जंगल में कहां गुम हो गए राजा, चंदौली के चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य में रहता था शेरों का कुनबा
चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना 1957 में हुई। यह 9600 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 1958 में तीन शेरों को यहां लाया गया था। बाद में शेरों की संख्या बढ़कर 11 हो गई लेकिन 1970 में सभी शेर लापता हो गए।

जागरण संवाददाता, चंदौली। सत्तर के दशक तक नौगढ़ के जंगल में शेर की दहाड़ गूंजती थी। इसके बाद राजा का कुनबा जंगल से लापता हो गया। शेर कहां गए, इसके बारे में वन विभाग भी कयास ही लगाता है। चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना 1957 में हुई तो यहां शेरों को लाया गया। 1958 में तीन शेर लाए गए। 1970 तक इनकी संख्या बढ़कर 11 हो गई थी, लेकिन इसके बाद शेर लापता हो गए। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार नौगढ़ के जंगल में अनुकूल माहौल न मिलने की वजह से शेर झारखंड व छत्तीसगढ़ के घने जंगलों की ओर बढ़ गए होंगे। वन्य जीव अभ्यारण्य में तेंदुआ, भालू, चिंकारा, सांभर, जंगली सुअर, मगरमच्छ, भेड़िया, लोमड़ी व सियार आदि जानवर हैं।
चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना 1957 में हुई। यह 9600 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। 1958 में तीन शेरों को यहां लाया गया था। बाद में शेरों की संख्या बढ़कर 11 हो गई, लेकिन 1970 में सभी शेर लापता हो गए। अभ्यारण्य में लाए गए शेर आखिर कहां गए, वन विभाग के पास भी इसका कोई समुचित जवाब नहीं। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार अभ्यारण्य में तमाम तरह की दिक्कतें हैं। यहां शेरों के रहने के लिए अनुकूल माहौल नहीं है। ऐसे में शेरों का कुनबा झारखंड व छत्तीसगढ़ के घने जंगलों की ओर पलायन कर गया होगा।
2016 में वन्य जीवों की हुई थी गणना
वन विभाग की ओर से 2016 में वन्य जीवों की गणना कराई गई थी। इसके अनुसार चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य में तीन तेंदुए, 104 भालू, 266 सुअर, 445 लंगूर, तीन-तीन मगरमच्छ व भेड़िया, 55 लकड़बग्घे, 102 लोमड़ी, 175 सियार, इतने ही मोर, 123 चिंकारा, 174 घड़रोज और 101 सांभर थे। वन्य जीवों पर नजर रखने के लिए जंगल में कैमरे लगाने की योजना भी अभी मूर्त रूप नहीं ले सकी है।
पहला प्रयोग असफल, वन विभाग भविष्य में यहां नहीं लाएगा शेर
वन विभाग का पहला प्रयोग ही असफल रहा। इसके पीछे अभ्यारण्य की भौगोलिक स्थिति सबसे बड़ा कारण है। शेरों के लिए जंगल में मैदानी इलाका अनुकूल माना जाता है, लेकिन अभ्यारण्य में पहाड़ों की भरमार है। शेरों को दौड़ने अथवा शिकार करने के लिए मैदानी इलाका नहीं है। बीच जंगल में जगह-जगह गांव बसे हुए हैं। इससे वन्य जीवों व इंसानों के लिए खतरा रहता है।
चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य में 1958 में शेरों को लाया गया था
चंद्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य में 1958 में शेरों को लाया गया था। हालांकि 1970 के बाद शेर लापता हो गए। अनुकूल माहौल न मिलने की वजह से शेर झारखंड व छत्तीसगढ़ की जंगलों की ओर कूच कर गए होंगे। भविष्य में यहां दोबारा शेरों को लाने की कोई योजना नहीं है।
- दिनेश सिंह, डीएफओ
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