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    यहां एक दंपती औलाद की तरह पाल रहा हिरन का बच्चा, उसका नाम रखा जूली

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    Updated: Wed, 18 Aug 2021 10:55 PM (IST)

    मनुष्य का प्रकृति व वन्य जीवों से सदा से गहरा नाता रहा है लेकिन चमोली जिले के केवर गांव के दर्शन लाल और उनकी पत्नी उमा देवी हिरन के बच्चे को पिछले 18 माह से औलाद की तरह पाल रहे हैं।

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    केवर गांव के दर्शन लाल के घर के अंदर सोफे पर बैठा हिरन ।

    संवाद सहयोगी, गोपेश्वर (चमोली)। मनुष्य का प्रकृति व वन्य जीवों से सदा से गहरा नाता रहा है, लेकिन चमोली जिले के केवर गांव के दर्शन लाल और उनकी पत्नी उमा देवी हिरन के बच्चे को पिछले 18 माह से औलाद की तरह पाल रहे हैं। उन्होंने बाकायदा उसका नामकरण कर बच्चे का नाम जूली रख दिया है।

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    सही तरह से पालन पोषण होने से बच्चा (नेमोरहिडस गोरल) बड़ा हो चुका है, लेकिन वन अधिनियम आड़े आने के बाद अब दंपती ने इसे वन विभाग को सौंपना चाहते हैं। वन विभाग की मजबूरी यह है कि जूली कभी वन्यजीवों के साथ रही ही नहीं वह न तो जंगली जानवरों की भाषा समझती है और न ही खतरे की आहट जानती है। वह हमेशा दंपती के साथ ही सोती है। उनका यह पशु प्रेम समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन चुका है। उनकी वन्य जीवों के प्रति ममता वन्यजीवों की तस्करी और अवैध शिकार करने वालों के लिए तमाचे से कम नहीं है।

    पिछले साल चार मार्च 2020 को जब केवर गांव की उमा देवी जंगल में चारापत्ती लेने गई थी। तब उन्होंने जंगल में एक नवजात हिरन का बच्चा पड़ा मिला। उमा देवी ने बताया कि उसने यह सोचकर उसे नहीं छेड़ा कि हो सकता है कि यह अभी पैदा हुआ है और इसकी मां भी यहीं कहीं होगी। वे कहती हैं जब वह दूसरे दिन भी घास लेने गई तो वह हिरण का बच्चा उसी स्थान पर बेसुध पड़ा था। तो वह घास काटना छोड़कर उसी समय उसे घर ले आई। फिर उसको बच्चे की तरह पालने लगे। और उसका नाम जूली रखा गया।

    उमा देवी के पति दर्शन लाल कहते हैं कि वह बचपन से ही उनके साथ सोती है, खाती है और रहती है। उनके बच्चों के साथ खेलती कूदती है। वह भावुक होकर कहते हैं कि अब जूली बड़ी हो गई है। उसे अब आदिमियों के साथ दिक्कतें होंगी और जंगल में भी उसे नहीं छोड़ा जा सकता है। क्योंकि वह जंगल की भाषा तो समझती ही नहीं है। उनके आंखों से आंसू छलक जाते हैं जब वह कहते हैं कि अगर जूली को सीधे जंगल में छोड़ा जाएगा तो वह बहुत आसानी से वह किसी का भी शिकार बन सकती है। वन्य जीव अधिनियम के कारण वह जूली को अपने पास भी नहीं रख सकते हैं। उन्होंने वन विभाग से आग्रह किया है कि अब जूली को अच्छे अभ्यारण्य में रखा जाए। जहां वह अपने संसार की बोली भाषा सीख सके। बदरीनाथ वन प्रभाग के वन दरोगा मोहन प्रसाद सती ने कहा कि जूली को जल्दी ही किसी अच्छे स्थान पर सुरक्षा में भेजने की कार्यवाही शुरू की जा रही है। तब तक जूली को उसको पालने वाले दंपती के पास ही रखने को कहा गया है।