Bladder Cancer: देश का पहला AI मॉडल सिस्टोस्कोपी छवियों से मूत्राशय कैंसर की करेगा पहचान, उपचार में खर्च भी घटेगा
बीएचयू और आईआईटी बीएचयू ने मिलकर मूत्राशय कैंसर की पहचान और पुनरावृत्ति की भविष्यवाणी के लिए भारत का पहला एआई-आधारित मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किया है। यह सिस्टोस्कोपी छवियों का उपयोग करता है और 90% तक सटीक है। यह मॉडल मरीजों को बार-बार होने वाली कष्टदायी जांच से राहत देगा, उपचार को गति देगा, और चिकित्सा खर्च कम करेगा। चार साल के शोध का यह परिणाम मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करेगा और भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाता है।

संग्राम सिंह, वाराणसी। तंबाकू, प्रदूषण और औद्योगिक रसायनों के बढ़ते उपयोग के कारण मूत्राशय कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में प्रतिदिन 50 से अधिक मूत्राशय कैंसर के मरीज आते हैं। ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय और आइआइटी बीएचयू ने मिलकर देश का पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित मशीन लर्निंग माडल विकसित किया है, जो सिस्टोस्कोपी इमेज के माध्यम से मूत्राशय कैंसर की पहचान करने के साथ-साथ पुनरावृत्ति (दोबारा होने) के खतरे की भविष्यवाणी भी करता है।
यह माडल 90 प्रतिशत तक सटीक परिणाम देता है। इससे मरीजों को बार-बार होने वाली कष्टदायी जांच से राहत मिलेगी और जल्द उपचार भी शुरू किया जा सकेगा। यह मरीज की जीवनकाल को बढ़ाने और चिकित्सा खर्च को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
चार वर्षों का शोध और विश्लेषण
इस माडल को विकसित करने के लिए बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान (आइएमएस) के यूरोलाजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. समीर त्रिवेदी और आइआइटी बीएचयू के कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रो. संजय कुमार के नेतृत्व में चार वर्षों तक शोध किया गया। शोध के दौरान 40 से 76 वर्ष की आयु के 212 मरीजों के 222 सिस्टोस्कोपी वीडियो और 1.36 लाख हाई-डेफिनिशन (एचडी) सिस्टोस्कोपी छवियों का विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन में यूरोलाजी विभागाध्यक्ष डा. यशस्वी सिंह, डा. संदीप कुमार, डा. रोहन शंकर, डा. उज्ज्वल कुमार और डा. ललित कुमार ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मूत्राशय कैंसर के निदान की आधारशिला है सिस्टोस्कोपी
सिस्टोस्कोपी में मूत्राशय के अंदरूनी हिस्से की जांच के लिए सिस्टोस्कोप नामक उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह पतली ट्यूब होती है, जिसमें कैमरा और प्रकाश स्रोत होता है। सिस्टोस्कोप को मूत्रमार्ग के माध्यम से मूत्राशय तक पहुंचाया जाता है, जिससे चिकित्सक मूत्राशय की आंतरिक सतह का निरीक्षण कर सकते हैं।
इससे मूत्राशय कैंसर, गांठ या अंदर हो रही कोई असमान्य गतिविधि का पता लगाया जाता है। मूत्राशय कैंसर के मरीजों को हालांकि बार-बार सिस्टोस्कोपी करानी पड़ती है, जो शारीरिक और मानसिक रूप से कष्टदायी होती है। यूरोलाजी विभाग के अध्यक्ष डा. यशस्वी बताते हैं कि शुरुआत में हर तीन माह और अगले दो वर्षों तक प्रत्येक छह माह में सिस्टोस्कोपी करानी होती है। कैंसर की पुष्टि होने पर पेट के स्कैन आदि अन्य जांचें भी करानी पड़ती हैं। इसका कुल खर्च 50 से 60 हजार रुपये तक होता है। हालांकि एआई तकनीक से मरीजों को बार-बार जांच की जरूरत कम होगी।
भविष्य की उम्मीद
यह माडल न केवल मूत्राशय कैंसर के निदान और उपचार में क्रांति लाएगा, अन्य चिकित्सीय क्षेत्रों में भी डीप लर्निंग और एआई के उपयोग को प्रोत्साहित करेगा। यह तकनीक मरीजों के लिए कम खर्च, कम कष्टदायी और अधिक सटीक निदान की राह दिखाती है। साथ ही, चिकित्सा विज्ञान में भारत की बढ़ती तकनीकी क्षमता को भी दर्शाता है।
भविष्य में इस माडल को और अधिक डेटा के साथ प्रशिक्षित कर अन्य प्रकार के कैंसर या चिकित्सीय स्थितियों के निदान के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। यह माडल मूत्राशय कैंसर के मरीजों के लिए आशा की किरण है, जो न केवल उनके जीवन को बचाएगा बल्कि उनकी जीवन गुणवत्ता को भी बेहतर बनाएगा।
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