जब यीशु को पालना झुलाने पहुंच गए महंत रामेश्वर पुरी, सर्वधर्म समभाव में था उनका विश्वास
कुछ मसीही और कुछ गैर- मसीही युवाओं ने उस वर्ष प्रभु ईशा मसीह के जन्मदिन पर अपने प्रकल्प के तहत समारोह का आयोजन कर रखा था। सभी की इच्छा थी कि मुख्य अतिथि के तौर पर शिशु यीशु को पालना झुलाकर महंत जी ही मेरी क्रिसमस की शुभकामनाएं दे।

वाराणसी कुमार अजय। आद्यशंकराचार्य की विशुद्ध सनातन व्यवस्थाओं के परिपोषक होते हुए भी ब्रह्मलीन महंत रामेश्वर पुरी जी महाराज सोच और जीवन दर्शन के स्तर पर कबीर के कहीं ज्यादा नजदीकतर नजर आते थे। छुआछुत, जाति-पाति व धर्मपंथ संप्रदायों के रुढिवादि दायरे उन्हें कभी बांध नहीं पाए। अपने संस्कारों से रंचमात्र भी विरत न रहते हुए भी उन्होंने सर्वधर्म समभाव की बयार के क्रास वेंटिलेंशन के लिए अपने दिलो-दिमाग की खिड़कियां हमेशा खुली रखीं। अपने रास्ते पर अडिग रहे किंतु अन्य दिशाओं की ओर जाने वाले रास्तों पर बंदिशों की बाण कभी नहीं बांधी। उनका स्पष्ट मानना था कि हम सभी जितने नजदीक आएंगे, बहुरंगी नदियों के संगम वाली राष्ट्र की मुख्यधारा को उतना ही प्रवाहमान बना पाएंगे।
माता अन्नपूर्णेश्वरी की गोद में चिर विश्राम को प्राप्त महंत रामेश्वर पुरी से मेरी बस एक भेंट कोई 10-12 साल पहले हुई थी। मैं उन्हें एक ऐसे समारोह के लिए आमंत्रित करने गया था जिसमें उनकी उपस्थिति की संभावनाओं की कुंडी पर मित्रों ने पहले ही असंभव का ताला जड़ दिया था। हुआ यूं था कि कुछ मसीही और कुछ गैर- मसीही युवाओं ने उस वर्ष 25 दिसंबर को प्रभु ईशा मसीह के जन्मदिन पर अपने प्रकल्प ( सबका पर्व मनाओ नजदीकियां बढाओ) के तहत पराड़कर स्मृति भवन में एक सायंकालीन समारोह का आयोजन कर रखा था। सभी की इच्छा थी कि मुख्य अतिथि के तौर पर शिशु यीशु को पालना झुलाकर महंत जी ही नगरवासियों को (मेरी क्रिसमस) की शुभकामनाएं दे। साथ ही वहां मौजूद अनाथालय के बच्चों को स्वेटर का उपहार भेंट करें।
युवाओं की मनुहार का टोकरा साथ लिए लगभग असमंजस की स्थिति में ही मैं महंत जी से मिला। मंतव्य बताया और सकुचाते हुए ही आमंत्रण पत्र आगे बढ़ाया। जैसी की आशंका थी कि वहां बैठे कुछ लोगों ने (आर्य धर्मेंतराणां...। ) जैसे तर्कों की दुहाई देने की कोशिश भी की। किंतु महंत जी का बेलौस जवाब था -माता अन्नपूर्णा का प्रतिनिधि हूं, जिसने क्षुधा तृप्ति के रुप में राम-रहीम, कृष्म-करीम, यीशू व जरसथ्रोस सबका पोषण किया है। इसलिए मैं तो सभी का सेवक हुआ। कड़ाके की उस शीतलहरी की शाम महंत जी जब अपनी छड़ी टेकते समारोह में पधारे तो आयोजक तरूण और तरूणियां अभी मंच सज्जा में ही व्यस्त थे। महंत जी का बड़पप्न कि उन्होंने बड़ी सहजता और धैर्य के साथ विलंब के पूरे दो घंटे बच्चों से बस यूं ही बोलते बतियाते काटे। किंचित भी हड़बड़ी नहीं दिखाई। खुले मन से सबको क्रिसमस की बधाई दी। शिशु यीशू को पालना झुलाया। नौजवानों की जिद पर केक भी काटा। अपने हाथों से अनाथ बच्चों को स्वेटर पहनाया और क्रिसमस की त्योहारी भी दी। आम तौर पर महंत जी बाहर कुछ भी ग्रहण करने से परहेज करते थे, किंतु बाल हठ का मान रखते हुए उन्होंने वहां मुंह भी मीठा किया। बच्चों को भरपूर आशीर्वाद देकर वहां से विदा पाया।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।