उत्तराखंड में मौजूद महात्मा गांधी की इस अमानत को 100 साल पूरे, इतिहास और विरासत का अनोखा संगम
उत्तराखंड में महात्मा गांधी की एक धरोहर ने 100 साल पूरे कर लिए हैं। यह ऐतिहासिक स्थल गांधीजी के जीवन और आदर्शों का प्रतीक है। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और लोगों को उनके मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

नुमाइशखेत मैदान में रेडक्रास ने चरखे को किया सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित। जागरण
जागरण, संवाददाता, बागेश्वर। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर इस वर्ष एक विशेष ऐतिहासिक क्षण जुड़ गया। वर्ष 1925 में बोरगांव कारीगर जीत सिंह टंगड़िया ने इस बनाया था। बागेश्वरी चरखा, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की। रविवार को 100 पूरे होने पर पुनः सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया।
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, टंगड़िया ने 1925 में यह चरखा महात्मा गांधी को भेंट किया था। इसकी गुणवत्ता, उपयोगिता तथा हस्तकला-कौशल से प्रभावित होकर गांधीजी ने बाद में उनसे बड़ी संख्या में चरखे तैयार करने का आग्रह भी किया। यह चरखा केवल एक उपकरण नहीं, बल्कि उत्तराखंड के श्रम, स्वावलंबन, सादगी तथा राष्ट्रीय आंदोलन में स्थानीय योगदान का जीवंत प्रतीक है।
रजत जयंती के अवसर पर रेडक्रास सोसायटी ने इस चरखे को विशेष रूप से प्रदर्शित किया। प्रदर्शनी में आए लोगों ने बड़ी उत्सुकता तथा सम्मान के साथ इस चरखे को देखा। उसकी ऐतिहासिक महत्ता को सराहा। यह चरखा आज भी उस संघर्ष, आत्मनिर्भरता तथा समर्पण की प्रेरक स्मृति के रूप में खड़ा है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को जन-आंदोलन का रूप दिया।
जिलाधिकारी आकांक्षा कोंडे ने कहा कि राज्य स्थापना दिवस पर इस 100 वर्षीय धरोहर का पुनर्स्मरण न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध करता है, बल्कि नई पीढ़ी को अपने इतिहास से जोड़ने का अवसर भी प्रदान करता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।