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    उत्‍तराखंड के अल्‍मोड़ा में 6000 साल पुराने अनसुलझे रहस्‍य, जुटे विज्ञानी; अब होगा खुलासा

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 02:13 PM (IST)

    अल्मोड़ा के पास लखुडियार गुफा में बने शैल चित्रों की कार्बन डेटिंग जल्द ही शुरू होगी। राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण प्रयोगशाला लखनऊ और इनटेक की टीम विश्लेषण करेगी। माना जा रहा है कि ये शैल चित्र लगभग 6000 वर्ष पुराने हैं। कार्बन डेटिंग से हिमालयी क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानव जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी और लखुडियार की सटीक समयरेखा जानने में मदद मिलेगी।

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    हिमालयी क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानवों के जीवन की अनमोल जानकारी होगी प्राप्त। Jagran

    जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा। मुख्यालय से 15 किमी दूर प्रागैतिहासिक लखुड़ियार गुफा स्थल में शैल चित्रों की कार्बन डेटिंग की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। लखुडियार के शैल चित्रों की समयरेखा स्थापित करने से हिमालयी क्षेत्र में प्रागैतिहासिक मानवों के जीवन की अनमोल जानकारी प्राप्त होगी।

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    सुयाल नदी के किनारे, अल्मोड़ा मुख्यालय से लगभग 15 किमी की दूरी पर बाड़ेछीना मार्ग पर स्थित लखुडियार, उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक स्थलों में से एक माना जाता है। यहां की चट्टानों पर मानव, पशु और ज्यामितीय आकृतियों के अद्भुत चित्र दिखाई देते हैं। इतिहासकार मानते है कि यहां हजारों वर्ष पहले मानव सभ्यता रही होगी।

    शैल चित्र और खुदाई लगभग 6,000 साल पुराने

    प्रागैतिहासिक लखुडियार गुफा का विश्लेषण राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण प्रयोगशाला, लखनऊ और भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर ट्रस्ट, नई दिल्ली की टीम करेगी। इसके लिए क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग ने पत्राचार किया है।

    गुफा में बने शैल चित्र और खुदाई लगभग 6,000 साल पुराने हैं। प्रारंभिक विश्लेषण में पता चला है कि इनमें से कुछ चित्र कम से कम ईसा पूर्व 4000 तक के हो सकते हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण के जरिए लखुडियार की सटीक समयरेखा जानने को मिलेगी। क्षेत्रीय पुरातत्व विभाग ने इसके लिए पत्राचार किया है। जल्द ही टीम इसका विश्लेषण करेगी। इसके अलावा पुरातत्व विभाग ने सुयाल और कोसी नदियों के बीच तथा पिथौरागढ़ के बेरीनाग में 12 समान प्रागैतिहासिक स्थल की पहचान की गई है।

    50 हजार वर्ष पुराने अवशेषों की मिलेगी जानकारी

    कार्बन डेटिंग, जो कार्बन आइसोटोप के रेडियोधर्मी क्षय को मापकर किसी वस्तु की उम्र निर्धारित करती है। यह 50 हजार वर्ष तक पुराने अवशेषों की आयु जानने में सक्षम है।

    सुरक्षा को लेकर भी चिंता

    पुरातत्व विभाग के अधिकारी स्थल की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं। पर्यटक अक्सर चट्टानों पर अपने नाम लिख देते हैं, और सुरक्षा व्यवस्था न होने के कारण इसे संरक्षित करना चुनौतीपूर्ण है।

    दोनों विशेषज्ञ टीमों से संपर्क किया गया है। उम्मीद है जल्द ही वह मौके पर पहुंच कर जांच करेंगे। जिससे सटीक जानकारी भविष्य में पता चल पाएंगे। - सीएस चौहान, क्षेत्रीय राज्य पुरातत्व अधिकारी, अल्मोड़ा