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    उत्‍तराखंड का मेरु पर्वत... जो सुनाता है कत्यूरी शासक, मल्ल व चंद राजवंश की गौरवगाथा

    Uttarakhand History उत्तराखंड के इतिहास में कत्यूरी मल्ल और चंद राजवंशों का विशेष महत्व रहा है। इन राजवंशों के शासनकाल में निर्मित जाटकोट किला एक अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण है। यह किला कुमाऊं के मेरु पर्वत की संज्ञा से भी जाना जाता है। इस लेख में हम आपको जाटकोट किले के इतिहास इसकी भौगोलिक विशेषताओं इसके निर्माण और इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताएंगे।

    By deep bora Edited By: Nirmala Bohra Updated: Fri, 14 Feb 2025 04:36 PM (IST)
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    Uttarakhand History: रामगंगा घाटी ऊपरी भूभाग पर गुबराड़ी गांव (थल) की पहाड़ी पर है अभेद्य जाटकोट का किला। Jagran

    जागरण संवाददातात, अल्‍मोड़ा। Uttarakhand History: देवभूमि उत्तराखंड में कुणिन्द और पौरव राजाओं की शसक्त मौजूदगी के कई अभिलेख यत्र तत्र मिलते हैं। महाभारत में कुणिन्दों की मौजूदगी तथा पौरव वंश के तालेश्वर अभिलेख और सिक्के इनमें विशेष हैं। परंतु जनोन्मुखी विकास के प्रमाणों के लिहाज से उपरोक्त शासकों के उल्लेखनीय प्रमाणों का अभाव सा है।

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    8वीं सदी में कत्यूरी शासन के उद्भव के बाद देवभूमि उत्तराखंड में संस्कृति और सभ्यता की जड़ें गहरी हुई। अपने कुशल प्रबंधन के कारण ही इन शासकों का प्रभाव उत्तराखंड से बाहर पूर्वोत्तर, गांधार, रुहेलखंड आदि तक फैला हुआ था। आमजन को सुविधा संपन्न बनाने के मकसद से कत्यूरी राजाओं ने कृषि और व्यापार को प्रोत्साहित करने के अतिरिक्त संस्कृति और धार्मिक भावनाओं को खूब बढ़ावा दिया।

    छोटी ठकुराइयों व रियासतों में बंटता चला गया सशक्त कत्यूरी साम्राज्य

    सीमा विस्तार के साथ उनकी निगहबानी के लिए सैन्य संसाधनों का विकास भी कत्यूरी शासन की प्रमुख विशेषता रही। इसके तहत कोट किलों का निर्माण, निगरानी केंद्र, सुरंगें आदि शामिल रहीं। हालांकि कालांतर में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और वैचारिक टकराव जनित बिखराव के बाद सशक्त कत्यूरी साम्राज्य छोटी छोटी ठकुराइयों व रियासतों में बंटता चला गया।

    नतीजतन कत्यूरों की मूल शाखा छिन्न भिन्न होने के बाद यह राजवंश सात शाखा, विशाखा व प्रशाखाओं में बंट गया। स्थापत्य कला, अभिलेख, प्राचीन धार्मिक व व्यापारिक मार्ग और नौले निर्माण आदि के आधार पर द्वाराहाट, डोटी (नेपाल) और सीरा (सोर घाटी पिथौरागढ़) के कत्यूरी राजाओं का समृद्ध इतिहास बखूबी मिलता है।

    डोटी के राजवंश ने बाकायदा पिथौरागढ़ भाटकोट, डूंगरकोट, उदय कोट, ऊंचाकोट आदि कई किलों का निर्माण कराया। आइए इस अंक में आपको लिए चलते हैं सोर घाटी के थल की ओर। यहां मेरू पर्वत सरीखी भाैगोलिक विशेषताओं वाली पहाड़ी के शिखर पर है पूर्व मध्यकालीन जाटकोट का किला, जो कत्यूरी शासक, मल्ल व चंद राजवंश की गौरवगाथा का भी गवाह रहा है।

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    शिखर पर अभेद्य दीवारें, 25 से ज्यादा कक्षों वाली छावनी

    पूर्वी रामगंगा घाटी ऊपरी भूभाग पर गुबराड़ी गांव (थल) की पहाड़ी पर है कत्यूरी राजवंश का अभेद्य जाटकोट का किला। समुद्रतल से करीब एक हजार मीटर की ऊंचाई पर बड़े क्षेत्रफल में बना यह किला हर लिहाज से सुरक्षित रहा होगा। मिश्रित झाड़ियों व वनस्पतियों से लबरेज जंगल वाली पहाड़ी के शिखर पर बड़ी सैन्य छावनी रही होगी। अनूठी संरचना व भूगोल वाला यह किला कितना बड़ा रहा होगा, यहां मौजूद अवशेषों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

