सुख स्मृद्धि और हरियाली का प्रतीक है लोक पर्व हरेला -हरेला पर्व पर विशेष
उत्तराखंड में हरेला त्योहार सुख स्मृद्धि और हरियाली के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

सुख स्मृद्धि और हरियाली का प्रतीक है लोक पर्व हरेला
-हरेला पर्व पर विशेष
संवाद सहयोगी, दन्यां : उत्तराखंड में हरेला त्योहार सुख, समृद्धि और हरियाली के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस लोक पर्व को अच्छी फसल के सूचक के रूप में भी बड़े धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है। 10 दिनों के अंतराल में पांच या सात अनाजों से उगाए हरेले को देवताओं को चढ़ाने के बाद घर के हर सदस्यों के सिर में जी रया जागि रया यो दिन यो बार भेटनै रया... कुमाऊंनी शुभाशीष के साथ रखा जाता है।
श्रावण मास की संक्रांति के दिन मनाया जाने वाला लोक पर्व हरेला प्रकृति से जुड़ा हुआ है। सावन माह लगने से नौ दिन पूर्व आषाढ़ माह में पांच अथवा सात अनाजों को मिलाकर छोटी छोटी टोकरियों में बोया जाता है। सूर्य की रोशनी से बचाकर घर में मंदिर के पास टोकरियों का रखा जाता है। प्रतिदिन पानी देने के उपरांत दूसरे दिन से ही बीज अंकुरित होकर पीली पौधे बनने लगती है। दसवें दिन सावन माह की संक्रांति को काट कर सर्वप्रथम देवताओं को और उसके बाद घर के प्रत्येक सदस्यों के सिर में शुभाशीष वचनों के साथ रखा जाता है।
वर्ष में तीन बार बोया जाता है हरेला
उत्तराखंड में हरेला वर्ष में तीन बार बोया जाता है। पहला हरेला हिंदू नव वर्ष चैत्र माह के वासंतिक नवरात्रों में प्रतिपदा के दिन बोकर दशमी के दिन काटा जाता है। दूसरा हरेला सावन माह में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। तीसरा हरेला शारदीय नवरात्रों के प्रतिपदा को बोकर दशहरा के दिन काटा जाता है। श्रावण मास भगवान शंकर का विशेष माह होने की वजह से श्रावण माह के हरेले का विशेष महत्व माना गया है।
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