उत्तराखंड में दीपावली मनाने की खास परंपरा, गन्ने के तनों से बनाई जाती है मां महालक्ष्मी की मूर्ति
उत्तराखंड में दीपावली का त्योहार विशेष रूप से मनाया जाता है। यहां गन्ने के तनों से मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाने की पुरानी परंपरा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे घर में सुख-समृद्धि आती है। गन्ने के तनों को इकट्ठा करके मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाई और सजाई जाती है।

कुमाऊं में गन्ने के तनों से तैयार महालक्ष्मी पूजन की परंपरा। आर्काइव
संवाद सहयोगी, जागरण, अल्मोड़ा। कुमाऊं में गन्ने के तनों से बनाई जाने वाली महालक्ष्मी प्रतिमा पूजन की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। स्कंद पुराण में गन्ने को शुभ फलदायक और मां लक्ष्मी का प्रिय बताया गया है. गन्ने में मां लक्ष्मी का वास माना जाता है।
दीपावली के दिन घरों में गन्ने के तनों से महालक्ष्मी तैयार की जाती है। वहीं रात्रि में विधि- विधान से मां लक्ष्मी की पूजा कर सुख- समृद्धि की कामना की जाती है। पूजा के बाद गाेवर्धन पूजा या भैया दूज के दिन शुभ मुहूर्त पर प्रतिमा को नदी अथवा सरोवर में विसर्जित कर दिया जाता है।
मान्यता के अनुसार कुमाऊं में गन्ने के तने से मां महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाने की शुरूआत 17 वीं शताब्दी से शुरू हुई। तब से यह परंपरा लगातार चल रही है। दीपावली के दिन गांव- गांव, घर- घर गन्ने के तनों से महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाई जाती है। पं. तारा दत्त जोशी के अनुसार स्कंद पुराण में बताया गया है कि गन्ने में लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए दीपावली पर्व के दिन गन्ने के तनों से महालक्ष्मी की प्रतिमा बनाकर इसकी विशेष पूजा की जाती है।
पहाड़ में गन्ने की मांग बढ़ी
दीपावली पर्व को देखते हुए पहाड़ में गन्ने के तनों की मांग बढ़ी है। यहां हरिद्वार व देहरादून समेत अन्य गन्ना उत्पादन क्षेत्रों से इन दिनों गन्ना आयात हो रहा है। गन्ने के एक तने की बिक्री 70 से 80 रुपये तक हो रही है। व्यापारी हरीश डालाकोटी के अनुसार आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी गन्ना बिक्री को बाजार ला रहे हैं।
पहाड़ में गन्ने के तने से महालक्ष्मी प्रतिमा निर्माण की शुरूआत 17 वीं शताब्दी से हुई। दीपावली के दिन गन्ने के तनों से महालक्ष्मी की प्रतिमा तैयार की जाती है। शाम को मां महालक्ष्मी की पूजा कर सुख, समृद्धि की कामना की जाती है।
- लता पांडे, कलाकार, अल्मोड़ा
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