स्यूनराकोट का प्राचीन नौला राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा: सोमेश्वर तहसील के स्यूनराकोट गांव में प्राचीन नौले को राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित किया गया है। राष्ट्रीय स्मारक के रूप में नौले को पहचान मिलने से अब क्षेत्र की अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की उम्मीद भी जगी है। कुमाऊं के गांव-गांव में अलंकृत नौले बनाने की स्थानीय परंपरा रही है। प्राचीन समय से ही यह पेयजल के मुख्य स्रोत के रूप में रहे हैं। कत्यूर, चंद शासनकाल में बहुत से नौलों का निर्माण किया गया। जो आज भी ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखने को मिलते हैं। लोग आज भी उनसे शुद्ध पेयजल प्राप्त कर रहे हैं। स्यूनराकोट गांव में प्राचीन नौला कत्यूरी शासन काल का है। इसका निर्माण 14वीं सदी में किया गया था।लंबे समय से क्षेत्रवासी इस ऐतिहासिक नौले के संरक्षण की मांग कर रहे थे। जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने सर्वे भी किया था। संरक्षण के अभाव में यह नौला। लगातार खत्म होते जा रहा था। केंद्र सरकार ने प्राचीन नौले को प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 की धारा 4 उप धारा 1 के तहत प्राचीन स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने करती हैं स्मारक को राष्ट्रीय महत्त्व घोषित करने का गजट नोटिफिकेशन जारी किया है। संस्कृति मंत्रालय की अधिसूचना में उल्लेखित है अगर किसी को कोई आपत्ति या सुझाव हो तो वह दो महीने के भीतर महानिदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को जानकारी भेज सकता है। नौले की स्थापत्य कला नौले का निर्माण अत्यंत सरल संतुलित है। कुंड को सोपनयुक्त सीढ़ियों से पर्याप्त गहरा बनाया जाता गया है। वर्गाकार अथवा आयताकार कक्ष निर्माण में केवल गर्ग गर्भ ग्रह और अर्धमंडप, सस्तंभ मंडप की ही शैली अपनाई गई है। इसमेें कुंड के ऊपर साधारण कक्ष बनाकर बरामदे में प्रवेश द्वार के दोनों ओर एक एक बड़ा पटाल लगाकर कपड़े धोने और नहाने के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। ढलवा छत को पटालो से आच्छादित किया गया है। बरामदे की छत को दो अथवा चार स्तंभों पर आधारित किया गया है। प्रवेश द्वार के स्तंभों को पुष्प लता मणिबंध शाखा आदि विभिन्न अलंकारों से सुसज्जित किया है। नौले में कुंड गठन वर्गाकार है। नौलों में कपाट की व्यवस्था नहीं है। - ऐतिहासिक नौले के संरक्षण की मांग लंबे समय से की जा रही थी। राष्ट्रीय स्मारक घोषित होने के बाद से ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण हो सकेगा। डॉ चंद्र सिंह चौहान, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी।
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