Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Kargil Vijay Diwas: भारतीय फौज के पराक्रम, अदम्य साहस व बलिदान की प्रतीक कुमाऊं रेजिमेंट, गौरवशाली इतिहास

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 02:44 PM (IST)

    कारगिल विजय दिवस पर कुमाऊं रेजिमेंट के जांबाजों को याद किया गया। 1999 के युद्ध में रेजिमेंट के 17 जवानों ने देश के लिए प्राणों की आहुति दी जिनमें अल्मोड़ा के राम सिंह हरीश देवड़ी और हरिबहादुर शामिल थे। केआरसी का गौरवशाली इतिहास 1788 से जुड़ा है। युद्ध में बलिदान देने वाले उत्तराखंड के वीर सपूतों को सम्मानित किया गया।

    Hero Image
    कारगिल विजय दिवस कुमाऊं रेजिमेंट के बलिदानियों को नमन। जागरण

    संस, जागरण. रानीखेत। भारतीय फौज के पराक्रम व अदम्य साहस के प्रतीक ''कारगिल विजय दिवस'' पर कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर (केआरसी) की गौरवशाली सैन्य परंपरा और इतिहास हरेक मन में देशभक्ति का जज्बा देती है।

    ‘पराक्रमो विजयते’ अर्थात ‘वीरता की विजय’ आदर्श वाक्य केआरसी जांबाजों के रग रग में समाया है और बात जब भारतभूमि की आन, बान व शान की रक्षा की आई तो वह सर्वोच्च बलिदान देने से पीछे नहीं हटे हैं। कारगिल युद्ध इसकी बानगीभर है, जिसमें दुश्मन सेना को मार भगाने वाले रेजिमेंट के 17 वीर सपूतों ने मां भारती के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इनमें कुमाऊं मंडल के 12 बलिदानी सपूत शामिल रहे।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    केआरसी का गौरवशाली सैन्य इतिहास 1788 की 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट से जुड़ा है। कुमाऊं के नौजवानों के अदम्य साहस व पराक्रम के अभिभूत तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस सेना का गठन किया था। तब से अब तक केआरसी और उसकी विभिन्न इकाइयां भारतीय सेना का मस्तक पूरी दुनिया में ऊंचा किए है।

    देश को सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र दिलाने वाले बलिदानी मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊं रेजिमेंट के ही जांबाज रहे। 1999 का कारगिल युद्ध और दुश्मन सेना पर विजयश्री को आज शनिवार को 26 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं। 14 विभिन्न रेजिमेंट्स के 524 वीर सपूत बलिदान हुए थे। इनमें उत्तराखंड के 75 रणबांकुरे शामिल रहे। बलिदानी सपूतों के सम्मान में भारतीय सेना की ओर से केआरसी ने घर घर जाकर उनके स्वजन को सम्मानित भी किया।

    पैरा कमांडो राम सिंह ने अकेले दुश्मन बंकर पर किया था कब्जा

    कारगिल युद्ध में अल्मोड़ा जनपद के तीन जांबाजों ने सर्वाेच्च बलिदान दिया था। इनमें बौरारौ घाटी (सोमेश्वर) के 10-पैरा रेजिमेंट में तैनात कमांडो नायक राम सिंह बोरा की गौरवगाथा कोई नहीं भूल सकता। उन्हें रेजिमेंट के मारक दस्ते को पाकिस्तान के कब्जे वाली चोटी को मुक्त करने का बड़ा जिम्मा दिया गया था।

    कमांडो राम सिंह ने दुश्मन सेना का खात्मा कर पाकिस्तानी बंकर पर अकेले कब्जा जमा लिया। तभी सामने की पहाड़ी से पाकिस्तानी फौज ने फायरिंग कर दी। दुश्मनों से मोर्चा लेते मां भारती का यह सपूत देश के लिए बलिदान हो गया। बीते नौ जून को भारतीय फौज ने बलिदानी राम सिंह की वीरांगना जानकी देवी को घर जाकर सम्मानित किया था।

    हरीश देवड़ी के साहस को सैल्यूट

    दूसरे वीर सपूत रहे देवड़ा गांव (भैंसियाछाना ब्लाक) के लांस नायक हरीश सिंह देवड़ी। कारगिल जंग के दौरान दुश्मनों को घुटनों के बल लाने वाला यह जांबाज भी वीरगति को प्राप्त हुआ। बलिदानी सपूत की वीरांगना सरस्वती देवी को भी बीते माह भारतीय फौज ने सम्मानित किया।

    जांबाज हरिबहादुर घले को मिला था सेना पदक

    तीसरे बलिदानी नायब हरिबहादुर घले ने भी अदम्य साहस व पराक्रम का परिचय देते हुए कुमाऊं नागा रेजिमेंट का सीरा गर्व से चौड़ा कर दिया था। दुश्मन सेना को कारगिल से मार भगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और भारत भूमि के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने पर उन्हें मरणोपरांत सेना पदक से भी सम्मानित किया गया। भारतीय सेना की ओर से नायब सूबेदार चंदन सिंह गैड़ा ने इस वीर सपूत की वीरांगना सरस्वती घले को भी अभियान के तहत बीते माह सम्मानित किया था।

    कहां, कितने बलिदान

    नैनीताल 05, पिथौरागढ़ 04, अल्मोड़ा व बागेश्वर 03-03, व ऊधम सिंह नगर 02 समेत कुल 17 जांबाज बलिदान हुए थे। वहीं गढ़वाल मंडल में देहरादून से सर्वाधिक 14, टिहरी 11, लैंसडौन 10, चमोली 07, पौड़ी 03, रुद्रप्रयाग 03 व उत्तरकाशी से एक 01 जांबाज शामिल रहा। बलिदानी मेजर राजेश सिंह अधिकारी (नैनीताल) व मेजर विवेक गुप्ता को मरणोपरांत महावीर चक्र, 15 सेना पदक, नौ वीर चक्र व 11 को मेंशन इन डिस्पैच सम्मान दिया गया।