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    रूटीन एंटीऑक्सीडेंट से 50 प्रतिशत बढ़ी कैंसर उपचार में दी जाने वाली दवा की क्षमता, जानवरों पर जल्द होगा परीक्षण

    By SANGRAM SINGHEdited By: Ashish Mishra
    Updated: Sun, 26 Oct 2025 05:29 PM (IST)

    वाराणसी में कैंसर के इलाज में एक जंगली पौधा नई उम्मीद लेकर आया है। बीएचयू के शोधकर्ताओं ने पाया कि दुधिया घास में मौजूद फंगस 'निग्रोस्पोरा स्फेरिका' को एंटी कैंसर दवा के साथ इस्तेमाल करने से दवा की क्षमता 50% तक बढ़ जाती है। इस फंगस से बना रूटीन एंटीऑक्सीडेंट कैंसर के इलाज को सस्ता और सुरक्षित बना सकता है। जानवरों पर जल्द ही इसका परीक्षण किया जाएगा।

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    बीएचयू के शोधकर्ताओं ने दुधिया घास में पाए जाने वाले फंगस से दवा का प्रभाव बढ़ाया।

    संग्राम सिंह, वाराणसी। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के उपचार में एक जंगली पौधा नई उम्मीद बन कर सामने आया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रवींद्र नाथ खरवार और शोधार्थी वीर सिंह गौतम ने अपने शोध में दुधिया घास (यूफार्बिया हर्टा, जिसे स्थानीय भाषा में पत्थरचट्टा कहा जाता है) के भीतर मौजूद एक फंगस ‘निग्रोस्पोरा स्फेरिका’ को जब एंटी कैंसर दवा के साथ उपयोग किया, तो दवा की असरकारी क्षमता 50 प्रतिशत तक बढ़ गई। निग्रोस्पोरा स्फेरिका से बने रूटीन एंटीआक्सीडेंट के साथ कैंसर की दवा का प्रयोग भविष्य में इलाज को सस्ता, सुरक्षित और ज्यादा असरदार बना सकता है।

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    आयुर्वेद में दुधिया घास का प्रयोग अस्थमा सहित कई बीमारियों के उपचार में पहले से होता रहा है। इस पौधे में पाया जाने वाला निग्रोस्पोरा स्फेरिका एक खास किस्म का फंगस है, जो रूटीन नामक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट का उत्पादन करता है। यह एंटीऑक्सीडेंट शरीर की कोशिकाओं को तनाव और विषाक्त प्रभावों से तो बचाता ही है, इसे सामान्य कोशिकाओं को सुरक्षित रखने में भी मददगार पाया गया।

    बीएचयू के शोधकर्ताओं ने सबसे पहले इस एंटीऑक्सीडेंट रूटीन को कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवा ‘सिसप्लैटिन’ के साथ प्रयोग किया। सिसप्लैटिन दवा बाजार में उपलब्ध है और मेसोथेलियोमा (एक प्रकार का कैंसर है जो मेसोथेलियम नामक ऊतक में होता है) सहित अनेक प्रकार के कैंसर के रोगियों को दी जाती है। लेकिन, इसके दुष्प्रभाव भी होते हैं और असर सीमित रहता है।

     

    डॉ. खरवार ने अपने शोध में पाया कि जब सिसप्लैटिन के साथ रूटीन एंटीऑक्सीडेंट दिया गया, तो दवा की क्षमता में 50 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई। यानी कैंसर के संक्रमित सेल्स अधिक प्रभावी ढंग से खत्म हुए, जबकि सामान्य कोशिकाओं को किसी तरह की हानि नहीं पहुंची। इससे रोगियों के लिए अधिक सुरक्षित और कारगर उपचार की संभावना बनी है।

    इस तरह किया गया अध्ययन

    शोध के दौरान कैंसर रोगियों के चार समूह बनाए गए। पहले समूह को 36 घंटे में एक बार सिसप्लैटिन दवा दी गई। दूसरे समूह को कोई दवा नहीं दी गई। तीसरे समूह को सिसप्लैटिन के साथ रूटीन दिया गया। चौथे समूह को केवल रूटीन दिया गया। जिस समूह को सिसप्लैटिन के साथ रूटीन दिया गया, उनमें कैंसर से प्रभावित कोशिकाएं अन्य समूह के रोगियों की अपेक्षा 50 प्रतिशत अधिक नष्ट हुईं और सामान्य कोशिकाएं भी पूरी तरह सुरक्षित रहीं।

    एंटीऑक्सीडेंट की पहचान और सक्रियता

    प्रो. खरवार ने बताया कि इसके लिए सबसे पहले पौधे की पत्तियों व तनों को पानी और सोडियम हाइपोक्लोराइड से शुद्ध किया गया, ताकि बाहरी सतह के सूक्ष्मजीव समाप्त हो जाएं। फिर अल्कोहल से सफाई कर पत्तियों व तनों के छोटे टुकड़ों को पेट्री डिश में रखा गया। कुछ दिनों बाद इनसे फंगस बाहर आने लगे। चूंकि एक ही टुकड़े में अनेक फंगस हो सकते हैं, इसलिए सब-कल्चरिंग कर हर एक का अलग-अलग कल्चर तैयार किया गया। इसके गुणों की जांच की गई। अंत में यह प्रमाणित हुआ कि निग्रोस्पोरा स्फेरिका द्वारा उत्पन्न रूटीन ही सक्रिय एंटीऑक्सीडेंट है।

    पौधों के स्वास्थ्य में सूक्ष्मजीवों की भूमिका

    प्रो. खरवार के अनुसार, ऐसे सूक्ष्मजीव पौधों की सेहत को बेहतर रखने में बहुत उपयोगी हैं। वे पौधों को अनेक तरह के जैविक और गैर जैविक तनावों (जैसे बीमारी, सूखा, तापमान में बदलाव) से बचाते हैं। रोग नहीं फैलाते, बल्कि फायदा पहुंचाते हैं। निग्रोस्पोरा स्फेरिका ऐसा ही एक लाभकारी सूक्ष्मजीव है। इस दवा के जानवरों पर परीक्षण की अनुमति मिल चुकी है। यह शोध ब्रिटेन की साइंस पब्लिशर एल्सेवियर द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित जर्नल ‘प्रोसेस बायोकेमिस्ट्री’ में भी स्थान मिला है।