Almora News: सीमांत के किसानों को फूल के जरिये फलने-फूलने की सौगात, आय का स्रोत बन रहा 'गेंदा फूल'
अल्मोड़ा में गेंदे की खेती किसानों के लिए आय का नया स्रोत बन रही है। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। संस्थान ने गेंदे की व्यावसायिक खेती का मॉडल विकसित किया है जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

संतोष बिष्ट, अल्मोड़ा। अब गेंदे के फूल की खेती से अल्मोड़ा के किसानों को फलने फूलने की सौगात मिलेगी। इसे आजीविका के नए विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल अल्मोड़ा ने एक अभिनव प्रयोग को सफल कर दिखाया है।
यहां ग्रामीण तकनीकी परिसर (आरटीसी) में पहली बार गेंदे की व्यावसायिक खेती के माडल ने किसानों में नवीन ऊर्जा का संचार किया है। अब इस प्रयोग के बाद खेती को धरातल में पूरी तरह उतारने की योजना है।
जीबी पंत संस्थान के विज्ञानियों ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए ग्रामीण तकनीकी परिसर कोसी में स्थानीय जलवायु, मृदा और किसानों की परंपरागत कृषि पद्धतियों व चुनौतियों को देखते हुए परिसर में गेंदे की खेती की योजना पर काम किया।
संस्थान के तकनीकी प्रक्षेत्र में किए गए जलवायु, मृदा आदि के अध्ययन के बाद मार्च अंत में यहां गेंदे को रोपण किया गया, जिसने मई में फूल देना शुरू कर दिया। विज्ञानियों ने बताया कि अब तक के अध्ययन में पाया गया कि अल्मोड़ा जैसे जलवायु के क्षेत्र में साल में लगभग 10 महीने इसकी खुले में खेती हो सकती है, जबकि दो माह इसे शीतकाल दिसंबर से जनवरी में पालीहाउस की जरूरत पड़ सकती है।
मात्र चार हजार वर्ग फीट में कर सकते हैं खेती
अध्ययन में पाया गया है यदि काश्तकार मात्र चार हजार वर्ग फीट के खेत में भी गेंदे की खेती करता है तो उसे एक हजार पौधे रोपित करने होंगे और अप्रैल से सितंबर तक वह सभी खर्चों में 25 हजार खर्च कर एक लाख से अधिक के पुष्प बेचकर आय अर्जित कर सकता है।
दो से तीन माह में उगाने लगे हैं फूल
संस्थान के ग्रामीण तकनीकी परिसर के प्रभारी डा. ललित गिरी ने बताया कि व्यावसायिक प्रजाति के टेनिस बाल, आर्बिट आरेंज और अफ्रीकाना इंसा जैसी उच्च गुणवत्ता वाली प्रजातियों का चयन किया गया। इन प्रजातियों में एक से चार किलो प्रति पौधा फूल देने की क्षमता है। पौधा दो से तीन माह में फूल देने लगता है।
ग्रामीण आजीविका संवर्धन के लिए ग्रामीण तकनीकी परिसर की ओर से शुरू किए गए। इसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों, प्रदर्शन एवं विभागीय समन्वय के द्वारा व्यापक रूप से किसानों तक पहुंचाया जाएगा।
-डा. आइडी भट्ट, निदेशक जीबी पंत संस्थान कोसी कटारमल।
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