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    ये है उत्‍तराखंड का शिमला, जहां बसे पंजाब प्रांत के मेहनतकश; बौद्धों का अहम पड़ाव भी रहा

    Uttarakhand Historical Village उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में बसा शिमला गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। पंजाब प्रांत के मेहनतकश लोगों ने इस गांव को अपना घर बनाया और यहाँ की कृषि परंपरा को जीवंत रखा है। इस लेख में हम आपको शिमला गांव के इतिहास संस्कृति और वर्तमान स्थिति के बारे में विस्तार से बताएँगे।

    By deep bora Edited By: Nirmala Bohra Updated: Thu, 28 Nov 2024 08:55 PM (IST)
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    Uttarakhand Historical Village: ये है ऊधम सिंह नगर का शिमला। जागरण

    जागरण संवाददाता, ऊधमसिंह नगर। Uttarakhand Historical Village: शिमला का जिक्र होते ही हिमालयन सेब, प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज वास्तुशिल्प के लिए सुप्रसिद्ध हिमाचल की राजधानी का चित्र आंखों में तैरने लगता है। मगर एक शिमला अपने तराई में भी है।

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    खास बात कि किसी दौर में बागान व खेत खलिहान के लिए मशहूर इस गांव में बसे पंजाब प्रांत (पाकिस्तान) के मेहनतकश आज भी कृषि परंपरा को विरासत की तरह संजोए हुए हैं। इस बार गांव कस्बों की बसासत, ऐतिहासिकता और नामकरण के रोचक किस्सों के साथ आपको सैर कराते हैं ऊधम सिंह नगर की। यहां किच्छा और रुद्रपुर के बीच बसा है शिमला गांव, जो बौद्धकाल में धार्मिक यात्रा मार्ग का अहम पड़ाव भी माना जाता है।

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    बेहद प्राचीन बसासत वाला क्षेत्र

    शिमला बेहद प्राचीन बसासत वाला क्षेत्र कहा जाता है। मगर इसका इतिहास आजादी के दौर से जुड़ा है। भारत पाकिस्तान विभाजन के दौरान हरियाणा के कैंप में शरणार्थियों को रखा गया था। सेना की निगरानी में पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी (वर्तमान पाकिस्तान) से भारत लाए गए डेढ़ सौ परिवारों में से कुछ ऊधम सिंह नगर के शिमला पिस्ताैर में बसाए गए।

    शुरूआत में तत्कालीन सरकार ने राशन उपलब्ध कराया। मगर बाद में मेहनतकश पंजाबी समाज के लोगों ने यहां खेती शुरू की। चना, मसूर, धान आदि मोटे अनाज उगाकर आजीविका चलाई। नौ वर्ष की अवस्था में व्यवसायी पिता निहाल चंद के साथ यहां पहुंचे लेखराज जल्होत्रा अब 84 बरस के हो चुके हैं।

    बुजुर्गों से सुने किस्सों व लोकमत का हवाला दे वह बताते हैं कि गांव का नाम शिमला पिस्तौर पुराने दौर से ही था और पाकिस्तान के शरणार्थी पंजाबी समाज के लोगों को बसाए जाने के दौरान यह क्षेत्र आबाद था।

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    बुजुर्ग लेखराज छाबड़ा कहते हैं कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में उनका गांव सतलुज, रावी व दोआब नदी से घिरा उर्वर भूभाग था। पूर्व प्रधान संजय छाबड़ा बताते हैं कि खेती किसानी उन्हें विरासत में मिली थी। इसलिए शुरूआत में सरकारी मदद फिर उनके पूर्वजों ने हाड़तोड़ मेहनत कर यहां की जमीन को सींचा।

    युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा को करने लगे विदेशों का रुख

    अध्ययनकर्ताओं की मानें तो बौद्धों का यह धार्मिक यात्रा मार्ग भी रहा। शिमला से कालसी, हरिद्वार, मोरध्वज, गोविषाण काशीपुर, वहां से रुद्रपुर किच्छा होकर टनकपुर, सेनापानी, लोहाघाट होकर शारदा किनारे होकर नेपाल तक पहुंचते थे। शिमला पिस्ताैर क्षेत्र का जिक्र लोक श्रुतियों व गाथाओं और पुराने साहित्य में मिलता है। बहुत संभव है कि नैसर्गिक सौंदर्य वाले इस भूभाग का नाम तभी से शिमला पिस्ताैर पड़ा हो। रुद्रपुर जिला मुख्यालय से करीब छह किमी की दूरी पर शिमला पिस्ताैर की वर्तमान में पांच हजार की आबादी है। यहां के बाशिंदे आज भी खेती से ही जुड़े हैं। हालांकि युवा पीढ़ी अब उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रुख करने लगी है। - संदीप जुनेजा, किच्छा