिष्ट ने कहा कि 24 फरवरी 1960 को सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के चलते चमोली जिले की स्थापना हुई थी। चमोली जिले में 20 जुलाई 1970 को अलकनंदा के उफान के चलते बैलाकुची की बाढ़ से आपदा का दंश झेलना पड़ा था। तब चमोली जिले के सरकारी भवन नदी के कटाव से बह गए थे, जिस पर जिला मुख्यालय चमोली से 10 किलोमीटर दूर गोपेश्वर स्थानांतरित किया गया था। वक्ताओं ने जिले के गठन होने के 62 सालों को लेकर आयोजित इस बैठक में देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सैन्य वीरता, सामाजिक जागरूकता के आंदोलनों, राज्य आंदोलन में इस पर्वतीय इलाके के व्यक्तियों के योगदान और शिक्षा समेत सभी विषयों पर खुल कर बातें की। विकास यात्रा की अर्जित उपलब्धियों पर भी चर्चा हुई, तो समस्याओं पर भी चितन मनन किया गया। वक्ताओं ने कहा कि चमोली जिले ने इस लंबे अंतराल में विकास की उपलब्धि के साथ धार्मिक व पर्यटन के क्षेत्र में देश-विदेश में पहचान बनाई है।
इस मौके पर शेखर रावत, प्रमोद सेमवाल, जगदीश पोखरियाल, राजा तिवारी, सुरेंद्र रावत, पुष्कर नेगी, ओम प्रकाश भट्ट, केके सेमवाल, मनोज रावत, लक्ष्मण सिंह राणा, विवेक रावत, हरीश बिष्ट, राम सिंह आदि मौजूद थे।
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