World Environment Day : जीवनचक्र की निरंतरता का प्रतीक है वटवृक्ष, पांच गुना अधिक प्रदान करता है आक्सीजन
सनातन हिंदू धर्म हो या बौद्ध दोनों ही धर्मों में वट वृक्ष को पूज्य माना गया है। यह वृक्ष जीवन की निरंतराता का प्रतीक है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अन्य वृक्षों की तुलना में पांच गुना अधिक प्राणवायु यानी आक्सीजन प्रदान करता है।

वाराणसी, जेएनएन। World Environment Day सनातन हिंदू धर्म हो या बौद्ध, दोनों ही धर्मों में वट वृक्ष को पूज्य माना गया है। यह वृक्ष जीवन की निरंतराता का प्रतीक है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अन्य वृक्षों की तुलना में पांच गुना अधिक प्राणवायु यानी आक्सीजन प्रदान करता है। श्रीमद्भागवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने इसके स्वरूप का वर्णन करते हुए इसे आध्यात्मिक रूपक की तरह प्रयोग किया है। भारतीय सनातन परंपरा में सौभाग्यवती स्त्रियां वट वृक्ष का पूजन कर अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। आगामी 10 जून को इस पर्व को मनाया जाना है। वर्तमान परिवेश में कोरोना महामारी को देखते हुए जिस तरह आक्सीजन की किल्लत लोगों ने झेली है, अब उन्हें ऐसे वृक्षों के बारे में चिंतन का मौका मिला है। ऐसे में समाज के प्रबुद्ध वर्ग ने एक बार फिर इस प्राणवायुदाता वृक्ष के पौधराेपण का संकल्प जताया है।
वटवृक्ष से होने वाले लाभ
-काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर आरएन खरवार बताते हैं कि बरगद की पत्तियों में सफेद रंग का द्रव्य लेटेक्स पाया जाता है, जिसके कारण इनकी पत्तियां मोटी होती हैं। इन्हीं की वजह से इन पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण काफी बेहतर होता है, जिससे आक्सीजन उत्पादन करने की क्षमता इनमें बहुत अधिक होती है।
- बरगद के साथ एक खूबी यह भी है कि इनकी पत्तियों पर वातावरण के धूल कण तेजी से चिपकते हैं। वहीं नुकसानदेह हवा को अवशोषित करने की क्षमता भी इनमें अधिक होती है।
- अपने समान आकार के अन्य वृक्षों की तुलना में बरगद पांच गुना अधिक आक्सीजन देता है, हालांकि सभी वृक्षों में सर्वाधिक आक्सीजन पीपल का वृक्ष प्रदान करता है।
- बरगद का वृक्ष रात में भी आक्सीजन उत्सर्जन करता रहता है।
-विशाल आकार के कारण यह पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलन प्रदान करता है।
हम संकल्प लेते हैं कि
वट सावित्री पूजन के दिन अपने विद्यालय में बच्चों के बीच वट वृक्ष के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व की व्याख्या करते हुए उन्हें इन पौराणिक वृक्षों की महत्ता की जानकारी दूंगी और विद्यालय परिसर में वटवृक्ष का रोपण करने के साथ ही बच्चों को भी अपने आसपास की खाली जगहों पर बरगद, पीपल के पौधे लगाने को प्रेरित करूंगी।
-प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव, प्राचार्य, वसंत कन्या महाविद्यालय, कमच्छा वाराणसी।
बरेका परिसर को हरा-भरा रखने के लिए प्राय: पौधरोपण का कार्यक्रम होता रहता है। आक्सीजन प्रदाता होने के नाते वटवृक्ष की पर्यावरण में महत्ता को देखते हुए इस बार वटवृक्ष भी लगाने की योजना बनाई गई है। मैंने संकल्प लिया है कि परिसर में और भी वटवृक्ष समुचित स्थानों पर लगाए जाएं, ताकि लोगों को छाया और शुद्ध आक्सीजन मिलती रहे।
-अंजली गोयल, महाप्रबंधक बनारस रेल कारखाना, वाराणसी।
वटवृक्ष है देव वृक्ष
वटवृक्ष देव वृक्ष है। वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में जनार्दन विष्णु तथा अग्रभाग में देवाधिदेव शिव स्थित रहते हैं। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं। इसी अक्षय वट के पत्रपुटक पर प्रलय के अंतिम चरण में भगवान श्रीकृष्ण ने बालरूप में मार्कंडेय ऋषि को प्रथम दर्शन दिया था। प्रयागराज में भी गंगा तट पर वेणीमाधव के निकट अक्षयवट स्थित है। हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्व है। इसकी औषधीय उपयोगिता से भी हम सभी परिचित हैं। जिस प्रकार वटवृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है, उसी तरह दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य तथा निरंतर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए वटवृक्ष की आराधना की जाती है।
-विनय पांडेय, अध्यक्ष, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी।
जीवन बिना आक्सीजन के नहीं चल सकता। इस कोरोना काल में आक्सीजन की अहमियत लोगों की समझ में आ गई है। इसलिए जरूरी है कि शहरों को कंक्रीट का जंगल होने से बचाया जाय और अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाए जायं। इनमें भी अधिक आक्सीजन देने वाले पौधों को वरीयता दी जानी चाहिए। तभी पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और बीमारियां भी कम होंगी।
-प्रोफेसर एसके अग्रवाल, टीबी एंड चेस्ट विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू।
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