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आस्था ही नहीं इतिहास भी सहेजे है नंदादेवी मेला

प्रदेश भर के लोगों में मां नंदा के प्रति अटूट आस्था है। अल्मोड़ा का नंदादेवी मेले का अपना खासा महत्व है। यहां नंदादेवी मंदिर स्थापना के पीछे एतिहासिक तथ्य जुड़े हैं।

By sunil negiEdited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 12:37 PM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 12:42 PM (IST)
आस्था ही नहीं इतिहास भी सहेजे है नंदादेवी मेला

अल्मोड़ा, [चन्दन नेगी]: यूं तो पूरे प्रदेश भर के लोगों में मां नंदा के प्रति अटूट आस्था है। हर बरस जगह-जगह लगने वाले नंदोवी मेले में उमड़ने वाला सैलाब अटूट आस्था को प्रदर्शित करता है। मगर सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा का नंदादेवी मेले का अपना खासा महत्व है। यहां नंदादेवी मंदिर स्थापना के पीछे एतिहासिक तथ्य जुड़े हैं और यहां मां नंदा को प्रतिष्ठित करने का श्रेय चंद शासकों को है।

कुमाऊं में मां नंदा की पूजा का क्रम चंद शासकों के जमाने से माना जाता है। किवदंती व इतिहास के मुताबिक सन् 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद ने बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा लाए और उसे यहां मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्ट्रेट परिसर अल्मोड़ा) में स्थापित किया। तब से उन्होंने मां नंदा का कुलदेवी के रूप में पूजन शुरू किया।

इसके बाद में राजा जगत चंद को जब बधानकोट विजय के दौरान नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली, तो उन्होंने खजाने से अशर्फियों को गलाकर मां नंदा की प्रतिमा तैयार कराई और प्रतिमाओं को भी मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित कर दिया। सन् 1690 में तत्कालीन राजा उद्योत चंद ने पार्वतीश्वर और उद्योत चंद्रेश्वर नामक दो शिव मंदिर मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए। आज भी ये मंदिर उद्योत चंद्रेश्वर व पार्वतीश्वर के नाम से प्रचलित हैं। मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को भी सन् 1815 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया।

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी चोटी की ओर जा रहे थे, तो राह में अचानक उनकी आंखों की रोशनी चली गई। लोगों की सलाह पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर वहां नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई, तो रहस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी लौटी। इसके अलावा कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे। जब उनके पूर्वजों को गढ़वाल पर आक्रमणों के दौरान सफलता नहीं मिली, तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि अगर उन्हें युद्ध में विजय मिली, तो नंदादेवी की अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे।

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मंदिरों में खजुराहो कलाकृति

नंदादेवी मंदिर अल्मोड़ा की मंदिर की निर्माण शैली भी काफी पुरानी है। यहां उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी के अंत में मानी जाती है। उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में एक लकड़ी का छज्जा है। मंदिर में बनी कलाकृति खजुराहो मंदिरों की तर्ज पर है। ये मंदिर संरक्षित श्रेणी में शामिल हैं।

चंद वंशज करते हैं तांत्रिक पूजा
अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं। वर्तमान में चंद वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा राजा के रूप में सपरिवार पूजा में बैठते हैं।

इस बार तय कार्यक्रम
6 सितंबर : गणोश पूजन एवं जागर
7 सितंबर : कदली स्तंभों को आमंत्रण।
8 सितंबर : कदली वृक्षों को शोभायात्र के साथ मंदिर तक लाना, मूर्ति निर्माण व प्राण प्रतिष्ठा
9 सितंबर : महा अष्टमी पूजन।
10 सितंबर : नवमी पूजन।
11 सितंबर : मां नंदा की शोभायात्र।
(इसके अलावा प्रतिदिन रंगारंग कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताएं।)

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