Uttarakhand Tourism: बैजनाथ कृत्रिम झील में लोग उठा रहे बोटिंग का लुफ्त, 2013 में शुरू हुआ था निर्माण कार्य
बागेश्वर। बैजनाथ कृत्रिम झील में अब लोग नैनीताल की तरह बोटिंग का आनंद ले रहे हैं। स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले पर्यटकों को भी इसका लाभ मिलने लगा है। दीपावली पर्व पर आने वाले सैलानियों के लिए यह आकर्षक रहेगा जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी बढ़ेगा। बैजनाथ कृत्रिम झील को सिंचाई विभाग संचालित कर रहा है। वर्षा के बाद गोमती नदी में पानी भी है।

जागरण संवाददाता, बागेश्वर। Uttarakhand Tourism: बैजनाथ कृत्रिम झील में अब लोग नैनीताल की तरह बोटिंग का आनंद ले रहे हैं। स्थानीय लोगों के साथ-साथ यहां आने वाले पर्यटकों को भी इसका लाभ मिलने लगा है। दीपावली पर्व पर आने वाले सैलानियों के लिए यह आकर्षक रहेगा, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार भी बढ़ेगा। बैजनाथ कृत्रिम झील को सिंचाई विभाग संचालित कर रहा है। वर्षा के बाद गोमती नदी में पानी भी है।
2022 में नौकायन भी हो गया शुरू
2013 में झील का निर्माण प्रारंभ हुआ था और अब बीते वर्ष से नौकायन भी शुरू हो गया है। बैजनाथ धाम आस्था का प्रतीक है। धार्मिक पर्यटन के साथ ही बैजनाथ को झील ने नया लुक भी मिला है। इस बीच बंगाली पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। बोटिंग, जोरविंग बाल और ओपन थिएयटर का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकेंगे। पहाड़ पर पर्यटन रोजगार व राजस्व का प्रमुख स्रोत है। अब लोग पहाड़ व बर्फ देखने के अलावा विविधता चाहते हैं। इसको देखते हुए प्रशासन पर्यटकों के लिए पर्यटन के अन्य आयामों को विकसित कर रहा है। छह बोट, छह जोरबिग बाल का संचालन किया जा रहा है।
1980 के दशक में उठी थी झील की मांग
बैजनाथ मंदिर के पास कृत्रिम झील का निर्माण और उसमें नौकायन की मांग कत्यूर विकास संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूरन पाठक, सामाजिक कार्यकर्ता जीवन लाल वर्मा ने 1980 के दशक में उठाई थी। अविभाजित उप्र के तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह ने 80 के दशक में बैजनाथ आगमन पर झील निर्माण, संग्रहालय निर्माण सहित कई घोषणाएं बैजनाथ में की थी।
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प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है बैजनाथ
जिला पर्यटन अधिकारी पीके गौतम के अनुसार, गोमती नदी के किनारे एक छोटा सा नगर बैजनाथ है। यह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्तराखंड में राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रुप में मान्यता प्राप्त है। बैजनाथ उन चार स्थानों में से एक है, जिन्हें भारत सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत शिव हेरिटेज सर्किट से जोड़ा जाना है। प्राचीनकाल में कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था और तब यह कत्यूरी राजवंश के शासकों की राजधानी थी। कत्यूरी राजा तब गढ़वाल, कुमाऊं तथा डोटी क्षेत्रों तक राज करते थे।
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