रिटायर्ड कैप्टन नारायण सिंह ने नशे के दलदल में फंसे युवाओं को दी नई दिशा, देते हैं सेना भर्ती का निश्शुल्क प्रशिक्षण
कैप्टन नारायण सिंह 2017 में सेना से सेवानिवृत्त हुए। घर वापसी के बाद जब उन्होंने अपने क्षेत्र के युवा वर्ग पर नजर डाली तो उन्हें सबसे अधिक चिंता उनके भविष्य की हुई। नशे तथा गलत संगत में पड़े युवाओं को देख ठान लिया कि सेना में भर्ती के समय ली गई देश सेवा की सौगंध को अब नए रूप में अंजाम देना होगा।

घनश्याम जोशी, बागेश्वर। कैप्टन नारायण सिंह 2017 में सेना से सेवानिवृत्त हुए। घर वापसी के बाद जब उन्होंने अपने क्षेत्र के युवा वर्ग पर नजर डाली तो उन्हें सबसे अधिक चिंता उनके भविष्य की हुई। नशे तथा गलत संगत में पड़े युवाओं को देख ठान लिया कि सेना में भर्ती के समय ली गई देश सेवा की सौगंध को अब नए रूप में अंजाम देना होगा। पहाड़ का कोई भी प्रतिभाशाली युवा प्रशिक्षण व संसाधनों के अभाव की वजह से सेना में भर्ती होने से न चूके, इसके लिए स्वयं को फिर झोंकना होगा। आखिरकार प्रण साकार हुआ और नौ साल में 456 युवा सेना का अंग बन चुके हैं। इस बार उनकी निश्शुल्क प्रशिक्षण देने वाली यूथ इंडिया एकेडमी से 56 युवा अग्निवीर बनकर निकले हैं।
रूनीखेत के उडलगांव निवासी कैप्टन नारायण सिंह सेना में इंस्ट्रक्टर (प्रशिक्षक) रहे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने दो युवाओं से प्रशिक्षण की शुरुआत की। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़कर 25 तक पहुंच गई। वर्ष 2018 में पहली बार उनकी ट्रेनिंग से पांच युवा सेना में भर्ती हुए। इसके बाद से सफलता का यह सिलसिला निरंतर बढ़ता गया। पिछले नौ वर्षों में वह 456 युवाओं को भारतीय सेना में भर्ती करवाने का लक्ष्य पार कर चुके हैं। जिनमें अधिकांश अग्निवीर शामिल हैं। 2025 उनके लिए उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष घोषित अग्निवीर परिणाम में 56 युवाओं के चयन की खबर ने पूरे क्षेत्र को उत्साहित कर दिया। सभी चयनित युवा गुरु के चरणों में फूलमालाएं लेकर पहुंचे तो कैप्टन का सीना भी गर्व से और चौड़ा हो गया।
युवाओं को ऐसे तराशते हैं कैप्टन
कैप्टन (रि.) नारायण सिंह का प्रशिक्षण कठोर अनुशासन तथा उच्च स्तर की शारीरिक तैयारी पर टिका है। वह रोजाना सुबह 5:25 बजे युवाओं को मैदान में इकट्ठा करते हैं। साढ़े पांच बजे से शुरू होने वाली ट्रेनिंग में दौड़, बीम, एक्सरसाइज, शरीर सौष्ठव के साथ-साथ लिखित परीक्षा की तैयारी भी शामिल होती है। लगभग साढ़े तीन घंटे की यह कड़ी ट्रेनिंग युवाओं में न केवल शारीरिक क्षमता बढ़ाती है बल्कि उनमें आत्मविश्वास भी पैदा करती है।
सबसे अधिक मेहनत लिखित परीक्षा में
कैप्टन यह मानते हैं कि फिजिकल के बाद सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लिखित परीक्षा की होती है। इसलिए वह पिछले नौ वर्षों का पूरा मेटेरियल जुटाकर रखते हैं। किस वर्ष क्या प्रश्न आया, किस पैटर्न पर पेपर बदला आदि का अध्ययन कर युवाओं को उसी हिसाब से पढ़ाते हैं। वह स्वयं संभावित प्रश्न पत्र तैयार करते हैं तथा समय-समय पर टेस्ट भी लेते हैं। इस कार्य में उन्हें शिक्षक चंदन सिंह परिहार का भी सहयोग मिलता है।
कुमाऊं-गढ़वाल से लेकर एमपी-यूपी तक पहचान
वर्तमान में उनके प्रशिक्षण केंद्र में 50 युवा ट्रेनिंग ले रहे हैं। इनमें बागेश्वर, कपकोट, गरुड़, कांडा, रीमा, सोमेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ सहित गढ़वाल क्षेत्र के युवा शामिल हैं। उनकी बढ़ती ख्याति मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश तक भी पहुंची है। वहां से आए छह युवाओं ने भी प्रशिक्षण शुरू किया लेकिन पहाड़ की जलवायु व कठिन जीवनशैली के कारण बीमार होने पर उन्हें वापस लौटना पड़ा। इसके अलावा वह उत्तराखंड पुलिस में भर्ती हो चुकी 50 युवतियों को भी प्रशिक्षित कर चुके हैं। जिनमें 10 युवतियों ने फिजिकल टेस्ट में 100 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे।
मैं सेना में प्रशिक्षक रहा। सेवानिवृत्ति के बाद जब गांव आया तो पहाड़ के आर्थिक रूप से कमजोर व नशे की लत में पड़ रहे युवाओं की दशा तथा दिशा दोनों समझी। तभी प्रण लिया कि किसी युवा को भटकने नहीं दूंगा। आज जब बच्चे भर्ती होकर लौटते हैं तो गर्व से कहता हूं कि मेरी सबसे बड़ी कमाई यही हैं। उनका आत्मविश्वास ही मेरा पुरस्कार है।- कैप्टन (रि.) नारायण सिंह, प्रशिक्षक

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