चीन सीमा से लगी नीती घाटी में अनूठी परंपरा, एक साल तक दो गांव में मांसाहार पर लगा निषेध; जानिए
भारत-चीन सीमा से लगे नीती घाटी के बाम्पा व फरकिया गांव में भागवत कथाओं के आयोजन के चलते बकरे की बलि व मांस के सेवन पर एक साल के लिए पाबंदी लग गई है।
गोपेश्वर, हरीश बिष्ट। भारत-चीन सीमा से लगे नीती घाटी के बाम्पा व फरकिया गांव में बकरे की बलि व मांस के सेवन पर एक साल के लिए पाबंदी लग गई है। यह पाबंदी इन गांवों में भागवत कथाओं के आयोजन के चलते लगाई गई है। परंपरा के अनुसार नीती घाटी के जिस भी गांव में भागवत कथा का आयोजन होता है, वहां न तो सालभर बकरे बलि दी जाती और मांस का सेवन ही किया जाता है।
चमोली जिले की नीती घाटी के गांव अपनी विशिष्ट परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। इन गांवों में भी देवभूमि उत्तराखंड के अन्य स्थानों की तरह लोग मांस का सेवन करते हैं और समय-समय पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में बकरे की बलि भी दी जाती है। मगर, इससे हटकर नीती घाटी की एक अनूठी परंपरा भी है। घाटी के अलग-अलग गांवों में हर साल ग्रामीणों की ओर से भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। इस साल आयोजन की बारी बाम्पा व फरकिया गांव की थी। भागवत कथाओं के समापन के बाद दोनों गांवों में मांस के सेवन और बकरे की बलि पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जो एक साल तक जारी रहेगा।
बाम्पा निवासी 65-वर्षीय रिटायर्ड बैंक अधिकारी बच्चन सिंह पाल कहते हैं कि सीमा पर जब भी किसी गांव भागवत कथा होती है, एक साल तक लोग मांस खाने के बारे में सोचते तक नहीं। फरकिया निवासी 63-वर्षीय कल्याण सिंह रावत बताते हैं कि सीमांत गांवों में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं, जो पीढ़यों से चली आ रही परंपराओं को संजोये हुए हैं। बाम्पा के प्रधान धर्मेंद्र पाल के अनुसार घाटी की नई पीढ़ी भी अपने बुजुर्गों की परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए उत्साहित रहती है।
यह भी पढ़ें: Chardham yatra: चारधाम यात्रा इस बार मानसून से पहले ही पड़ी धीमी