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    लॉकडाउन में मरीजों की मददगार बनीं डॉ. कुसुम, 600 मरीजों को घर पर उपलब्ध कराई दवा

    By Raksha PanthriEdited By:
    Updated: Wed, 21 Apr 2021 04:48 PM (IST)

    लॉकडाउन में सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के बंद होने के कारण लोग एक जिले से दूसरे में भी नही जा पा रहे थे। मेडिकल स्टोर निर्धारित समय तक खोले जा रहे। चमोली जिले में जिन व्यक्तियों का इलाज देहरादून दिल्ली से चल रहा था उन्हें दवा उपलब्ध नहीं हो पा रही।

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    लॉकडाउन में मरीजों की मददगार बनीं डॉ. कुसुम, 600 मरीजों को घर पर उपलब्ध कराई दवा।

    संवाद सहयोगी, गोपेश्वर। विगत वर्ष लॉकडाउन में सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के बंद होने के कारण लोग एक जिले से दूसरे में भी नही जा पा रहे थे। मेडिकल स्टोर भी निर्धारित समय तक ही खोले जा रहे थे। चमोली जिले में जिन व्यक्तियों का इलाज देहरादून, दिल्ली से चल रहा था उन्हें दवा उपलब्ध नहीं हो पा रही थी। इस दौरान जिले के डिप्टी सीएमओ डॉ. मनवर सिंह खाती की पत्नी आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. कुसुम खाती ने जब विभाग की यह दिक्कत सुनी तो उन्होंने खुद ही इस जिम्मेदारी को संभालने का निर्णय लिया। उन्होंने जिले के 600 से अधिक मरीजों को देहरादून और दिल्ली से दवा मंगवाकर घर बैठे ही उपलब्ध करवाई। 

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    कोरोना की दूसरी लहर में भी मरीजों की मदद करने का उनका यह जज्बा बरकरार है। लॉकडाउन के दौरान प्रशासन ने स्वास्थ्य विभाग को अन्य किसी बीमारी से जूझ रहे मरीजों को उनके घर पर ही दवा उपलब्ध करवाने निर्देश दिए। लेकिन, यह कार्य इतना आसान नहीं था। दवाइयां उपलब्ध कैसे होगी यह एक बड़ी समस्या थी। डॉ. कुसुम खाती और उनकी टीम ने अप्रैल के तीसरे हफ्ते से जुलाई तक लॉकडाउन के दौरान व उसके बाद भी हृदय, कैंसर सहित अन्य गंभीर बीमारियों से देहरादून, दिल्ली सहित मैदानी अस्पतालों में उपचार करा रहे जिले के कई मरीजों को दवा मंगवाकर घर बैठे ही उपलब्ध करवाई। 

    डॉ. खाती के अनुसार एक वाट्सएप ग्रुप बनाकर जरूरतमंदों के मेडिकल पर्चे व चिकित्सक की सलाह के बाद दवाइयां घर तक पहुंचाई गई। संबंधित दवाइयां या तो देहरादून, ऋषिकेश या दिल्ली में उपलब्ध हो रही थी। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोरोना बचाव की सामग्री लेने के लिए देहरादून भेजी जाने वाली एंबुलेंस से संपर्क बनाकर दवा मंगाई गई। जिला मुख्यालय में दवा पहुंचने के बाद मरीज तक पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जिले में प्रयोग होने वाले वाहनों की मदद ली गई। डॉ. कुसुम खाती बताती हैं कि कई बार तो ऐसा हुआ कि दवाई खत्म होने के बाद मरीज की हालत बिगड़ने पर दवा की डिमांड स्वजनों ने की। जो तुरंत उपलब्ध कराई जानी थी।

    स्वजन बार-बार दवा उपलब्ध कराने का अनुरोध कर रहे थे। लिहाजा ऐसे में देहरादून से आ रहे समाचार पत्र या अन्य वाहनों से भी मदद लेकर तुरंत जरूरतमंद को दवा उपलब्ध कराई गई। दवा खत्म होने से पूर्व ही वाट्सएप ग्रुप पर मैसेज कर दिया जाता था।

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