कदली वृक्ष जो खुद को करता है अर्पण
संवाद सहयोगी, रानीखेत : 'स्वर्गफल' कदली जिसका वृक्ष देवभूमि की आराध्य मां नंदा एवं सुनंदा के लिए अर्
संवाद सहयोगी, रानीखेत : 'स्वर्गफल' कदली जिसका वृक्ष देवभूमि की आराध्य मां नंदा एवं सुनंदा के लिए अर्पण को तत्पर रहता है। खास बात है मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा के लिए योग्य वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बड़ी अद्भुत व आध्यात्म पर आधारित है। केले के बागान (किंवाड़ी) में शुभ मुहूर्त में पुरोहित अभिमंत्रित चावल फेंकते हैं। तभी मां को अर्पित किए जाने योग्य कदली वृक्ष का तना व उसकी पत्तियां अप्रत्याशित रूप से हिल कर संकेत दे देता है। पंडित या शास्त्री एवं यजमान उसी वृक्ष का चयन कर गंगा जल से स्नान करा तिलक-चंदन एवं लाल व सफेद वस्त्र बांधते हैं। उसे काटे जाने तक बाकायदा नियमित पूजन किया जाता है। मुहूर्त के अनुरूप पेड़ का चुनाव कर गंगा जल स्नान, टीका-चंदन व लाल व सफेद वस्त्र बांध अभिषेक किया जाता है।
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इसलिए चुना जाता है स्वर्गफल का ही पेड़
लोककथा के अनुसार ससुराल को जाते वक्त मां नंदा व सुनंदा पर एक भैंसे ने हमला बोल दिया। बचने के लिए दोनों बहनें कदली के बागान (किंवाड़ी) में जा छिपी। तभी बकरा उधर पहुंचा और उसने प्रवृत्ति के अनुरूप केले के पत्ते खा लिए। किंवदंती है कि कदली वृक्षों के पीछे छिपकर बैठीं नंदा-सुनंदा को भैंसे ने देख लिया और दोबारा हमला बोल दिया। तभी से कदली वृक्ष से प्रतिमा बनाने की परंपरा शुरू हुई। दूसरी कथा के मुताबिक कदली को स्वर्ग फल कहा जाता है जो सबसे शुद्ध पेड़ माना जाता है। इसीलिए आराध्य देवी की प्रतिमा बनाने में इसी वृक्ष के तनों व पत्तों का इस्तेमाल होता आ रहा है।
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कल चुना जाएगा योग्य कदली वृक्ष
रानीखेत : ऐतिहासिक मां नंदा एवं सुनंदा महोत्सव के लिए इस बार भी पर्यटन नगरी के राय एस्टेट में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच योग्य कदली वृक्ष चुना जाएगा। 26 अगस्त की प्रात: विशेष आमंत्रण के बाद अगले दिन मूर्ति निर्माण का श्रीगणेश होगा। 28 से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ होगा। प्रात:कालीन नित्य पूजा व विविध प्रतियोगिताएं भी होंगी। एक सितंबर को विशेष धार्मिक अनुष्ठान व पूजा अर्चना के बाद मां नंदा एवं सुनंदा के पवित्र डोले की शोभायात्रा निकाली जाएगी। इधर रंगकर्मी किरन लाल साह, भुवन साह, एलएम चंद्रा, हरीश लाल साह, यतीश रौतेला आदि तैयारी में जुटे हैं।
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