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कदम थाम लेता है स्वर्गारोहिणी का सम्मोहन

हरीश बिष्ट, गोपेश्वर धरती पर अगर स्वर्ग की अनुभूति करनी है तो बदरीनाथ धाम के पास स्वर्गारोहिणी चले

By Edited By: Published: Sun, 18 Sep 2016 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 18 Sep 2016 01:00 AM (IST)

हरीश बिष्ट, गोपेश्वर

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धरती पर अगर स्वर्ग की अनुभूति करनी है तो बदरीनाथ धाम के पास स्वर्गारोहिणी चले आइए। मान्यता है कि ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर ने स्वान के साथ स्वर्गारोहिणी से ही सशरीर वैकुंठ के लिए प्रस्थान किया था। देखा जाए तो सचमुच अद्भुत है यहां का सौंदर्य। एक बार कदम रखने पर लौटने का मन ही नहीं करता। यही वजह है कि इन दिनों खुशगवार मौसम होने के कारण स्वर्गारोहिणी पहुंचने वाले यात्रियों का उत्साह देखते ही बन रहा है।

बदरीनाथ धाम से नारायण पर्वत पर 30 किमी का पैदल सफर तय कर स्वर्गारोहिणी पहुंचा जा सकता है। यह क्षेत्र वर्षभर बर्फ से ढका रहता है। मार्ग का ज्यादातर हिस्सा हिमखंडों से पटे रहने के कारण इस सफर में तीन दिन लग जाते हैं। कुदरत ने यहां खुले हाथों से सुंदरता बिखेरी है। कहीं झरने तो कहीं दूर तक फैले बुग्याल (मखमली घास के मैदान) यात्रियों व प्रकृति प्रेमियों को सम्मोहित सा कर देते हैं। चारों ओर बर्फ से ढकी पहाड़िया असीम शांति का अहसास कराती हैं। जिधर नजर दौड़ाओ सैकड़ों प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल यात्रियों की आगवानी करते नजर आते हैं।

कहते हैं कि राजपाट छोड़ने के बाद पांचों भाई पांडव द्रोपदी सहित इसी रास्ते से स्वर्ग गए थे। भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रोपदी तो स्वर्गारोहिणी पहुंचने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। लेकिन, धर्मराज युधिष्ठिर ने एक स्वान के साथ पुष्पक विमान से सशरीर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया। इस मान्यता ने स्वर्गारोहिणी का महत्व और बढ़ा दिया। इन दिनों मौसम खुला होने के कारण लगातार यहां यात्रियों की आवाजाही हो रही है। भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद बड़ी संख्या में यात्री स्वर्गारोहिणी पहुंच रहे हैं। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि स्वर्गारोहिणी की यात्रा विकट है, बावजूद इसके यहां का दिव्य आकर्षण यात्रियों को अपनी ओर खींच रहा है।

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प्रशासन की अनुमति जरूरी

स्वर्गारोहिणी जाने के लिए जोशीमठ तहसील प्रशासन की अनुमति जरूरी है। इसके अलावा वन विभाग से भी यहां जाने की अनुमति लेनी पड़ती है। क्योंकि यह क्षेत्र नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के अधीन आता है। वन विभाग स्वर्गारोहिणी के लिए प्रति यात्री 150 रुपये किराया लेता है। पोर्टर व गाइड की व्यवस्था यात्रियों को खुद करनी होती है।

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झील की परिक्रमा करते हैं यात्री

स्वर्गारोहिणी में तीन किमी व्यास की एक विशाल झील है। यात्री स्वर्गारोहिणी पहुंचकर इस झील की परिक्रमा जरूर करते हैं। मान्यता है कि झील की परिक्रमा करने से उन्हें पुण्य प्राप्त होता है।

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तीन पड़ावों से गुजरते हैं यात्री

स्वर्गारोहिणी की यात्रा बेहद विकट है। बदरीनाथ धाम से 10 किमी की दूरी पर लक्ष्मी वन (भोजपत्र का विशाल जंगल), फिर 10 किमी आगे चक्रतीर्थ और उसके बाद छह किमी आगे सतोपंथ पड़ता है। यहां से चार किमी खड़ी चढ़ाई चढ़कर होते हैं स्वर्गारोहिणी के दर्शन। प्राचीन काल में यात्री इन्हीं पड़ावों पर स्थित गुफाओं में रात्रि विश्राम करते थे। परंतु, अब यात्री साथ में टेंट ले जाते हैं।

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सतोपंथ में किया था पांडवों ने स्नान

स्वर्गारोहण के दौरान पांडवों ने 14300 फीट की ऊंचाई पर स्थित सतोपंथ झील में स्नान किया था। इसलिए ¨हदू धर्मावलंबियों के लिए इस झील का विशेष महत्व है। मान्यता है कि एकादशी पर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु व महेश यहां स्नान करने आते हैं।

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