Death Anniversary : "सत्यमेव जयते" शब्द को महामना मदन मोहन मालवीय ने बनाया था लोकप्रिय
मालवीय जी ने सत्यमेव जयते शब्द को काफी लोकप्रिय बनाया। यह वाक्यांश मूल रूप से मुंडकोपनिषद का है वर्तमान में यह भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है। वर्ष 1918 के कांग्रेस अधिवेशन में इस वाक्य का उन्होंने प्रयोग किया था।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। प्रख्यात शिक्षाविद व काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि 12 नवंबर को है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 प्रयाग, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका निधन 85 वर्ष की आयु में 12 नवंबर 1946 को बनारस में हुआ था।
पंडित मदन मोहन मालवीय अकेले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें महामना की उपाधि प्राप्त है। यह उपाधि उन्हें महात्मा गांधी ने दी थी। पंडित मदन मोहन मालवीय जी को महामना इसलिए कहा जाता है क्योंकि मालवीय जी प्रख्यात शिक्षाविद, समाज सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, वकील, राजनेता, अभ्युदय, लीडर व मर्यादा जैसी पत्रिकाओं के संस्थापक पत्रकार, हिंदू महासभा के संस्थापक सदस्य, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक, गंगा महासभा के स्थापक, चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष व कई वर्षों तक प्रमुख अखबार के निदेशक मंडल के अध्यक्ष भी रहे।
मालवीय जी ही थे जिन्होंने "सत्यमेव जयते" शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालांकि यह वाक्यांश मूल रूप से मुंडकोपनिषद का है और वर्तमान में यह भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है। उन्होंने साल 1918 के कांग्रेस अधिवेशन में इस वाक्य का प्रयोग किया था। उस वक्त मालवीय जी कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। मालवीय जी की कर्मनिष्ठा को देखकर भारत के दूसरे राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें कर्मयोगी का दर्जा दिया था।
मालवीय जी एक बेहतरीन वक्ता और प्रसिद्ध राजनेता भी थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों, उद्योगों को बढ़ावा देने, देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने, शिक्षा, धर्म, सामाजिक सेवा, हिंदी भाषा के विकास और राष्ट्रीय महत्व से संबंधित कई अन्य गतिविधियों में हिस्सा लिया। उनके यह सभी कार्य उनकी प्रसिद्धि के लिए पर्याप्त थे परंतु काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उन्हें विशेष रुप से याद किया जाता रहेगा।
प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, बीएचयू के शोधछात्र अंकुश गुप्ता बताते हैं कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना महामना ने भारत के भविष्य को ध्यान में रखकर किया था, जिससे राष्ट्र निर्माण के लिए संस्कारवान, स्वस्थ्य व शिक्षित नागरिकों को पैदा किया जा सके। मालवीय जी देश की आजादी के लिए बहुत आशान्वित रहते थे। एक बार उन्होंने कहा था "शायद मैं ज्यादा दिन तक नाजिम और यह कसक रहे कि भारत अब भी स्वतंत्र नहीं है लेकिन फिर भी मैं आशा करूंगा कि मैं स्वतंत्र भारत को देख सकूं"। दुर्भाग्यवश भारत की स्वतंत्रता से लगभग एक वर्ष पहले 12 नवंबर 1946 मदन मोहन मालवीय का निधन हो गया।
अंकुश गुप्ता ने बताया कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी राष्ट्र उत्थान के लिए शिक्षा को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते थे। वे कहते थे राष्ट्र की उन्नति तभी संभव है, जब वहां के निवासी सुशिक्षित हों। उन्होंने जीवन भर गांव में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए अथक प्रयास किए। उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों को तभी भली-भांति समझ सकता है जब वह शिक्षित हो। राष्ट्र को उन्नति के शिखर पर ले जाना है तो वह शिक्षा से ही संभव है।
उन्होंने 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना चंदे से अर्जित धन से किया। विश्वविद्यालय निर्माण में चंदे के लिए मालवीय जी ने पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्रा की थी। उन्हें एक करोड़ 64 लाख की रकम चंदे में मिली थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए मालवीय जी को 1360 एकड़ जमीन काशी के महाराज द्वारा दान में मिली थी, इसमें 11 गांव, 70 हजार पेड़, 100 पक्के कुएं, 20 कच्चे कुएं, 40 पक्के मकान, 860 कच्चे मकान, कई ग्रामदेव मंदिर और एक धर्मशाला भी शामिल था।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय निर्माण के दौरान मालवीय जी और हैदराबाद के निजाम का एक किस्सा लोक प्रचलित है। मालवीय जी ने हैदराबाद के निजाम से जब विश्वविद्यालय स्थापना में सहयोग की मांग की तो निजाम ने कहां की मेरे पास पैसे नहीं है, आप मेरी जूती ले सकते हो। मालवीय जी ने विनम्रता पूर्वक इस बेज्जती के बाद भी कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया और निजाम की जूती लाकर बाजार में नीलाम करने लगे। जब निजाम को इसकी जानकारी हुई तो अपनी गलती का एहसास कर उन्होंने तुरंत मालवीय जी को बुलाकर भारी-भरकम दान दिया।
वर्तमान में उन्हीं के नाम पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हैदराबाद कालोनी का नामकरण हुआ है। ऐसे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, वकील, पत्रकार और समाज सुधारक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी को उनकी पुण्यतिथि पर आज हम याद कर रहे हैं। वर्ष 2014 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
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