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    आस्था से गुलजार हो रहा है आदिबदरी धाम, जानिए मंदिर की विशेषता

    By Sunil NegiEdited By:
    Updated: Fri, 01 Jun 2018 05:03 PM (IST)

    आदिबदरी धाम और कर्णप्रयाग स्थित कर्णशिला, कर्ण मंदिर व पौराणिक उमा देवी मंदिर के दर्शनों श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है।

    आस्था से गुलजार हो रहा है आदिबदरी धाम, जानिए मंदिर की विशेषता

    कर्णप्रयाग, चमोली [कालिका प्रसाद]: आपदा के बाद पहली बार पंचबदरी धाम समेत अन्य तीर्थों में भी यात्रियों की आमद बढ़ी है। खासकर आदिबदरी धाम और कर्णप्रयाग स्थित कर्णशिला, कर्ण मंदिर व पौराणिक उमा देवी मंदिर के दर्शनों श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है। सिर्फ आदिबदरी धाम में ही अब तक पांच हजार से अधिक यात्री दर्शनों को पहुंच चुके हैं।

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    कर्णप्रयाग से 20 किमी दूर रानीखेत-नैनीताल राजमार्ग पर स्थित आदिबदरी धाम में इस बार की यात्रा उम्मीद जगा रही है। मंदिर के पुजारी चक्रधर प्रसाद थपलियाल व मंदिर समिति के संरक्षक नरेंद्र सिंह चाकर बताते हैं कि आपदा के बाद पहली बार धाम में इतनी रौनक दिख रही है। यात्रियों में सर्वाधिक संख्या दक्षिण भारतीय लोगों की है। वह मंदिर में दर्शनों के बाद गढ़वाल की प्राचीन राजधानी चांदपुरगढ़ी के अवशेषों को भी देखने जा रहे हैं। 

    आकाशमुखी शिवलिंग का सम्मोहन

    आदिबदरी में 16 मंदिरों का समूह है। वैसे तो इसे भगवान नारायण के आदिकालीन धाम के रूप में मान्यता प्राप्त है। लेकिन, यहां स्थित आकाशमुखी शिवलिंग का विशेष सम्मोहन है। मंदिर के पुजारी चक्रधर प्रसाद थपलियाल बताते हैं कि आमतौर पर मंदिरों के शीर्ष पर पीतल व सोने-चांदी के निशान झंडे सहित विराजमान होते हैं। लेकिन, आदिबदरी में शिवालय के शीर्ष पर आकाशमुखी शिवलिंग सुशोभित है।

    अखर रहा सुविधाओं का अभाव

    पंचबदरी में शामिल होने के बावजूद आदिबदरी धाम में न तो पार्किंग की व्यवस्था है और न शौचालय की सुविधा ही। जीएमवीएन (गढ़वाल मंडल विकास निगम) के गेस्ट हाउस में भी ठहरने की पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में यात्री चाहकर भी यहां रुक नहीं पाते। अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो चांदपुरगढ़ी व रमणीक स्थल बैनीताल को भी देश-दुनिया में पहचान मिलेगी।

    आस्था का केंद्र बना कर्णप्रयाग

    पंचप्रयाग में तीसरा कर्णप्रयाग भी यात्रियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बदरीनाथ व हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्री अलकनंदा व पिंडारी नदी के संगम पर डुबकी लगाने के लिए कर्णप्रयाग में रुक रहे हैं। 'स्कंद पुराण' के केदारखंड में संगम पर स्थित पावन कर्ण शिला, कर्ण मंदिर व  मां उमादेवी मंदिर का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि अलकनंदा व पिंडर नदी के संगम पर मां उमा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। तबसे यह स्थान उमा प्रयाग कहा जाने लगा। कालांतर में दानवीर कर्ण के तप के चलते इसका नाम कर्णप्रयाग पड़ा।

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