उत्तराखंड के अल्मोड़ा में मिले नवपाषाण जीवन के निशान, विशाल पहाड़ी पर दिखाई दी गुफा
अल्मोड़ा के ध्यूलीकोट में पुरातत्वविदों को प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिला है जिसमें पत्थर की तीन ओखलियां भी मिली हैं । माना जा रहा है कि यह स्थल नवपाषाण से ताम्रपाषाण युग का है और प्राचीन काल में सामूहिक गतिविधियों का केंद्र था। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है और पर्यटन के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है।

हेमंत बिष्ट, अल्मोड़ा। हवालबाग ब्लॉक के रौनडाल गांव के पास ध्यूलीकोट में पुरातत्वविदों ने एक महत्वपूर्ण खोज की है। जिला मुख्यालय से लगभग 22 किमी दूर स्थित इस टापू नुमा पहाड़ी पर उन्हें 12 मीटर परिधि में फैला प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिला है। वहीं डेढ़ किमी दूर कड़की उडियार शैलाश्रय में एक गुफा मिली है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह शैलाश्रय नवपाषाण से ताम्रपाषाण युग (4000–2000 ईसा पूर्व) के हो सकते है।
अल्मोड़ा में लखुडियार के साथ कई जगहों पेटशाल, कसार देवी, फड़कानौला, फलसीमा, ल्वेथाप, महरुउड्यार आदि में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिल चुके है। अब ध्यूलीकोट में शैलाश्रय मिलने से पुरातत्वविद उत्साहित हैं। ध्यूलीकोट के शैलाश्रय की खासियत यह है कि इसमें पत्थर में बनी तीन पारंपरिक ओखलियां मिली हैं, जिनकी गहराई लगभग 14–15 सेमी और चौड़ाई 12–14 सेमी है। पुरातत्वविदों के अनुसार यह स्थल प्राचीन काल में सामूहिक गतिविधियों का केंद्र रहा होगा। पुरातत्व विभाग की टीम ने इस स्थल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के अध्ययन की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
सामरिक दृष्टि से अहम
ध्यूलीकोट का यह शैलाश्रय एक ऊंचे टाप पर स्थित है। जहां से अल्मोड़ा, लोधिया और रौनडाल जैसे क्षेत्र स्पष्ट दिखाई देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थान रणनीतिक दृष्टि से भी अतीत में महत्वपूर्ण रहा होगा।
कड़की उडियार में मिली 10 मी ऊंची गुफा
पुरातत्वविदों को ध्यूलीकोट से करीब डेढ़ किमी दूर एक और शैलाश्रय कड़की उडियार भी मिला है। इसकी लंबाई लगभग चार मीटर और चौड़ाई तीन मीटर है, जबकि ऊपर छतनुमा पत्थर करीब 10 मीटर ऊंचा है। इसमें एक साथ 10 लोग खड़े और 15–20 लोग बैठ सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस उडियार में एक प्राकृतिक छेद भी है, जो हवा और प्रकाश आने-जाने का साधन रहा होगा।
पर्यटन की संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि ध्यूलीकोट की यह खोज शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए तो महत्वपूर्ण है ही, साथ ही यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है। शांत वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य और हरी-भरी वादियों के बीच स्थित यह स्थान ट्रेकिंग और एडवेंचर के शौकीनों को भी लुभाएगा।
ध्यूलीकोट में मिले शैलाश्रय प्रागैतिहासिक काल के हैं। इनका विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। इससे पूर्व भी इस तरह के शैलाश्रय मिल चुके हैं। - चंद्र सिंह चौहान, प्रभारी निदेशक, राजकीय संग्रहालय व क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, अल्मोड़ा
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