Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    परिसीमन से धूमिल हुई उम्मीदें

    सुरेश पांडेय, बागेश्वर: राज्य गठन की मूल अवधारणा ही यह थी कि छोटी विधान सभा व प्रशासनिक इकाइयां होंग

    By Edited By: Updated: Thu, 12 Jan 2017 12:59 AM (IST)

    सुरेश पांडेय, बागेश्वर: राज्य गठन की मूल अवधारणा ही यह थी कि छोटी विधान सभा व प्रशासनिक इकाइयां होंगी तो तेजी से विकास होगा। राज्य गठन के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी विधान सभाओं के गठन को देखकर लग भी रहा था कि दूर गांवों में बैठे ग्रामीण तक विकास की किरण पहुंचेगी, लेकिन जनसंख्या के आधार पर हुए परिसीमन ने विकास की उम्मीदों को धूमिल कर दिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राज्य गठन के वक्त बागेश्वर में कपकोट व बागेश्वर सहित कांडा के नाम से अतिरिक्त विधान सभा सीट थी। उस वक्त विधान सभा सीटों का निर्धारण क्षेत्रफल के आधार पर किया गया था। वर्ष 2009 में जनसंख्या के आधार पर दोबारा हुए परिसीमन में चुनाव आयोग ने पहाड़ की कई सीटों को समाप्त कर दिया। जिसमें से बागेश्वर की कांडा सीट भी शामिल है। कांा सीट में सिर्फ दो ही चुनाव हो सके उसके बाद कांडा सीट का कुछ हिस्सा कपकोट तो कुछ हिस्सा बागेश्वर विधान सभी क्षेत्र में शामिल कर तीन विधान सभाओं का दायरा दो में सीमित कर दिया गया।

    - बाक्स

    जटिल भौगोलिक सीट है कपकोट

    बागेश्वर: कांडा सीट के विलय के उपरांत कपकोट सीट क्षेत्रफल के लिहाज से बेहद जटिल हो गई है। कपकोट, कांडा, शामा, बनलेख तहसीलों में विभाजित कपकोट विधान सभा में ग्राम आरे से शुरू होकर रीमा, बनलेख, धरमघर, स्यांकोट, रावतसेरा, बदियाकोट, शामा सहित बागेश्वर के दफौट क्षेत्र तक फैली हुई है। इतने बड़े क्षेत्रफल वाली विधान सभा में घूमने के लिए कई दिन लग जाते हैं। वहीं मैदानी क्षेत्रों की छोटी विधान सभा क्षेत्रों में एक ही दिन में घूमा जा सकता है।

    माजिला पहले व भौर्याल आखिरी विधायक बने

    बागेश्वर: राज्य गठन के उपरांत बनीं कांडा विधान सभा सीट में कांग्रेस के उमेद सिंह माजिला पहले विधायक बने। वर्ष 2002 में हुए पहले चुनाव में उन्होंने भाजपा के बलवंत सिंह भौर्याल को पराजित किया। 2007 में हुए दूसरे चुनाव में बलवंत सिंह भौर्याल ने उमेद सिंह माजिला को पराजित कर पिछली हार का बदला भी चुकाया। इतिहास के पन्नों में दर्ज हुई कांडा विधान सभा सिर्फ दो ही चुनाव देख सकी। 2012 का चुनाव नए परिसीमन के आधार पर लड़ा गया।

    - बाक्स

    बागेश्वर सहित पहाड़ से सीटों को कम किए जाने से राज्य गठन की मूल अवधारणा ही खत्म कर दी गई। देश में कई ऐसे राज्य हैं जहां पर जनसंख्या सहित क्षेत्रफल को भी परिसीमन का आधार बनाया गया है, लेकिन उत्तराखंड के मामले में केंद्र सरकार व चुनाव आयोग ने सौतेला व्यवहार किया। विकास के मामले में इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। सरकारें विधान सभावार योजनाएं आवंटित करती हैं, साथ ही विधायक निधि का भी बड़ा नुकसान हुआ है। राजनैतिक तौर पर पर्वतीय क्षेत्र की शक्ति कमजोर हुई है। केंद्र सरकार व चुनाव आयोग पर्वतीय क्षेत्र के लिए क्षेत्रफल को आधार बनाते हुए परिसीमन करे।

    - अधिवक्ता, महेश परिहार, राज्य आंदोलनकारी