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    आपदा के तीन साल बाद लौटे अंतिम गांव माणा के अच्छे दिन

    By BhanuEdited By:
    Updated: Fri, 12 May 2017 04:30 AM (IST)

    समुद्रतल से 10230 फुट की ऊंचाई पर चीन सीमा से लगे देश के अंतिम गांव माणा के अच्छे दिन फिर से लौट आए हैं। आपदा के तीन साल बाद यहां फिर से रौनक लौट आई है।

    आपदा के तीन साल बाद लौटे अंतिम गांव माणा के अच्छे दिन

    गोपेश्वर, चमोली [जेएनएन]: समुद्रतल से 10230 फुट की ऊंचाई पर चीन सीमा से लगे देश के अंतिम गांव माणा के अच्छे दिन फिर से लौट आए हैं। 2013 की आपदा के बाद इस मर्तबा चारधाम यात्रा ने शुरुआत से ही ऊंचाईयां छूनी शुरू की तो बदरीनाथ धाम से महज तीन किमी के फासले पर स्थित माणा की रंगत भी निखर आई है।

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    इन दिनों रोजाना तीन हजार से अधिक यात्री यहां पहुंचकर गांव में मौजूद चाय की आखिरी दुकान में न सिर्फ चाय की चुस्कियां लेते देखे जा सकते हैं, बल्कि यहां के कुदरती नजारों का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं। माणा की आर्थिकी में अहम भूमिका निभाने वाले यहां हस्तशिल्प उत्पाद भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बने हैं।

    छह मई को बदरीनाथधाम के कपाट खुलने के बाद से माणा गांव की रौनक देखते ही बनती है। तीन साल के अंतराल के बाद यह रौनक लौटी है। असल में 2013 में आई आपदा के असर से यह गांव भी अछूता नहीं रह पाया। हालांकि, गांव में कोई क्षति नहीं हुई, पर हनुमानचट्टी में तबाही का असर यात्रा पर भी पड़ा। 

    इसे देखते हुए बदरीनाथधाम की यात्रा के पटरी पर लौटने का किसी को बेसब्री से इंतजार था, तो वह थे माणा के निवासी। यह स्वाभविक भी है, क्योंकि स्थानीय बाशिंदों की आर्थिकी जो इस पर टिकी है।

    यात्रा को पटरी पर लाने की कोशिशों में भले ही वक्त लगा, लेकिन अब यात्रियों का विश्वास बढ़ा है। 

    बदरीनाथ में उमड़ रही रेकार्ड तोड़ इसे तस्दीक करती है। जाहिर है, इससे माणावासियों के चेहरे भी खिल उठे हैं। माणा के ग्राम प्रधान भगत सिंह बताते हैं कि रोजाना ही 3000 से अधिक यात्री यहां पहुंच रहे हैं। इससे हस्तशिल्प उत्पादों को संजीवनी मिली है। हस्तशिल्प उद्यम से गांव की महिलाओं के साथ ही बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं।

    क्षेत्र पंचायत सदस्य सुशीला देवी बताती हैं कि सैलानी यादगार के तौर पर स्थानीय महिलाओं द्वारा बनाए गए कालीन, टोपी, स्वेटर सहित ऊनी वस्त्रों की खूब खरीदारी कर रहे हैं।

    सैलानियों को यहां के धार्मिक स्थल और कुदरती नजारे भी खूब भा रहे हैं। सरस्वती के उदगम सहित धार्मिक स्थलों में पूजा-अर्चना तो हो ही रही, इस नदी में पत्थर रखकर बनाए गए 'भीम पुल' पर भी सैलानी आवाजाही कर रहे हैं। कहते हैं कि महाबली भीम ने पत्थर रखकर यह पुल बनाया था। 

    गाजियाबाद के बसुंधरा इनक्लेव निवासी संजय शर्मा कहते हैं कि बदरीनाथ धाम के दर्शनों के बाद देश के अंतिम गांव पहुंचना अपने आप में अद्भुत अनुभव है। उधर, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह के अनुसार आने वाले दिनों में भी श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ेगी।

    माणा में खुलेगा विपणन केंद्र

    ऊनी उत्पादों की मांग को देखते हुए माणा गांव में विपणन केंद्र खोलने की मशक्कत भी चल रही है। जोशीमठ ब्लॉक के प्रमुख प्रकाश रावत के मुताबिक बॉर्डर ऐरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत यहां राष्ट्रीय स्तर का हस्तशिल्प विपणन केंद्र प्रस्तावित है। इसके अस्तित्व में आने पर इसके जरिए ऊनी वस्त्रों की ब्रॉङ्क्षडग व बिक्री की जाएगी।

    छह माह रहती है रौनक

    उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे माणा गांव में 300 से अधिक परिवार रहते हैं। आजीविका का मुख्य साधन कृषि, भेड़ पालन और ऊनी हस्तशिल्प उत्पाद हैं। यहां के बाशिंदे छह माह ही यहां रहते हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद गांव की रौनक बढ़ जाती है और शीतकाल में कपाट बंद होते ही सभी परिवार चमोली में गोपेश्वर के पास बसे सात गांवों में लौट आते हैं।

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