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    ग्लेशियर को तीन जिलों के रास्तों से जाते हैं पर्यटक

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 25 Oct 2021 04:52 PM (IST)

    पिडारी कफनी ग्लेशियर और सुंदरढूंगा घाटी के ट्रेकिग रूट अलग-अलग होने के कारण प्रशासन के पास भी ट्रेकरों की जानकारी नहीं होती है। चमोली पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले से अधिकतर ट्रेकर हिमालय की तरफ जाते हैं। तीन जिलों के बीच समन्वय नहीं होने के कारण आपदा आने पर उन्हें रेस्क्यू करना मुश्किल हो जाता है।

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    ग्लेशियर को तीन जिलों के रास्तों से जाते हैं पर्यटक

    जासं, बागेश्वर : पिडारी, कफनी ग्लेशियर और सुंदरढूंगा घाटी के ट्रेकिग रूट अलग-अलग होने के कारण प्रशासन के पास भी ट्रेकरों की जानकारी नहीं होती है। चमोली, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले से अधिकतर ट्रेकर हिमालय की तरफ जाते हैं। तीन जिलों के बीच समन्वय नहीं होने के कारण आपदा आने पर उन्हें रेस्क्यू करना मुश्किल हो जाता है।

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    पिछले तीन दिनों से जिला प्रशासन की टीम सुंदरढूंगा में हताहत पांच बंगाली ट्रेकरों और एक लापता जैकुनी गांव के गाइड को रेस्क्यू नहीं कर पा रही है। गाइडों के अनुसार कुछ ट्रेकर सुंदरढूंगा से चमोली जिले की तरफ भी जाने की सूचना है। लेकिन उनकी सलामती के लिए केवल दुआएं की जा सकती है।

    पर्वतारोही केशव भट्ट बताते हैं कि ट्रेकर पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले से भी पिडर घाटी की तरफ प्रवेश करते हैं। जिनके लिए गोगिना, धूर और खाती में पंजीकरण केंद्र की स्थापना की जा सकती है। वाहनों की रूटीन चेकिग भी तय होनी चाहिए। खरकिया और खाती में वन विभाग की चौकी खुलने पर उसका लाभ नहीं मिलेगा। एक रास्ता सौंग से भी जाता है। यह पैदल रास्ता है और धाकुड़ी होते हुए खरकिया पहुंचता है। इसके अलावा यहीं से दूसरा रास्ता सूपी गांव जाता है और ट्रेकर सीधे खाती पहुंचते हैं। चमोली जिले से आने वाले ट्रेकर धूर पहुंचते हैं। स्थानीय गाइड जरूरी

    देसी और विदेशी ट्रेकरों के साथ स्थानीय गाइडों की मदद जरूरी होनी चाहिए। स्थानीय गांव के लोगों का पिडर घाटी एक तरह से जंगल है। वह लगभग प्रतिदिन हिमालय की तरफ आते और जाते हैं। यदि पर्यटक भटक गए तो उन्हें यह लोग रास्ता दिखाने आदि में मदद कर सकते हैं।

    शोपीस बने हैं सेटेलाइट फोन

    पर्वतारोही भुवन चौबे ने कहा कि प्रशासन ने आपदा के समय सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए बादियाकोट, बाछम, खाती आदि स्थानों पर सेटेलाइट की व्यवस्था की थी। लेकिन यह शोपीस बने हुए हैं। इसके अलावा धूर में लगा बीएसएनएल का टावर भी ठप है। यदि स्थानीय ग्रामीणों को वाकी टाकी रखने की अनुमति मिलती है तो यह ट्रेकरों के लिए भी लाभदायक होगा।

    हिमालय की तरफ जाने वाले अधिकतर देसी पर्यटक भौगोलिक परिस्थितियों से अंजान होते हैं। उन्हें साथ में दवाइयां, आक्सीजन आदि साथ में ले जाना आवश्यक है। हिमालय का मौसम पल में बदल जाता है। बर्फबारी और बारिश होती है। जिसके बाद ठंड लगती है। बिना दवाइयों के यहां जाना भी जान को खतरा रहता है।

    -डा. राजीव उपाध्याय, जिला अस्पताल