अल्मोड़ा डोल आश्रम : आध्यात्मिक शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम, यहां स्थापित है दुनिया का सबसे बड़ा अष्टधातु श्रीयंत्र
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित डोल आश्रम, अध्यात्म और प्रकृति का संगम है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा अष्टधातु श्रीयंत्र स्थापित है। हिमालय की चोटियों के मनोरम दृश्य के साथ, यह स्थल पर्यटकों को शांति और आत्मिक सुकून प्रदान करता है। डोल गांव के आसपास घने जंगल और बागान हैं, जो ट्रेकिंग के लिए उत्तम हैं। यहां ठहरने के लिए आश्रम और होम स्टे उपलब्ध हैं।

सुरम्य वन के बीच ध्यान व साधना की तपस्थली डोल आश्रम। सौ. मंदिर प्रबंधन
गणेश जोशी, जागरण, हल्द्वानी । देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो पग-पग में देवी-देवताओं के मंदिर-देवालय मिल जाएंगे। चारों धाम यहीं हैं तो शिव का वास आदि कैलास भी। ऐसा ही एक सुरम्य स्थल अल्मोड़ा जिले में लमगड़ा ब्लाक के डोल गांव के निकट डोल आश्रम है। वर्ष 1990 में स्थापित डोल आश्रम केवल साधना स्थल नहीं बल्कि अध्यात्म और प्रकृति का अद्भुत संगम है। देवदार व बांज के घने जंगल के बीच यहां दुनिया के सबसे बड़े अष्टधातु के श्रीयंत्र के आगे आप ध्यान व साधना कर सकते हैं। यह स्थल पर्यटकों को शांति, ऊर्जा और आत्मिक सुकून प्रदान करता है। शांत व स्वच्छ वातावरण के बीच हिमालय की चोटियों को निहारते हुए यहां भक्ति, ध्यान व योग के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया जा सकता है। एक बार यदि आप इस अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता की गोद में कुछ पल बिता लेते हैं तो बार-बार आना चाहेंगे।
डोल गांव के आसपास की पहाड़ियां हिमालयी श्रृंखलाओं का शानदार नजारा प्रस्तुत करती हैं। शांत वातावरण और साफ मौसम में आप त्रिशूल, नंदादेवी और पंचाचूली की चोटियां को निहार सकते हैं। डोल आश्रम (श्री कल्याणिका हिमालय देवस्थानम) समुद्रतल से 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी स्थापना स्वामी कल्याण दास ने वर्ष 1990 में की थी। देवदार, बांज के घने जंगल के बीच आश्रम में वर्ष 2018 में दुनिया का सबसे बड़ा और भारी श्रीयंत्र स्थापित किया गया था। अष्टधातु से बने इस श्रीयंत्र की लंबाई साढ़े तीन फीट और वजन 150 क्विंटल है। दिव्य ऊर्जा केंद्र के रूप में यह श्रीयंत्र श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां पंचदेव उपासना का विशेष महत्व है जिसमें गणेश, विष्णु, शिव, शक्ति और सूर्य की पूजा की जाती है। आश्रम के संस्थापक स्वामी कल्याण दास बताते हैं कि कैलास मानसरोवर की यात्रा से लौटते समय मन में हिमालय में भी एक आश्रम स्थापना का विचार आया। इस डोल आश्रम में लोग साधना कर सकते हैं। ध्यान लगा सकते हैं।
जंगल, बागान और ट्रेकिंग के रोमांच से भरा है क्षेत्र
डोल गांव के आसपास बेहद घना जंगल है तो लमगड़ा, शहरफाटक, मोतियापाथर,नाटाडोल,गजार आदि जगहों में सेब, नाशपाती, पुलम आदि के बागान भी। जहां आप प्रकृति के विविध रूपों को नजदीक से निहार सकते हैं। यहां होम स्टे में ठहरकर आप गांवों की वास्तविक खुशबू महसूस कर सकते हैं। यहां स्थानीय भोजन में भट्ट की चुड़कानी, आलू के गुटके, झंगोरे की खीर और मंडुए की रोटी का स्वाद चख सकते हैं। बाल मिठाई व सिंगौड़ी का स्वाद यहां कस्बों की दुकान में मिल जाएगा। खास बात यह है कि बागानों में टहलने के साथ ही ट्रेकिंग के शानदार व वास्तविक रोमांच आपको यहां अनुभव होगा।
ठहरने के कई विकल्प : आप डोल आ रहे हैं तो यहां ठहरने के लिए आश्रम के साथ ही नजदीकी कस्बों में होटल व होम स्टे के विकल्प भी मौजूद हैं। आठ एकड़ भूमि में फैले आश्रम परिसर में ही लगभग 300 साधकों और श्रद्धालुओं के लिए सादगीपूर्ण आवास व्यवस्था है। आश्रम में भोजन की भी व्यवस्था रहती है। वैसे तो आप यहां हर मौसम में आ सकते हैं लेकिन मई से नवंबर तक समय बेहतर है। दिसंबर मध्य के बाद शानदार हिमपात यहां देखने को मिलता है। ऐसे में ठंड से बचाव के उपाय अवश्य करके आएं।
ऐसे पहुंच सकते हैं
देश के किसी भी शहर से डोल आश्रम पहुंचने के लिए आप निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम तक ट्रेन से आ सकते हैं। साथ ही पंतनगर एयरपोर्ट तक हवाई सेवा से पहुंच सकते हैं। यह काठगोदाम से 83 किलामीटर, पंतनगर से 113 किलोमीटर दूर है। जहां बस, टैक्सी और निजी वाहन से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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