world orthodontic day : 49 प्रतिशत शहरी बच्चों में टेढ़े-मेढ़े दांत की समस्या, वातावरणीय व आनुवांशिकी कारणों से बढ़ रही समस्या
टेढे़- मेढे़ अनियमित दांत व जबड़े का मुख्य कारण वातावरणीय व आनुवांशिकी होता है। वातावरणीय कारण मुख्य रूप से मुंह के स्वांस लेने अगुठा चूसने कुपोषण जीभ ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी : चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के दंत चिकित्सा संकाय में आर्थोडांटिक्स शाला है। यह डेंडिस्ट्री की सुपरस्पेशियलिटी है, जिसमें टेढ़े-मेढ़े दांत, जबड़े व चेहरे को ठीक किया जाता है। एक सर्वे में पाया गया कि टेढे़- मेढ़े दांत व जबड़े की समस्या 49 प्रतिशत बच्चों में हो रही है। इसका मतलब हर दूसरा बच्चा आर्थोडांडिक समस्या से परेशान है। शहर में यह दिक्कत गावों के बच्चों से ज्यादा होती है। यह सर्वे बनारस आर्थोडाटिंक स्टडी ग्रुप के संयोजक व पूर्व संकाय प्रमुख प्रो. प्रो. टीपी चतुर्वेदी के नेतृत्व में किया गया है। प्रो. चतुर्वेदी बताते हैं कि इस समस्या का उपचार करने वाले स्पेशलिस्ट को आर्थोडांडटिस्ट कहा जाता है। इसी के नाम पर 15 मई को विश्व आर्थोडांटिक डे मनाया जाता है।
प्रो. चतुर्वेदी ने बताया कि संकाय में विश्व आर्थोडांटिक डे पर रविवार को एक कार्यक्रम आयोजन होने जा रहा है, जिसमें आर्थोडांटिक विधार्थी व आसपास के कुछ आर्थोडांटिस्ट भाग लेंगे। बताया कि टेढे़- मेढे़, अनियमित दांत व जबड़े का मुख्य कारण वातावरणीय व आनुवांशिकी होता है। वातावरणीय कारण मुख्य रूप से मुंह के स्वांस लेने, अगुठा चूसने, कुपोषण, जीभ के बनावट व गलत ढंग से खाना निगलने से होता है। प्रो. चतुर्वेदी बताते हैं कि कटे तालू एवं कटे होठ के कारण भी कई तरह की समस्याएं होती है। इससे खाने में कठिनाई, देखने में मुंह व चेहरा खराब लगता है। जबड़े व चेहरे का विकास बच्चो में ठीक से नहीं हो पाता है।
आनुवांशिकी कारण में यदि माता एवं पिता को यह दिक्कत है तो बच्चो में भी यह दिक्कत हो सकती है। इसका इलाज बच्चो में किसी भी उम्र में किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए उपयुक्त उम्र सात साल से 18 साल तक सबसे अच्छा होता है। इसके लिए दांत पर विशेष तौर पर अप्लायंस या ब्रेसेस लगाकर इलाज किया जाता है। इस प्रक्रिया में छह माह से तीन साल तक समय लग सकता है। मालूम हो कि प्रो. चतुर्वेदी के नेतृत्व में वाराणसी के आसपास सर्वे में किया गया है।

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