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    उत्तराखंड के अल्‍मोड़ा में हर तीन साल में लगता है पौराणिक कौतिक, एक दिन में पहुंचे 30 हजार से ज्यादा श्रद्धालु

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 06:25 PM (IST)

    उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में सराईंखेत स्थित मां कालिंका देवी मंदिर में हर तीन साल बाद लगने वाले पौराणिक कौतिक में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। कु ...और पढ़ें

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    पुरातन परंपरा के तहत ढोल नगाड़ों के बीच कुमाऊं के सात व गढ़वाल के आठ सेवक गांवों से पवित्र डोला लेकर पहुंचे ग्रामीण। जागरण

    जागरण संवाददाता, रानीखेत। स्याल्दे ब्लाक के ऐतिहासिक सराईंखेत के शिखर पर मां कालिंका देवी मंदिर में आस्था का सैलाब उमड़ा। ढोल नगाड़ों की धुन व मां के जयघोष के बीच गढ़ कुमौं की साझी धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत सजीव हो उठी। परंपरा के अनुसार कुमाऊं के सात व गढ़वाल के आठ सेवक गांवों के ग्रामीण मां कालिंका का पवित्र डोला लेकर मंदिर पहुंचे। विशेष पूजा अर्चना के बीच पौराणिक कौतिक (मेले) का विधिवत श्रीगणेश हुआ। प्रत्येक तीन वर्ष बाद मेला लगने के कारण मां के दरबार में तिल धरने को जगह नहीं थी। शाम तक कौतिक की रौनक बनी रही। धार्मिक अनुष्ठानों का दौर भी चलता रहा। 30 हजार से ज्यादा श्रद्धालु माता के दर्शन को पहुंचे।

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    पौड़ी गढ़वाल की सीमा पर अल्मोड़ा जनपद के अंतिम गांव मटखानी (स्याल्दे ब्लाक) स्थित मां कालिंका मंदिर में कौतिक से माहौल देवीमय हो उठा। प्रत्येक तीन वर्ष में मेला लगने के कारण गढ़ कुमौं के साथ ही विभिन्न राज्यों में बसे प्रवासी उत्तराखंडी इस बार भी शनिवार को मां के दरबार में शीश नवाने पहुंचे। इससे पूर्व प्राचीन परंपरा के अनुसार बंदरकोट, मल्ला व तल्ला थबड्या, क्वाटा व सील (गढ़वाल) के साथ ही मटखानी, जोगीज्वाड़, मल्ला लखौरा, बादली, रमोल बाखली, तलसाणीसैंण (कुमाऊं) आदि के सेवादार श्रद्धालुओं ने अपने अपने गांवों में मां कालिंका का विशेष पूजन किया। गांव घरों से माता की भेट व पूजन सामग्री के साथ पवित्र डोला लेकर प्रात: मंदिर पहुंचे।

    पूर्व संध्या पर जागर परंपरा

    मां कालिंका मेले की पूर्व संध्या पर जागर की भी परंपरा है। बीती देर शाम से बंदरकोट व क्वाटा गांव में देवीअवतरण की रस्म पूरी की गई। मां को प्रसन्न करने व आशीर्वाद लेने के बाद ब्रह्ममुहूर्त में स्नान व पूजा अर्चना कर शंखनाद के बीच विभिन्न गांवों से श्रद्धालुओं का तांता उच्च पर्वतशिखर पर मां के दरबार की ओर रवाना होते हैं।

    खटकती है पेयजल की समस्या

    दिल्ली, मुंबई, पंजाब, हरियाणा, लखनऊ आदि के साथ ही हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार आदि से हर तीसरे वर्ष प्रवासी लोग पौराणिक मेले में पहुंचे। यहां भंडारा हो या मंदिर के सुंदरीकरण कार्य, प्रवासी आस्था के साथ निभाते हैं। मंदिर समिति सदस्य मनवर सिंह के अनुसार प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्था पूरी रही। मगर पेयजल की समस्या बरकरार है। उन्होंने मंदिर तक सड़क सुधारीकरण की भी जरूरत बताई।

    ये है इतिहास

    बीरोखाल ब्लाक (गढ़वाल) व स्याल्दे के मध्य मां कालिंका शक्ति की प्रतीक हैं। इन्हें बडियारी क्षत्रियों की कुलदेवी माना गया है। लोककथा है कि कुमाऊं व गढ़वाल पर 1790 में गोरखाराज स्थापित होने के दाैरान गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। भीषण युद्ध के बीच बडियारी क्षत्रियों के मुखिया लैली बाबा ने कुलदेवी मां कालिंका का स्मरण किया। कथा है कि मां कालिंका ने साक्षात दर्शन दिए। विजयश्री प्राप्त करने पर गढ़ कुमौं की सीमा पर मंदिर स्थापित करने को भी कहा। गोरखों को परास्त करने के बाद 18वीं सदी में मंदिर बनवाया गया। तभी से कुमाऊं गढ़वाल के बाशिंदों की मंदिर से आस्था जुड़ी है। वर्तमान में मां कालिंका मंदिर उत्तराखंड मिशन माला प्रोजेक्ट में शामिल है।