अल्मोड़ा की विशिष्ट पहचान को जिदा रखेगी हिमाचल की पटालें
जिले की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की विशिष्ट पहचान बन चुकी पटाल (मार्ग पर बिछाए जाने वाले पत्थर) संस्कृति को फिर से पुनर्जीवित कर उसे पुराना स्वरूप दिया जा रहा है। लेकिन इस बार पटाल अल्मोड़ा जिले के नहीं होंगे बल्कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के होंगे।

चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा
जिले की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की विशिष्ट पहचान बन चुकी पटाल (मार्ग पर बिछाए जाने वाले पत्थर) संस्कृति को फिर से पुनर्जीवित कर उसे पुराना स्वरूप दिया जा रहा है। लेकिन इस बार पटाल अल्मोड़ा जिले के नहीं होंगे, बल्कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के होंगे। 38 करोड़ 50 हजार की लागत से इस पूरी योजना पर कार्य किया जाएगा।
सांस्कृतिक नगरी की ऐतिहासिक विरासत और उसने पुराने स्वरूप को बचाने के लिए कार्य शुरू होने वाला है। मिलन चौक से पलटन बाजार तक करीब दो किमी पैदल मार्ग पर फिर से पटाल बिछाई जाएगी। शासन को आगणन कर भेज दिया गया है। धन स्वीकृत होते ही कार्य शुरू हो जाएगा। पटाल खत्म होने के कारण इस बार इसको हिमाचल प्रदेश से मंगाया जा रहा है। वहां की पटाल और यहां की पटाल में कोई अंतर नहीं है। करीब 15 साल पहले नगरपालिका ने अल्मोड़ा की पहचान इस पटाल को हटा कर राजस्थान के कोटा स्टोन लगा दिए थे। जिसका विरोध भी हुआ। विभागों को मिली अलग-अलग जिम्मेदारी
अल्मोड़ा बाजार को ऐतिहासिक स्वरूप में लाने के लिए चार विभाग पेयजल संसाधन विकास एवं निर्माण निगम, जलसंस्थान, हाइडिल व नगरपालिका मिलकर कार्य करेगी। सीएनडीएस पटाल बाजार के दोनों ओर सामने के मकानों में एक जैसा रंग करेगी। इसके अलावा यहां के मकानों की रेलिग और खिड़कियां को लकड़ियों का बनाएगी। नगरपालिका पटाल बाजार के दोनों ओर एंटीक स्ट्रीट लाइटें लगाएगी और ड्रेन सिस्टम यानि नाली बनाएगी। हाइडिल अपने खुले तारों और जलसंस्थान भी अपनी खुली पेयजल लाइनों को अंडरग्राउंड करेगा।
चंद राजाओं की देन पटाल बाजार
वर्ष 1563 में पूर्व चंद राजा कल्याणचंद ने जब चम्पावत से अपनी राजधानी अल्मोड़ा स्थानांतरित की तो अनूठे पत्थर यानी पटाल के फर्श बिछा बाजार स्थापित किया। मकान, पैदल मार्ग, मंदिर, आंगन ही नहीं बल्कि उस दौर में प्राकृतिक जल स्त्रोतों और नौलों के निर्माण में भी पटालों का ही प्रयोग किया जाता था। भूमि में पानी के रिचार्ज के लिए इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती थी। चंद राजाओं ने अल्मोड़ा नगर का करीब दो किमी लंबा बाजार पटालों से ऐसा पाटा कि अल्मोड़ा का बाजार ही पटाल बाजार के नाम से प्रसिद्ध हो गया। पटाल के थे भंडार
अल्मोड़ा जिले में पटालों का अकूत भंडार था। बल्ढोटी, पेटशाल, सल्ट, द्वाराहाट, गंगोली, क्वारब जैसे कई स्थानों पर काफी मात्रा में पटाल पाई जाती थी। जहां इन्हें खास तकनीक के माध्यम से लंबी और चौड़ी स्लेटों के रूप में निकाला जाता था। मोटाई में यह करीब एक से तीन इंच के हुआ करती थी। खनिज नियमावली, वन अधिनियमों के कारण पटालों का दोहन मुश्किल हो गया। गायब हुए पटाल शिल्पी
पटाल, शिल्पियों के रोजगार का प्रमुख साधन हुआ करते था। अब वह लगभग गायब ही हो गए हैं। शिल्पियों ने अपने हुनर को इन पटालों में तराशा और यहीं कार्य उनकी कई पीढि़यों के लिए रोजी-रोटी का माध्यम बन गया। शासन को आगणन कर भेज दिया है। उम्मीद है जल्द ही पटाल बाजार पर भी कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
- हरीश प्रकाश, प्रोजेक्ट मैनेजर, सीएनडीएस, अल्मोड़ा
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