Uttarakhand: अल्मोड़ा में मां नंदा–सुनंदा की प्रतिमा स्थापित, पूजा को उमड़े भक्त
अल्मोड़ा में मां नंदा देवी परिसर में प्रतिमा स्थापित होने के बाद भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। भाद्रपद मास में नंदा-सुनंदा पूजा का आयोजन श्रद्धा और संस्कृति का संगम है। यह पर्व स्त्री शक्ति और बहनत्व का प्रतीक है जिसमें भक्त डोला और छंतोली सजाकर पहुंचते हैं। मंदिर में भजन कीर्तन और लोकनृत्य होते हैं। यह पूजा धार्मिक अनुष्ठान के साथ सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।

जासं, अल्मोड़ा। मां नंदा देवी परिसर में प्रतिमा स्थापित होते ही कुमाऊं की लोकदेवी मां नंदा–सुनंदा की पूजा को भक्त उमड़ने लगे हैं। भाद्रपद मास में आयोजित होने वाला यह पर्व श्रद्धा और सांस्कृतिक उत्सव का अनोखा संगम माना जाता है।
मां नंदा को कुमाऊं की इष्ट देवी के रूप में पूजा जाता है, जबकि सुनंदा उनकी सहचरी स्वरूप मानी जाती हैं। नंदा–सुनंदा की पूजा स्त्री–शक्ति और बहनत्व का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर नगर और ग्रामीण अंचलों से भक्तजन डोला और छंतोली सजाकर मंदिरों में पहुंचते हैं।
प्रतिमा स्थापना के बाद रविवार को मंदिर परिसर में दिनभर भजन, कीर्तन, झोड़ा–चांचरी और लोकनृत्यों की गूंज रहेगी। मेले में धार्मिक आयोजन के साथ ही हस्तशिल्प, स्थानीय व्यंजन और ग्रामीण उत्पादों की दुकानों से भी रौनक बढ़ जाती है।
दूर–दराज़ से आए श्रद्धालु और पर्यटक इस लोकपर्व का हिस्सा बनते हैं। नंदा–सुनंदा पूजा महज धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है, जिसकी धड़कन हर वर्ष अल्मोड़ा की गलियों में सुनाई देती है।
16 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से महोत्सव मनाए जाने की परंपरा
मां नंदा–सुनंदा पूजा की परंपरा का ऐतिहासिक पहलू अत्यंत समृद्ध है। मान्यता है कि यह परंपरा कुमाऊं के चंद राजाओं के समय से शुरू हुई। अल्मोड़ा नगर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में हुई और इसके साथ ही नंदा–सुनंदा पूजा को राजकीय संरक्षण मिला। उस समय इस पूजा को लोकदेवी की आराधना और राज्य की समृद्धि से जोड़ा गया।
धीरे–धीरे यह उत्सव नगर और गांवों की सामूहिक आस्था का पर्व बन गया। आज भी इस पूजा में वही ऐतिहासिक गौरव झलकता है, जो सदियों पहले लोगों की धार्मिक भावनाओं और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करने के लिए प्रारंभ हुआ था।
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