    पुरातत्वविद् चंद्र सिंह चौहान अपने अध्ययन का हवाला दे बताते हैं कि यहां 25 से 35 सैन्य कक्ष रहे होंगे। जाटकोट के पिछले भूभाग पर उत्तर पश्चिम दिशा में मुख्य किले से पांच मीटर ऊपर मोर्चाबंदी के लिए दो दीवारें बनी हैं। खास बात कि दोनों मोर्चाबंदी दीवारों की लंबाई ढाई मीटर, चौड़ाई पांच व ऊंचाई दो मीटर तक है। आत्मसुरक्षा के साथ ही दुश्मन सेना पर हमले के लिए किले को इस तरह तैयार किया गया है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। दीवारें बेशक बिखर गई है, मगर इसका एक एक पत्थर अतीत का गौरवशाली इतिहास बयां करता प्रतीत होता है। मोर्चाबंदी वाली दीवारों से लगभग 10 व 20 मीटर की ऊंचाई पर विभिन्न स्थानों पर अलग अलग सैन्य छावनियां 25 फीट मोटी दीवार से घिरी हैं।

    कत्यूरी शाखा के मल्ल राजवंश का रहा आधिपत्य

    थल के आसपास इस क्षेत्र में मल्ल राजवंश का भी अच्छाखासा प्रभाव रहा। युवा इतिहासकार व प्राचीन अभिलेखों के अनुवादक भगवान सिंह धामी कहते हैं कि बम राजवंश का पिथौरागढ़ के आसपास आधिपत्य रहा। डीडीहाट में सीरा की ही तरह गंगोलीहाट में मणकोट भी थल से करीब है। चूंकि सीरा के मल्ल राजवंश कत्यूरों की ही शाखा मानी जाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह किला मल्ल शासकों के पास रहा होगा।

    मल्ल व बम राजवंश का उद्भव डोटी से रहा है। थल क्षेत्र की बात करें तो चंद राजवंश के आने से पूर्व यहां मल्ल और बम राजवंश का अधिपत्य क्षेत्र रहने की पूरी संभावना है। अस्कोट के पाल राजवंश से मल्ल राजवंश के संबंध बेहद मधुर रहे। हालांकि सीरा के मल्ल राजवंश को हराकर तीन पीढ़ियों तक बसेड़ा रियासतदारों ने भी राज किया। मगर जाटकोट किले की कमान सीरा के मल्ल राजाओं के पास ही रही होगी।

    चंदों ने भी किया संरक्षित

    कालांतर में कत्यूरी राजवंश के बिखरने और शाखाओं विशाखाओं के कमजोर पड़ने पर जाटकोट के किले पर चंद राजवंश का भी अधिकार रहा। चंपावत की ही तरह थल में बालेश्वर मंदिर और राजा उद्योत चंद का ताम्रपत्र इसे प्रमाणित करता है।

    नदी किनारे प्राचीन पैदल पथ

    थल जहां ऐतिहासिक पड़ाव रहा है। धार्मिक महत्ता के लिए बेहद खास है। मानसखंड के अनुसार रामगंगा में स्नान कर शिव की पूजा के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा का पुण्य प्राप्त होता है। सामरिक दृष्टि से भी यह बड़े भूभाग का केंद्र बिंदु है।

    बागेश्वर, पिथौरागढ़, असकोट तथा जोहार घाटी जाने वाले मार्गों का महत्वपूर्ण केंद्रीय स्थल है। वहीं पूर्वी रामगंगा के जलागम क्षेत्र होकर किनारे से प्राचीन धार्मिक व व्यापारिक मार्ग गुजरता है। माना जाता है कि कत्यूरी शासकों ने उस दौर में शत्रु सेना पर नजर के साथ ही श्रद्धालुओं व व्यापारियों की सुरक्षा के मद्देनजर यह किला बनाया होगा।

    इसलिए मेरु पर्वत की मिली संज्ञा

    दरअसल, जाटकोट जिस विशिष्ट भौगोलिक बनावट वाली पहाड़ी पर बना है, उसे चार दिशाओं से तड़केश्वरी की चार सहायक नदियां घेरे हुए है। तड़केश्वरी का तलहटी में पूर्वी रामगंगा से मिलन होता है। संपूर्ण पहाड़ी हरीभरी है लेकिन उतनी ही जटिल भी। पुरातत्वविद् चंद्र सिंह चौहान के अनुसार पहले तड़केश्वरी जाटकोट के पीछे दक्षिणी दिशा ओर बहती थी। ये सभी खूबियां जाटकोट की पहाड़ी को कुमाऊं के मेरु पर्वत की संज्ञा देती हैं।

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    रामगंगा में खुलता था सुरंग का द्वार

    जाटकोट किले में सैनिकों की आवाजाही, रसद व पेयजल व्यवस्था के लिए शानदार सुरंग का भी निर्माण किया गया था। युवा इतिहासकार भगवान सिंह धामी कहते हैं कि करीने से तराशी गई इस सुरंग को बनाने में लंबा वक्त लगा होगा। बकौल पुरातत्वविद चंद्र सिंह चौहान, सुरंग की बनावट उल्टे ‘एल’ जैसी है। विशालकाय चट्टान को काटकर बनाई गई सुरंग का रास्ता पूर्वी रामगंगा के किनारे खुलता था।

    ऐसे पहुंचें

    • हल्द्वानी सो 90 किमी पर अल्मोड़ा।
    • सेराघाट होकर 100 किमी पर बेरीनाग।
    • 35 किमी पर थल।
    • आगे 10 किमी पर मुवानी।
    • यहां से आंरिक रोड पर आठ किमी दूर है गुबराड़ी गांव।
    • फिर पैदल चढ़ाई पार कर पहुंचा जा सकता है जाटकोट।