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    इंडो तिब्बतियन हेरिटेज वर्कशॉप: भारत व तिब्बत के बीच सदियों पुराने हैं सांस्कृति, आध्यात्मिक व धार्मिक रिश्ते

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 12:18 PM (IST)

    रानीखेत के कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर में इंटरवोवन रूट्स शेयर्ड इंडो तिब्बतियन हेरिटेज विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जीओसी इन चीफ ( सेंट्रल कमांड ) ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। वर्कशॉप में बुधवार को तीन सत्रों में विषय विशेषज्ञ भारत-तिब्बत संबंधों कुमाऊं के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व ट्रांस हिमालय व्यापार और जल कूटनीति जैसे विषयों पर व्याख्यान दिए गए।

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    जीओसी इन चीफ सेंट्रल कमांड करेंगे शुभारंभ। जागरण

    जासं, रानीखेत। कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर (केआरसी) मुख्यालय में ‘आपस में गुंथी जड़ें: साझा भारत-तिब्बती विरासत’ विषयक कार्यशाला में प्रख्यात इतिहासकार व विषय विशेषज्ञों भारत और तिब्बत के बीच सदियों पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व व्यापारिक संबंधों की याद ताजा की।

    सिल्क रूट का जिक्र हुआ तो बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार व दोनों क्षेत्रों के बीच आध्यात्म व धार्मिक रिश्तों की स्थापना पर भी बात हुई। वक्ताओं ने सिल्क रूट के जरिये व्यापार के साथ लोक संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाज व संस्कारों के आदान प्रदान पर भी विमर्श किया। खास बात कि भारत व तिब्बत के बीच प्राचीन संबंधों को पुनर्स्थापित करने वाले राहुल सांकृत्यायन के घुमक्कड़ी शास्त्र की खूबियां गिनाई गईं। कमांडेंट ब्रिगेडियर संजय कुमार यादव ने कहा- यह सेमिनार युवा पीढ़ी के लिए इंडो तिब्बत संबंधों को समझने व जानने के लिए सहायक सिद्ध होगा।

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    केआरसी के दीवान सिंह सभागार में बुधवार को ‘इंटर वोवन रूट्स: शेयर्ड इंडो -तिब्बत हेरिटेज’ विषयक कार्यशाला का शुभारंभ मुख्य अतिथि जीओसी इन चीफ (सेंट्रल कमांड) लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने किया। दिल्ली विवि में प्रोफेसर डा. माया जोशी ने ‘कुमाऊं, तिब्बत एंड बुद्धिज्म: एन इटिनरेट स्कालर्स जर्नी आफ डिस्कवरी’ पर व्याख्यान दिया। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन के घुमक्कड़ शास्त्र पर कहा कि वह बुद्ध, शंकराचार्य, ईसा मसीह व नानक की प्रशंसा तो क्रिस्टोफर कोलंबस व चार्ल्स डार्विन को भी खोजकर्ता के रूप में सम्मानित करता है। यह राष्ट्र निर्माण व देश ज्ञान से संबंधित है।

    अंतरराष्ट्रीय नेचर फोटाेग्राफर पद्मश्री अनूप साह ने ‘फोटोग्राफिक जर्नी आफ कुमाऊं एंड तिब्बत’ पर व्याख्यान देते हुए प्रोजेक्टर के जरिये मालपा, लिपूलेख दर्रा पार कर तिब्बत में प्रवेश और कैला तथा लासा तक के सफर, पर्यावरण, वन्यजीव एवं प्राचीन व्यापार मार्गों के बारे में बताया। अंतरराष्ट्रीय विषयों की विशेषज्ञ डा. मेधा बिष्ट ने ‘वाटर डेप्लोमेसी विद हिमालयन नेबर्स’ के तहत जल कूटनीति व दक्षिण एशियाई राजनीति, विदेश नीति आदि पर विचार साझा किए।

    इतिहासकार प्रो. अनिल जोशी ‘हिस्ट्री आफ ट्रांस हिमालयाज ट्रेड थ्रू ईस्टर्न कुमाऊं एंड द रोल आफ ब्रिटिश एडमिनिस्ट्रेशन’ पर पर्यावरणीय पहलुओं को छूआ। तिब्बत से प्राचीन व्यापार व रिश्तों की याद ताजा करा हिमालयी पारिस्थितिकी व जैव विविधता संरक्षण के साथ ग्रामीण विकास की पुरजोर वकालत की। शोधकर्ता राजेंद्र सिंह रावल ने ‘हिस्टोरिकल एंड कल्चरल लिंक्स बिट्वीन कुमाऊं एंड नेपाल- वे फारवर्ड’ पर कुमाऊं व नेपाल के सांस्कृतिक संबंध, लोक संस्कृति, कला व साहित्य पर बात रखी।

    मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) डा. एसबी अस्थाना ने ‘रेलेवेंस आफ कुमाऊं हिल्स एंड इट्स स्ट्रेटेजिक इंपोर्टेंस इन शेपिंग इंडो तिब्बत मिलिट्री रिलेशंस’ पर व्याख्यान देते हुए मैकमोहन लाइन आदि अहम बिंदुओं पर चर्चा की। ब्रिगेडियर (अवकाश प्राप्त) रूमेल दहिया ने परिचर्चा की अगुआई की। कार्यशाला को दोनों क्षेत्रों की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व सामरिक परिस्थितियों को समझने तथा साझी विरासत को पीढ़ियों तक सहेज कर रखने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण बताया गया। कार्यशाला में आर्मी पब्लिक स्कूल, जवाहर नवोदय, केंद्रीय विद्यालय आदि के बच्चों ने भी हिस्सा लिया।

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