कारगिल युद्ध की कहानी: जब पाकिस्तानी डीजीएमओ ने कहा था, मियां साहब ने जूते खाने अकेले भेज दिया
कारगिल युद्ध की 26वीं वर्षगांठ पर पूर्व उप महानिदेशक (सैन्य अभियान) ब्रिगेडियर मोहन चंद्र भंडारी ने भारत के पराक्रम का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि कैसे युद्ध में हार देखकर पाकिस्तान के तत्कालीन डीजीएमओ तौकीर जिया को अकेले अटारी बॉर्डर भेजा गया क्योंकि नवाज शरीफ जूते खाने के डर से सिहर उठे थे। वाजपेयी जी ने नवाज शरीफ को फोन पर एलओसी से पीछे हटने को कहा था।

दीप सिंह बोरा, जागरण रानीखेत (अल्मोड़ा)। कारगिल युद्ध को आज 26 साल बीत गए हैं। यह महज लड़ाई नहीं, बल्कि भारतीय फौज के अदम्य साहस, शौर्य, पराक्रम और रणकौशल की गाथा है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस युद्ध के साथ एक ऐसा भी किस्सा जुड़ा है जो वैश्विक पटल पर आज तक भारत की ताकत और पाकिस्तान की सिहरन को जाहिर करता है।
तब भारत के तत्कालीन उप महानिदेशक (सैन्य अभियान) ब्रिगेडियर मोहन चंद्र भंडारी इस किस्से की किताब खोलते हुए बताते हैं कि दोनों देशों के पीएम के बीच वार्ता के बाद पाक ने तय किया कि वह अपने डीजीएमओ तौकीर जिया को बातचीत के लिए अटारी बार्डर भेजेगा। युद्ध में भारत के पराक्रम को देख पहले से डरा पाक उस समय डीजीएमओ का प्रोटोकाल तक भूल गया और तौकीर को अकेले ही अटारी जाने के आदेश दे दिए।
भंडारी कहते हैं कि जब मैंने तौकीर से अटारी में हाल पूछा तो जवाब मिला- क्या करूं, मियां साहब (नवाज शरीफ) ने जूते खाने के लिए अकेले भेज दिया। तौकीर जिया अकेले थे। सिर पर टोपी टेढ़ी और चेहरे पर मायूसी थी। सिगरेट फूंके जा रहे थे। उनके चेहरे को देखकर लग रहा था कि कारगिल में हमारे सैनिकों की बहादुरी से पाकिस्तान को अपने अस्तित्व की चिंता थी।
वाजपेयी ने नवाज से फोन पर कहा-आपकी कहानी खत्म
अल्मोड़ा निवासी मोहन चंद्र भंडारी लेफ्टिनेंट जनरल पद से सेवानिवृत्त हैं। कारगिल युद्ध के दौरान उप महानिदेशक (सैन्य अभियान) का दायित्व उनके पास था। जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि जब पाक हताश हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सात जुलाई को पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को फोन कर कहा- आपकी कहानी खत्म। युद्ध रोकूं, उससे पहले अपने डीजीएमओ को अटारी भेजो। हम अपने डीजीएमओ को भेज रहे हैं। वह युद्ध संबंधी निर्देशन देंगे। एलओसी से पीछे हटो।
पाकिस्तान विश्वास करने लायक नहीं है। उसके साथ रिश्ते सुधर ही नहीं सकते। वहां प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री आदि सब मुखौटा हैं। पाकिस्तान में सेना ही सर्वेसर्वा है। अमेरिका या चीन से वार्ता कब कैसे करनी है, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर क्या निर्णय लिए जाने हैं, यह सब वहां की फौज तय करती है।-रक्षा विशेषज्ञ मोहन चंद्र भंडारी, लेफ्टिनेंट जनरल अवकाश प्राप्त एवं पूर्व उप डीजीएमओ
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